जब अभियुक्तों को अपराध से जोड़ने के लिए पर्याप्त सबूतों की कमी हो तो अन्य पुष्ट साक्ष्य महत्वहीन हो जाते हैं: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2022-07-16 09:12 GMT

Gujarat High Court

गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि जिस मामले में किसी आरोपी को अपराध से जोड़ने के लिए पर्याप्त सबूतों की कमी है, वहीं अन्य पुष्ट साक्ष्य अपना महत्व खो देते हैं।

जस्टिस एसएच वोरा और जस्टिस राजेंद्र सरीन की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 143, 147, 148 और 302 और बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 135(1) के तहत एक आपराधिक मामले में सत्र न्यायालय द्वारा पारित बरी के आदेश को बरकरार रखा।

हाईकोर्ट ने बरी के आदेश में किसी भी हस्तक्षेप के लिए प्रत्यक्ष, मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य की कमी का हवाला दिया।

बेंच ने पाया कि मृतक-पीड़ित की एक बहन थी, जिसके साथ पीड़ित की हत्या से पांच साल पहले छेड़छाड़ हुई थी। जिसके का बाद कहासुनी हुई थी और अंततः पीड़ित की मृत्यु हो गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार, सभी पांचों आरोपियों ने मृतक की हत्या करने के सामान्य इरादे से एक गैरकानूनी बैठक की थी। वे लाठियों और पाइपों से भी लैस थे और पीड़ित पर वार किए। नतीजतन, उसे गंभीर चोटें आईं। पीड़ित को अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।

अभियोजन पक्ष ने निचली अदालत के समक्ष आरोपों के समर्थन में 14 गवाह पेश किए। आपराधिक अपील के लंबित रहने के दरमियान ही अभियुक्त 4 की मृत्यु हो गई। बेंच ने पाया कि बड़ी संख्या में अभियोजन पक्ष के गवाह मुकर गए। एक बाल गवाह ने पहले हमलावरों के नाम बताए थे और शिकायतकर्ता को हमलावरों के बारे में जानकारी दी थी। हालांकि, बयान के दरमियान उसने कहा कि उसने कोई नाम नहीं बताया था और अपराध नहीं देखा था।

बच्ची ने यह भी स्वीकार किया कि जब उसके पिता के सिर पर पहला पाइप मारा गया, तो वह रोती हुई भाग गई थी। इसलिए निचली अदालत ने बाल गवाह को चश्मदीद गवाह मानने से इनकार कर दिया था।

अन्य स्वतंत्र पुष्टिकारक साक्ष्य का भी अभाव था जो उचित संदेह से परे प्रतिवादी के अपराध को साबित कर सके। छेड़खानी की घटना को अभियोजन द्वारा अपराध करने के मकसद के रूप में उद्धृत किया गया था, जिसे ट्रायल जजने अतार्किक पाया गया था, जिसकी पुष्टि हाईकोर्ट ने की थी।

नतीजतन बेंच ने कहा, 

"जब प्रतिवादी अभियुक्तों को अपराध से जोड़ने के लिए पर्याप्त सबूतों की कमी है या अपराध को स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत रिकॉर्ड पर नहीं पेश कियए जाते हैं, तो अन्य पुष्टिकारक साक्ष्य अपना महत्व खो देते हैं..।"

हाईकोर्ट ने आपराधिक न्यायशास्त्र के मुख्य सिद्धांत पर भी जोर दिया कि एक बरी अपील में यदि अन्य दृष्टिकोण संभव है तो अपीलीय न्यायालय दोषमुक्ति को दोषसिद्धि में उलट कर अपने स्वयं के दृष्टिकोण को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता जब तक कि निचली अदालत के निष्कर्ष विकृत न हों, रिकॉर्ड पर मौजूदा सामग्री के विपरीत न हों या स्पष्ट रूप से गलत हो।

तद्नुसार अपील खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम किशोरभाई देवजीभाई परमार और 4 अन्य

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