"प्रशासनिक पक्ष के अनुसार देखेंगे": दिल्ली हाईकोर्ट ने सिविल जजों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाने की मांग वाली याचिका का निपटारा किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने एडवोकेट अमित साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका का निपटारा किया, जिसमें मूल मुकदमों के निर्णय के लिए सिविल जजों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाने की मांग की गई थी।
सिविल जजों का वर्तमान में अधिकतम आर्थिक क्षेत्राधिकार 3 लाख रुपए तक का है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने शुरुआत में कहा कि तीन लाख एक "बहुत मामूली राशि" है।
मुख्य न्यायाधीश ने पक्षकार को व्यक्तिगत रूप से सूचित किया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की एक समिति इस मुद्दे पर निर्णय करेगी और उसके बाद यह उनकी मंजूरी के लिए आएगी।
मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा,
"हम प्रशासनिक पक्ष पर देखेंगे। हम उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की एक समिति के साथ काम कर रहे हैं।"
न्यायालय ने प्रतिवादी (उच्च न्यायालय) को याचिकाकर्ता द्वारा किए गए अभ्यावेदन पर शीघ्रता से निर्णय लेने के निर्देश के साथ मामले का निपटारा किया।
हालांकि कोर्ट ने निर्देश को समयबद्ध करने से इनकार कर दिया।
साहनी ने अपनी याचिका में कहा कि सिविल जजों का वर्तमान में अधिकतम आर्थिक क्षेत्राधिकार 3 लाख रुपए तक का है जो कि बेहद कम है।
साहनी ने कहा कि वहीं दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद के पड़ोस में जिला न्यायालय असीमित आर्थिक क्षेत्राधिकार का आनंद लेते हैं।
आगे यह भी कहा गया कि यदि सिविल जजों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाकर 20 लाख से 30 लाख रुपए हो जाए तो जिला और अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों पर बोझ कम पड़ेगा। इसी तरह हाईकोर्ट का बोझ कम हो जाएगा क्योंकि ऐसे मामलों से उत्पन्न होने वाली अपीलें हाईकोर्ट के बजाय एडीजे या जिला न्यायाधीशों के समक्ष दायर की जाएंगी।
केस का शीर्षक: अमित साहनी बनाम दिल्ली उच्च न्यायालय एंड अन्य।