"हमें भरोसा है कि दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वही करेंगे, जो जरूरी होगा", सुप्रीम कोर्ट ने फिजिकल सुनवाई पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका निस्तारित की
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट के बड़े पैमाने पर फिजिकल सुनवाई शुरू करने के फैसले के खिलाफ दायर दो याचिकाओं को 'वापस ले ली जाएं' के रूप में निस्तारित कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने 18 जनवरी से खुद के समक्ष और अधीनस्थ अदालतों में बड़े पैमाने पर फिजिकल सुनवाई को शुरु करने का आदेश दिया था, जिसमें वकीलों को वर्चुअल मोड में पेश होने का विकल्प नहीं दिया गया था।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे की अध्यक्षता में एक खंडपीठ ने सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल की दलीलों के बाद याचिकाओं का निस्तारण कर दिया। सिब्बल ने कहा इस मुद्दे पर चर्चा के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार-जनरल के साथ बैठक निर्धारित की गई है।
अदालत में जिरह
बुधवार की सुनवाई में सिब्बल ने कहा कि हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार-जनरल ने बुधवार की शाम 4 बजे चर्चा के लिए एक बैठक बुलाई और उन्होंने मामले में स्थगन की मांग की। हालांकि, सीजेआई ने सिब्बल को याचिका वापस लेने और दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा। सीजेआई ने कहा, "हमें विश्वास है कि दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जो आवश्यक होगा, वह करेंगे।"
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी फिजिकल सुनवाई की ओर लौटना चाहता है, हालांकि, इस मामले पर स्वास्थ्य अधिकारियों की राय मांगी जाएगी।
इस मौके पर वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि वर्चुअल सुनवाई से आम आदमी को न्याय नहीं मिल रहा है। सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने इस दलील का खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि न्यायालयों ने किसी भी नागरिक को न्याय उपलब्ध कराने से इनकार नहीं किया है।
19 जनवरी की जिरह
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने मंगलवार को फिजिकल सुनवाई फिर से शुरू करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ वकीलों के एक समूह की याचिका पर विचार करते हुए कहा था, "हम समस्या की गंभीरता को देखते हैं।" (कार्तिक नायर और अन्य बनाम दिल्ली हाईकोर्ट)
सीजेआई ने कहा कि आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के प्रशासनिक निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करता। इसलिए, उन्होंने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ताओं को आदेश के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष जाना चाहिए।
सीजेआई बोबडे ने कहा, "हम समस्या की गंभीरता को देखते हैं। मुख्य रूप से, हम मुख्य न्यायाधीशों के प्रशासनिक निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। हम आपको हाईकोर्ट में वापस जाने और आपकी शिकायतों को दूर करने के लिए कहेंगे।"
जवाब में, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इसमें "स्पष्ट और मौजूदा खतरा" है, क्योंकि इससे वकीलों को COVID-19 से संक्रमित होने का खतरा होगा। उन्होंने कहा कि वर्चुअल सुनवाई के विकल्प को पूरी तरह से हटाना और यह कहना कि शारीरिक सुनवाई में कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा, वर्तमान स्थितियों अनुचित है।
इस पर सीजेआई ने कहा, "हम समझते हैं।"
सिब्बल ने न्यायालय से एक आदेश पारित करने का आग्रह किया, जिसमें कहा जाए कि फिजिकल सुनवाई वैकल्पिक है। अगर सुप्रीम कोर्ट पार्टियां को हाईकोर्ट भेज रहा है तो हाईकोर्ट द्वारा फैसले के लंबित होने के दौरान वर्चुअल मोड का विकल्प उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
इस बिंदु पर, सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि इस मामले पर अगले दिन विचार किया जाएगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश ने पीठ को बताया कि महिला वकीलों के एक समूह ने एक याचिका दायर की है, जिसमें फिजिकल सुनवाई को फिर से शुरू करने को चुनौती दी गई है और पीठ से 20 जनवरी को भी उक्त याचिका को टैग करने का अनुरोध किया गया है।
याचिका की पृष्ठभूमि
पीठ ने 18 जनवरी से दिल्ली हाईकोर्ट के खुद के समक्ष और अधीनस्थ न्यायालयों में बड़े पैमाने पर फिजिकल सुनवाई को फिर से शुरू करने के फैसले के खिलाफ याचिका पर विचार किया, जिसमें वकीलों को वर्चुअल मोड के माध्यम से पेश होने का विकल्प नहीं दिया गया था।
अधिवक्ता कार्तिक नायर, नैंसी रॉय, संचित जॉली और अमित भगत ने दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के आदेश को चुनौती दी। 14.01.2021 के आदेश में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीशों और प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय को फिजिकल सुनवाई शुरू करने का निर्देश दिया गया था। आदेश में कहा गया था कि 18.01.2020 से एक दिन के अंतराल पर फिजिकल सुनवाई शुरु की जाए। कोर्ट नॉन-फिजिकल दिनों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामलों की सुनवाई करेगा।
अधिवक्ता अमृता शर्मा, सौम्या टंडन, पद्म प्रिया, अस्मिता नरूला, शिवानी लूथरा, जो दिल्ली हाईकोर्ट के साथ-साथ दिल्ली के जिला न्यायालयों के समक्ष महिला अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस कर रही हैं, ने भी सुप्रीम कोर्ट में ऑफिस ऑर्डर को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि उक्त आदेश से अदालत में पेश होने वाले अधिवक्ताओं, अदालत के कर्मचारियों, वादियों और अन्य व्यक्तियों और उनके परिवार के सदस्यों पर संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा।
याचिका में कहा गया कि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 14.01.2021 को जारी सार्वजनिक अधिसूचना कोर्ट में होने वाले वकीलों और अन्य कानूनी व्यक्तियों के व्यक्तिगत और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट के फैसला दिल्ली के वकील, क्लर्क, कोर्ट स्टाफ, सपोर्ट स्टाफ, जज, और वादियों की भलाई, जीवन, स्वतंत्रता और स्वास्थ्य को ध्यान में रखने में बुरी तरह से विफल रहा है, और उन्हें व्यक्तिगत रूप से अदालत की सुनवाई में भाग लेने के लिए मजबूर कर रहा है और इस तरह यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।"
याचिका में अपील की गई कि "माननीय न्यायालय को एक हाइब्रिड प्रणाली शुरू करनी चाहिए, जिसमें अधिवक्ता अपने या अपने परिवार के स्वास्थ्य और कल्याण की चिंता में आभासी या व्यक्तिगत रूप से पेश होने का विकल्प चुन सकते हैं।"
याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट इस तथ्य की सराहना करने में विफल रहा कि राजस्थान और मद्रास जैसे कई हाईकोर्टों फिजिकल सुनवाई शुरू करने के बाद बंद कर दिया।