कैसी रिपोर्टिंग 'मीडिया ट्रायल' है? बॉम्बे हाईकोर्ट ने जारी किए दिशा निर्देश
सुशांत सिंह राजपूत मामले में हुए 'मीडिया ट्रायल' को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर दिए 251 पन्नों के फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि मीडिया को किसी चल रही जांच को रिपोर्ट करने से बचना चाहिए और उन तथ्यों को पेश करना चाहिए कि जो जनता के हित में हो, अपेक्षाकृत कि "मीडिया के अनुसार, जनता की उसे जानने में रुचि है।"
चीफ जस्टिस दीपंकत दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देश दिया कि वे कुछ मामलों या किसी विशेष मामले की जांच (निलेश नवलखा और यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य और दूसरे जुड़े मामले) की रिपोर्टिंग करते समय समाचार, बहस, साक्षात्कार, चर्चा से परहेज करें और संयम बरतें। उन्होंने कहा, कोई रिपोर्ट/ चर्चा/बहस या साक्षात्कार ऐसा नहीं होना चाहिए, जो अभियुक्त के हितों या गवाह के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है.....।
फैसले में एक 'संकेतात्मक, हालांकि संपूर्ण नहीं' सूची दी गई, जो जारी जांच के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करती हैं, जो इस प्रकार हैं: -
a) आत्महत्या के मामले में, मृतक को कमजोर चरित्र का बाताना या मृतक की निजता में घुसपैठ करना;
b) यह जारी जांच में पक्षपात का कारण बनता है:
(i) आरोपी/ पीड़ित के चरित्र का हवाला देना और दोनों के खिलाफ पूर्वाग्रह का वातावरण बनाना;
(ii) पीड़ित, गवाहों और / या उनके परिवार के सदस्यों के का साक्षात्कार लेनाऔर इसे टीवी पर दिखाना;
(iii) गवाहों के बयानों का विश्लेषण, जो साक्ष्य परीक्षण के चरण में महत्वपूर्ण हो सकते हैं;
(iv) किसी आरोपी द्वारा पुलिस को दिए गए इकबालिया बयान को प्रकाशित करना और जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करना कि वही सबूत है, जो न्यायालय के समक्ष स्वीकार्य है और न्यायालय द्वारा उस पर कार्यवाई न करने का कोई कारण नहीं है..
(v) किसी आरोपी की तस्वीरें छापना और जिससे उसकी पहचान आसान हो सके;
(vi) उचित शोध के बिना अधकचरी जानकारी के आधार पर जांच एजेंसी की आलोचना करना;
(vii) मामले के गुणों पर फैसला देना, जिसमें अपराध या निर्दोषता का पूर्व-निर्धारण करना एक अभियुक्त या एक व्यक्ति के संबंध, जिसकी अभी तक मामले में आवश्यकता नहीं है, जैसा कि मामला हो सकता है;
(viii) अपराध स्थल का पुनर्निर्माण करना और यह दिखाना कि अभियुक्त ने अपराध कैसे किया;
(ix) जांच को पूरा करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों सहित प्रस्तावित / भविष्य की कार्रवाई के प्रस्ताव का अनुमान लगाना;
(x) जांच एजेंसी द्वारा एकत्रित सामग्री से संवेदनशील और निजी जानकारी लीक करना;
c) केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम की धारा 5, अधिनयम की धारा 6 के साथ पढ़ें, के तहत निर्धारित प्रोग्राम कोड के प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए किसी भी तरीके की कार्रवाई करना, और इस तरह अदालत की अवमानना को आमंत्रित करना,
d) किसी भी व्यक्ति की चरित्र हत्या में लिप्त होना और उसकी प्रतिष्ठा का हनन करना।
पीठ ने कहा कि उक्त दिशानिर्देश संपूर्ण नहीं है, सांकेतिक हैं। प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा की गई किसी भी रिपोर्ट को प्रोग्राम कोड, पत्रकारिता के मानकों और नैतिकता और प्रसारण नियमों के अनुरूप होना चाहिए; इनका उल्लंघन होने पर, प्रचलित नियामक तंत्र के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
कोर्ट ने कहा, "गलती कर रहा मीडिया हाउस खुद को अवमानना की कार्रवाई का सामना करने के लिए उत्तरदायी बना सकता है, अर्थात, न्यायालय की अवमानना अधिनियम की धारा 2 (c) के अर्थ के तहत आपराधिक अवमानना, जो कि जब शुरू की जाती है, तो उस पर स्पष्ट रूप से योग्यता के आधार पर और कानून के अनुसार सक्षम न्यायालय द्वारा निर्णय लेना होगा।
कोर्ट ने अपने फैसले सुशांत मामले में रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ की रिपोर्टों पर भी तीखी टिप्पणियां की और कहा कि इस तरह की रिपोर्ट 'प्रथमदृष्टया अवमानना' हैं।
कोर्ट ने बेलगाम मीडिया ट्रायल के कारण जांच में पैदा हुए पूर्वाग्रह के कुछ उदाहरण भी दिए। न्यायालय ने दिखाया कि कैसे ऐसी मीडिया रिपोर्टें अभियुक्तों, गवाहों, पुलिस आदि को कैसे प्रभावित कर सकती हैं।
1. आरोपी पर प्रभाव, उसे पहरे पर रखा जा सकता है। यदि किसी आरोपी को पुलिस द्वारा फंसाया नहीं जा रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि जांचकर्ता ने उसकी ओर आंख मूंद रहा है। एक पुलिस जांच का सार कुशल जांच और सामग्री और साक्ष्य का संग्रह है, जिससे संभावित अपराधियों पूर्व चेतावनी न प्राप्त हो। मीडिया द्वारा अनावश्यक हस्तक्षेप, अभियुक्त सबूत नष्ट कर सकता है और फरार होकर गिरफ्तारी से बच सकता है।
2. निर्दोष व्यक्ति पर प्रभाव- अगर किसी निर्दोष व्यक्ति को मुख्य आरोपी के साथ अभियुक्त के रूप में पेश किया जाता है और मीडिया रिपोर्टिंग के आधार पर जांच एजेंसी उसे परेशान करती है तो यह उसकी प्रतिष्ठा के लिए नुकसानदेह होगा।
3. महत्वपूर्ण गवाह पर प्रभाव, उसे धमकी दी जा सकती है या उसे शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाया जा सकता है ताकि वह सबूत न पेश करे।
4. जांचकर्ता पर प्रभाव- मानवीय विफलताओं के कारण, जांचकर्ता मीडिया रिपोर्टों से प्रभावित हो सकता। जांच के सही ट्रैक को छोड़ सकता है और गलत ट्रैक का अनुसरण कर सकता है।
Bombay High Court gives illustrations on how media trial can impact the accused, witnesses, investigator and the trial. https://t.co/MN1QeB7xMm pic.twitter.com/SNQVb9bAJW
— Live Law (@LiveLawIndia) January 18, 2021
जजमेंट डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें