'हिंदुओं की सहनशीलता का टेस्ट क्यों लिया जा रहा है?' इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'आदिपुरुष' के निर्माताओं को फटकार लगाई

Update: 2023-06-27 11:35 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भगवान राम और भगवान हनुमान सहित धार्मिक चरित्रों को आपत्तिजनक तरीके से चित्रित करने के लिए फिल्म आदिपुरुष के निर्माताओं की कड़ी आलोचना की है।

कोर्ट ने एक तीखी टिप्पणी में पूछा कि एक विशेष धर्म (हिंदू धर्म) की सहिष्णुता के स्तर को वे क्यों परखा जा रहा है। जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "जो सौम्य है, उसे दबा देना चाहिए? क्या ऐसा है? यह अच्छा है कि यह एक ऐसे धर्म के बारे में है, जिसके मानने वालों ने कानून व्यवस्था की समस्या पैदा नहीं की। हमें आभारी होना चाहिए। हमने समाचारों में देखा कि कुछ लोगों ने "सिनेमा हॉल में गए (जहां फिल्म प्रदर्शित हो रही थी) और उन्होंने केवल हॉल बंद करने के लिए दबाव डाला, वे कुछ और भी कर सकते थे।"

पीठ ने कहा कि सीबीएफसी को इस मामले में प्रमाणपत्र देते समय कुछ करना चाहिए था।

पीठ ने आगे कहा,

"अगर हम लोग इसपर भी आंख बंद कर लें क्योंकि ये कहा जाता है कि ये धर्म के लोग बड़े सहिष्‍णु हैं तो क्या उसका टेस्ट लिया जाएगा?"

कोर्ट ने यह टिप्पणी ओम राउत की फिल्‍म आदिपुरुष प्रदर्शन और संवादों के खिलाफ दायर दो जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए की। फिल्म का संवाद मनोज मुंतशिर शुक्ला ने लिखा है।

यह देखते हुए कि धार्मिक ग्रंथ, जिनके प्रति लोग संवेदनशील हैं, को छुआ नहीं जाना चाहिए या उनमें घुसपैठ नहीं करनी चाहिए, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि उसके समक्ष दायर याचिकाएं बिल्कुल भी प्रचार के लिए दायर याचिकाएं नहीं है और वे एक वास्तविक मुद्दे से संबंधित थीं।

पीठ ने आगे कहा कि कैसे भगवान हनुमान, भगवान राम, भगवान लक्ष्मण, सीता मां को ऐसे चित्रित किया गया जैसे कि वे कुछ भी नहीं थे। उत्तरदाताओं के इस तर्क के संबंध में कि फिल्म में एक अस्वीकरण जोड़ा गया था, पीठ ने कहा,

"क्या डिस्क्लेमर लगाने वाले लोग देशवासियों और युवाओं को बुद्धिहीन मानते हैं? आप भगवान राम, भगवान लक्ष्मण, भगवान हनुमान, रावण, लंका दिखाते हैं और फिर कहते हैं कि यह रामायण नहीं है?"

कोर्ट ने भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया कि जब फिल्म में प्रथम दृष्टया आपत्तिजनक दृश्य और संवाद हैं तो वह फिल्म का बचाव कैसे करेंगे। हालांकि, अदालत ने उनसे इस मामले में सक्षम प्राधिकारी से निर्देश लेने को कहा।

जब ‌डिप्टी एसजीआई ने पीठ को सूचित किया कि फिल्म के कुछ आपत्तिजनक संवादों को बदल दिया गया है, पीठ ने जवाब दिया, "अकेले इतने से काम नहीं चलेगा। आप दृश्यों का क्या करेंगे? निर्देश लें, फिर हम जो करना चाहते हैं वो जरूर करेंगे...अगर फिल्म का प्रदर्शन रोका गया तो जिन लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं , राहत मिलेगी।”

कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं में से एक की वकील रंजना अग्निहोत्री ने बताया कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और ऐसा पीके, मोहल्ला अस्सी, हैदर आदि फिल्मों में भी हो चुका है।

अंत में, अदालत ने फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला को जनहित याचिका में प्रतिवादी पक्ष के रूप में शामिल करने की मांग करने वाली याचिका को स्वीकार कर लिया और उन्हें नोटिस जारी करने का निर्देश दिया।

दिसंबर में दायर की गई थी जनहित याचिका

हाईकोर्ट की पीठ सामाजिक कार्यकर्ता कुलदीप तिवारी और बंदना कुमार की ओर से से वकील रंजना अग्निहोत्री और सुधा शर्मा के माध्यम से पिछले साल दिसंबर में दायर जनहित याहिका पर सुनवाई कर रही थी। उक्त याचिका के तहत हाल ही में एक संशोधन आवेदन दायर किया गया था।।

याचिका में कहा गया है कि फिल्म महान महाकाव्य रामायण के पात्रों पर आक्षेप लगाती है और अयोध्या की सांस्कृतिक विरासत की छवि को धूमिल करती है।

संशोधन याचिका में कहा गया है,

"मनोज मुंतशिर ने समृद्ध संस्कृति और सबसे पुरानी सभ्यता यानी सनातन संस्कृति पर हमला किया है, और फिल्म के संवाद लिखते समय, उन्होंने हमारे देवताओं की भाषा को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है, हमारे आइकन और रोल मॉडल के चरित्रों का हनन किया है...(शुक्ला) ने रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर आपत्तिजनक, बहुत निम्न स्तर के, सस्ते और हास्यास्पद संवाद लिखे हैं ... फिल्म में धार्मिक पात्रों को गलत और अनुचित तरीके से प्रस्तुत करके हिंदू समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचा गया है, जो महर्षि वाल्मिकी और संत तुलसीदास जैसे लेखकों द्वारा दिए गए विवरणों के खिलाफ है।"

याचिका में फिल्म के ट्रेलर को भद्दा और अश्लील कहा गया, जिसके परिणामस्वरूप हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत हुई।

संशोधन याचिका में कहा गया है, "फिल्म में रावण और भगवान हनुमान जैसे पात्रों का चित्रण पूरी तरह से भारतीय सभ्यता से अलग है। फिल्म में सैफ अली खान द्वारा निभाया गया रावण का दाढ़ी वाला लुक हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत कर रहा है, ब्राह्मण रावण को कच्चा लाल मांस खिलाते दिखाया गया है, वह गलत तरीके से भयानक चेहरा बना रहा है, जो हिंदू सभ्यता का अपमान है।"

संशोधन याचिका में फिल्म से आपत्तिजनक संवादों और दृश्यों को हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

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