बलात्कार का झूठा आरोप लगाने का मामला : सात साल तक मुकदमे का सामना करने वाले व्यक्ति को चेन्नई कोर्ट ने 15 लाख रुपये मुआवजा दिया

Update: 2020-11-24 04:00 GMT

चेन्नई की एक अदालत (XVIII एडिशनल सिटी सिविल कोर्ट, चेन्नई) ने संतोष नामक एक व्यक्ति को मुआवजे के रूप में 15 लाख दिए हैं। उसे बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था (जब वह एक कॉलेज का छात्र था।) और उसे 7 साल से अधिक समय तक मुकदमे का सामना करना पड़ा।

XVIII एडिशनल सिटी सिविल कोर्ट, चेन्नई डॉ आर सत्या संतोष इस मामले में वादी संतोष की तरफ दायर एक मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे। यह मुकदमा ऑर्डर VII,रूल 1सीपीसी के तहत दायर किया गया था और मांग की गई थी कि प्रतिवादियों (महिला और उसकी मां) को निर्देश दिया जाए कि वह संयुक्त रूप से या अलग-अलग उसे क्षति व लागत के रूप में तीस लाख रुपये दे।

लाइव लॉ से बात करते हुए, याचिकाकर्ता संतोष के वकील ए सिराजुद्दीन ने बताया कि जजमेंट पर तारीख गुरुवार (23 जनवरी 2020) की है,परंतु उसे शनिवार (1 फरवरी 2020) को खुली अदालत में सुनाया गया था। लेकिन इस फैसले को पिछले हफ्ते ही ऑनलाइन जारी किया गया था, यानी 9 महीने से अधिक समय बाद इसे डिलिवर किया गया है। हालांकि, उन्हें अभी तक जजमेंट की प्रमाणित प्रति नहीं मिल सकी है।

केस की पृष्ठभूमि

संतोष को इस मामले में बरी कर दिया गया था क्योंकि कथित पीड़िता ने जिस बच्चे को जन्म दिया था,उसकी डीएनए रिपोर्ट से पता चला था कि सन्थोष उसे बच्चे का पिता नहीं है। बरी होने के बाद सन्थोष ने कथित पीड़िता के खिलाफ मुआवजे का मुकदमा दायर करते हुए कहा था कि उसे बलात्कार के झूठे मामले में फंसाया गया था।

महिला और उसकी मां के खिलाफ दायर मुकदमे में याचिकाकर्ता सन्थोष ने प्रार्थना की थी कि झूठे बलात्कार के आरोप ने उसके करियर और जीवन को बर्बाद कर दिया है।

लाइव लॉ से बात करते हुए, संतोष के वकील ए सिराजुद्दीन ने कहा कि संतोष और महिला का परिवार पड़ोसी थे और चूंकि वे एक ही समुदाय से संबंध रखते थे, इसलिए परिवारों के बीच यह सहमति बनी थी कि संतोष महिला से शादी करेगा।

बाद में, एक संपत्ति विवाद के बाद, दोनों परिवारों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए, जिसके बाद वादी और उसके परिवार के सदस्यों ने घर छोड़ दिया और वे मोगापेयर वेस्ट में जाकर रहने लग गए थे। इसके बाद वादी ने एसआरआर इंजीनियरिंग कॉलेज, पाडुर, ओएमआर,चेन्नई में बीटेक (आईटी) की पढ़ाई शुरू कर दी।

हालांकि, 2009 में, महिला की मां उसके घर आई और दावा किया कि उसने उसकी बेटी को गर्भवती कर दिया है। इसलिए परिवार उनके विवाह की तुरंत व्यवस्था करे लेकिन संतोषऔर उसके परिवार ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया और कहा कि संतोष ने उसकी बेटी को गर्भवती नहीं किया है।

इसके बाद वादी संतोष के खिलाफ झूठी सूचना के आधार पर एक रिपोर्ट दर्ज की गई और पुलिस ने संतोष के खिलाफ आईपीसी की धारा 417 व 376 के तहत किए गए अपराध के संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज कर ली।

उक्त प्राथमिकी के संबंध में, उसे नवंबर 2009 में गिरफ्तार किया गया था और वह 95 दिनों तक हिरासत में रहा और फरवरी 2010 में बाहर आया। इस बीच महिला ने एक बच्ची की जन्म दे दिया था।

मामला सुनवाई के लिए गया और अदालत ने एहतियात के साथ रक्त के नमूने लेने का निर्देश दिया और डीएनए टेस्ट के परिणाम ने बताया कि वादी बच्चे का पिता नहीं था और उक्त रिपोर्ट को ट्रायल कोर्ट में बचाव दस्तावेज के रूप में चिह्नित किया गया था और 10 फरवरी 2016 को महिला न्यायालय, चेन्नई ने वादी को सभी आरोपों से बरी कर दिया था।

कोर्ट का आदेश

वादी द्वारा पेश साक्ष्यों व रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय का यह विचार यह था कि वादी सन्थोष के खिलाफ लगाए गए दुर्भावनापूर्ण आरोपों के लिए प्रतिवादी नंबर एक (महिला) और प्रतिवादी नंबर 2 (महिला की माँ) ही जिम्मेदार हैं।

न्यायालय ने आगे कहा कि वादी यह साबित कर पाया है कि प्रतिवादी नंबर एक व दो ने झूठी शिकायत की थी और जिसके आधार पर वादी पर मुकदमा चलाया गया था।

न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रतिवादी नंबर एक व दो की झूठी शिकायत ने वादी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया और वादी को इस झूठे मामले के लंबित होने के कारण एक कमर्शियल वाहन चलाने के लिए बैज भी नहीं मिल पाया था। वहीं इस केस के कारण उसे नुकसान उठाना पड़ा था और लीगल फीस पर काफी पैसा खर्च करना पड़ा था। उसे 95 दिनों तक जेल में भी रहना पड़ा था। वहीं लगभग 7 साल तक आपराधिक मामले में मुकदमे का सामना करना पड़ा।

परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट ने कहा,

''इस न्यायालय का विचार है कि वादी ने मौखिक और दस्तावेजी दोनों प्रकार के साक्ष्य के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठा को पहुंचे नुकसान और आर्थिक नुकसान को साबित कर दिया है और वह  क्षतिपूर्ति पाने का हक़दार हैं।''

कोर्ट ने आदेश दिया,

''प्रतिवादी 1 और 2 वादी को हर्जाने का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं और मुकदमे को आंशिक रूप से स्वीकार करते प्रतिवादी 1 और 2 को निर्देश दिया है कि वह संयुक्त रूप से या अलग-अलग वादी को 15 लाख रुपये के हर्जाने का भुगतान करें।''

अंत में कोर्ट ने आंशिक रूप से सूट को स्वीकार करते हुए प्रतिवादी 1 और 2 को निर्देश दिया है कि वह संयुक्त रूप से और अलग-अलग लागत के साथ वादी को 15 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति का भुगतान करें।

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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