साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत जिन गवाहों की जांच की गई, उनसे आगे की सच्चाई/अन्य प्रासंगिक तथ्यों को जानने के लिए जिरह की आवश्यकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Update: 2022-04-17 13:08 GMT
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि जब किसी मामले में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत एक गवाह की जांच/पूछताछ की जाती है, तो उससे और सच्चाई/अन्य प्रासंगिक तथ्यों को जानने के लिए जिरह की आवश्यकता होती है।

जस्टिस गौतम भादुड़ी की खंडपीठ ने बलात्कार के एक आरोपी की याचिका को अनुमति देते हुए ऐसा कहा। अभियोजन पक्ष/पीड़ित (जिससे पहले साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत अदालत द्वारा पूछताछ की गई थी) को समन करने और जिरह करने के लिए आरोपी को ओर से दायर आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 न्यायाधीश को प्रश्न पूछने या आदेश प्रस्तुत करने की शक्ति से संबंधित है। यह प्रावधान एक न्यायाधीश को प्रासंगिक तथ्यों का पता लगाने या उचित प्रमाण प्राप्त करने के लिए, किसी भी रूप में, किसी भी समय, किसी भी तथ्य के बारे में, किसी भी प्रासंगिक या अप्रासंगिक तथ्य के बारे में पूछने के लिए अधिकृत करता है।

संक्षेप में मामला

अभियुक्त का तर्क था कि शुरू में अभियोक्ता ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया था, लेकिन जिरह में, घटना को अस्वीकार कर दिया गया था, और बाद में फिर से, जब अदालत ने सवाल पूछा (धारा 165 के तहत अपनी शक्ति का आह्वान करते हुए) उसने अभियोजन पक्ष के बयान का समर्थन किया था।

इसलिए, इसे स्पष्ट करने के लिए, आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत आवेदन को निचली अदालत द्वारा अनुमति दी जानी चाहिए थी जिससे सुनवाई के लिए उचित अवसर मिल सके।

दूसरी ओर राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि आदेश पत्रक ही यह दर्शाता है कि याचिकाकर्ता को एक उचित अवसर दिया गया था और यह अदालत का विवेक है कि वह प्रश्न को अनुमति या अस्वीकार कर दे, जब साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत शक्ति है और यह कमियों को भरने के समान होगा, इसलिए यह आदेश उचित है।

कोर्ट का आदेश

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपने मुख्य परीक्षा में अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया था, हालांकि, जिरह में, उसने अपने साथ बलात्कार की घटना होने से पूरी तरह से इनकार किया था। इसके अलावा, जब अदालत ने धारा 165 साक्ष्य अधिनियम के तहत पूछताछ की, तो उसने कहा कि याचिकाकर्ता/आरोपी ने उसके साथ गलत किया था।

इस पृष्ठभूमि में अदालत ने शुरुआत में जोर देकर कहा कि अदालतों को मुकदमे के दौरान भागीदारी की भूमिका निभानी है, लेकिन वे अपना संतुलन नहीं खो सकते हैं, और आगे कहा कि इस न्यायालय की राय में, इस तरह से पेश किए गए आवेदन में याचिकाकर्ता को आगे गवाह से जिरह करने की अनुमति दी जानी चाहिए, अन्यथा यह एक निष्पक्ष सुनवाई को दबाने की ओर ले जाएगा।"

नतीजतन, ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया गया और सीआरपीसी की धारा 311 सहप‌ठित साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत आवेदन को अनुमति दी गई।

केस शीर्षक - बेसाहू लाल यादव बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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