विकलांगता प्रमाण पत्र जारी करने के लिए रोगी की शारीरिक रूप से उपस्थिति आवश्यक नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने एक मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि विकलांग व्यक्ति के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत प्रमाण पत्र जारी करने के उद्देश्य से सक्षम प्राधिकारी के समक्ष एक विकलांग व्यक्ति की शारीरिक उपस्थिति आवश्यक नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति को देखते हुए व्यक्ति की स्थिति और चिकित्सा इतिहास को वस्तुतः निर्धारित किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने अंतरिम आदेश में कहा,
"प्रथम दृष्टया, मेरा विचार है कि प्रौद्योगिकी के आगमन के कारण रोगी की स्थिति और चिकित्सा इतिहास को सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसकी फिजिकल उपस्थिति पर जोर दिए बिना नवाचारों और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति का लाभ उठाकर प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है।"
याचिकाकर्ता का बेटा संयुक्त राज्य अमेरिका में है और विभिन्न अक्षमताओं से पीड़ित है। उन्होंने सक्षम अधिकारियों से विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत एक प्रमाण पत्र की मांग की थी ताकि वह अपने बेटे को भारत वापस ला सकें।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि सक्षम प्राधिकारी ने इस बात पर जोर दिया कि उनके बेटे को प्रमाण पत्र जारी करने के उद्देश्य से भारत लाया जाए।
इसलिए उन्होंने एडवोकेट संतोष मैथ्यू के जरिए कोर्ट का रुख किया।
न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि फिजिकल उपस्थिति को समाप्त किया जा सकता है क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अब तक बड़े पैमाने पर प्रगति हो चुकी है और यह कि किसी के चिकित्सा इतिहास और व्यक्तिगत स्थिति का संभवतः ऑनलाइन मोड के माध्यम से पता लगाया जा सकता है।
वरिष्ठ सरकारी वकील को प्रतिवादियों से निर्देश प्राप्त करते समय इसे ध्यान में रखने का निर्देश दिया गया है।
इसके अलावा भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल को केंद्र सरकार से निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है कि क्या कानूनी राजनयिक मिशन की सहायता से याचिकाकर्ता के बेटे का मूल्यांकन उचित माध्यमों से किया जा सकता है।
20 अक्टूबर को इस मामले को फिर से उठाया जाएगा।
केस का शीर्षक: सेबेस्टियन पैराचेरी बनाम भारत संघ एंड अन्य