सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत पत्नी के भरण-पोषण पाने का अधिकार तभी समाप्त हो सकता है जब व्यभिचार कृत्य को बार-बार किया जाए : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया है कि केवल निरंतर और बार-बार व्यभिचार (या व्यभिचार में सहवास) करने पर ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (4) के तहत प्रावधान की कठोरता लागू होगी।
सीआरपीसी की धारा 125(4) में कहा गया है कि कोई भी पत्नी अपने पति से भत्ता पाने की हकदार नहीं होगी यदि वह व्यभिचार में रह रही है, या बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है, या यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं।
जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने यह भी कहा कि भरण-पोषण पर बना कानून एक कल्याणकारी कानून है जो यह सुनिश्चित करने के लिए मौजूद है कि एक सक्षम और काबिल व्यक्ति की पत्नी, बच्चे और माता-पिता ऐसे मामलों में निराश्रित न हो जाएं जब वे खुद को बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं।
कोर्ट एक आपराधिक पुनर्विचार याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा 31 जुलाई, 2020 को पारित आदेश व फैसले को रद्द करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने 14 फरवरी, 2012 से 28 फरवरी, 2013 तक 6000 रुपये प्रति माह, 1 अप्रैल, 2014 से 31 दिसंबर, 2015 तक प्रति माह 6000 रुपये, 1 जनवरी, 2016 से 31 जुलाई, 2020 तक प्रति माह 7000 रुपये और 1 अगस्त, 2020 से पत्नी के जीवन या उसके पुनर्विवाह तक 15,000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया था।
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी पत्नी के बीच शादी 9 अप्रैल, 2000 को हुई थी। हालांकि, पार्टियों के बीच कई विवादों के कारण, दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ कई आपराधिक और दीवानी मामले, शिकायतें और एफआईआर दर्ज की गई हैं।
इस प्रकार याचिकाकर्ता का मामला यह है कि आक्षेपित आदेश स्पष्ट रूप से गलत व विकृत है और इसलिए रद्द किए जाने योग्य है। यह तर्क दिया गया कि फैमिली कोर्ट इस मामले में आक्षेपित आदेश पारित करते समय रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों, अन्य सामग्री और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रावधान की सराहना करने में विफल रहा है।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि पत्नी खुद को बनाए रखने में काफी सक्षम है और इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त आय अर्जित कर रही है। वहीं मामले के लंबित रहने के दौरान उसके रोजगार के तथ्य को उसने स्वयं जिरह के दौरान स्वीकार किया था। चूंकि, पत्नी के पास खुद को बनाए रखने के लिए पर्याप्त साधन हैं, इसलिए यह तर्क दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर आवेदन बनाए रखने योग्य नहीं था।
याचिकाकर्ता द्वारा अपनी पत्नी के खिलाफ व्यभिचार के आरोप लगाने के संबंध में, प्रतिवादी की तरफ से यह तर्क दिया गया कि यह केवल एक आरोप है और याचिकाकर्ता के पास व्यभिचार के आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि,
''पति द्वारा अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के लिए भरण-पोषण का अनुदान प्रावधान में निर्धारित शर्तों के अधीन है। पत्नी को भरण-पोषण देने के संबंध में, यह स्पष्ट है कि पति द्वारा अपनी पत्नी को उस मामले में भरण-पोषण प्रदान करना चाहिए जब वह खुद को बनाए रखने में असमर्थ हो और केवल यदि ऊपर उल्लिखित अपवाद मौजूद हैं, तो क्या पति भरण-पोषण का भुगतान करने के अपने कर्तव्य से बच सकता है?''
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के फैसलों से निकलने वाला कानून भरण-पोषण के भुगतान की स्थिति को स्थापित करता है, जिसमें कहा गया है कि क्रूरता का आधार पत्नी को उसके भरण-पोषण के अधिकार से वंचित नहीं करता है।
अदालत ने कहा, ''यहां तक कि ऐसे मामलों में जहां क्रूरता के आधार पर तलाक दिया जाता है, अदालतों ने पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता दिया है और पत्नी के भरण-पोषण का दावा करने के अधिकार में क्रूरता की कोई रोक नहीं है।''
इसलिए, न्यायालय ने माना कि क्रूरता और उत्पीड़न का आधार भरण-पोषण की राशि का भुगतान न करने का आधार नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून यह अनिवार्य करता है कि सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत प्रावधान लागू करने के लिए पति को निश्चित प्रमाण के साथ यह स्थापित करना होगा कि पत्नी व्यभिचार में रह रही है, और कभी किसी अवसर पर अकेले में एक बार किए गए व्यभिचार के कृत्यों को ''व्यभिचार में रहना'' नहीं माना जाएगा।
पीठ ने कहा,
''इसलिए, यह पाया गया है कि कानून, जैसा कि देश के विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा व्याख्या की गई है, यह दर्शाता है कि व्यभिचार और / या व्यभिचार में सहवास के निरंतर और बार-बार किए गए कृत्य ही सीआरपीसी की धारा 125 (4) के तहत प्रावधान की कठोरता को आकर्षित करेंगे।''
यह भी कहा कि,''सीआरपीसी की धारा 125 सहित देश में बनाए गए भरण-पोषण के कानून कल्याणकारी कानून हैं जो यह सुनिश्चित करने के लिए मौजूद हैं कि एक सक्षम और योग्य व्यक्ति की पत्नी, बच्चे और माता-पिता ऐसे मामलों में निराश्रित न रहें जब वे स्वयं खुद को बनाए रखने में सक्षम न हो। हालांकि, हाल ही में कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और पति पर लगाए गए दायित्व से बचने की एक प्रथा बन गई है, जिसका कोई आधार नहीं है।''
कोर्ट ने कहा कि तात्कालिक मामला भी एक ऐसा मामला है, जिसमें पक्षकारों ने कई शिकायतें और आपराधिक मामले दर्ज किए, जिनका कोई नतीजा नहीं निकला।
कोर्ट ने कहा,
''याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सभी प्रश्नों के संबंध में कानून का स्पष्ट आदेश होने के बावजूद भरण-पोषण के आदेश को चुनौती दी गई है। सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कानून के जनादेश, विभिन्न हाईकोर्ट की टिप्पणियों, और तथ्यों और वर्तमान मामले की परिस्थितियों के आलोक में यह न्यायालय तत्काल याचिका की अनुमति देने के लिए इच्छुक नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता इस न्यायालय के पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार के तहत आदेश को चुनौती देने के लिए कोई आधार दिखाने में विफल रहा है।''
तदनुसार, न्यायालय ने रिविजन याचिका को खारिज कर दिया और आक्षेपित आदेश को बरकरार रखा।
केस का शीर्षक-श्री प्रदीप कुमार शर्मा बनाम श्रीमती दीपिका शर्मा
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 324
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