विधेय अपराध का 'पीड़ित' यूपी गैंगस्टर एक्ट मामले में जमानत याचिका का विरोध कर सकता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक विधेय अपराध का पीड़ित यूपी गैंगस्टर एक्ट के तहत आरोपित व्यक्ति की जमानत याचिका का विरोध करने के लिए सुनवाई के अधिकार का दावा कर सकता है।
सुधा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य एलएल 2021 एससी 229 और जगजीत सिंह और अन्य बनाम आशीष मिश्रा @ मोनू और अन्य 2022 लाइवलॉ (एससी) 376 के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को ध्यान में रखते हुए, जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने कहा,
"यदि विधेय अपराध का शिकार गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध में जमानत आदेश के खिलाफ अपील दायर कर सकता है, तो उसे निश्चित रूप से उक्त अधिनियम के तहत अपराध में जमानत आवेदन का विरोध करने का अधिकार है और उसके लिए उसे गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध के शिकार के रूप में माना जाना चाहिए।
जहां एक विधेय अपराध का शिकार जमानत आवेदन के विरोध में प्रस्तुतियां देकर कार्यवाही में भाग लेने के लिए आगे आया है, उसे सुनवाई का एक अवसर दिया जाना चाहिए।"
इसके साथ, सिंगल जज ने ज़ेबा रिजवान बनाम यूपी राज्य, 2022 एससीसी ऑनलाइन इलाहाबाद 352 के मामले में समन्वय पीठ के फैसले से असहमति व्यक्त की, जिसमें यह माना गया था कि एक विधेय अपराध के शिकार को गैंगस्टर अधिनियम के तहत अपराध का शिकार एक नहीं माना जा सकता है और ऐसा करने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा और यह मामलों के निस्तारण में बाधा पैदा करेगा।
मामला
अदालत रमेश राय उर्फ मटरू राय द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसके खिलाफ 4 मामले दर्ज होने के आधार पर उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एंड एंटी सोशल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन एक्ट), 1986 के तहत मामले में जमानत की मांग की गई थी।
इनमें से एक मामला आईपीसी की धारा 448, 386, 504, 506, 420, 120-बी, 34 आईपीसी और यूपी रेगुलेशन ऑफ मनी लेंडिंग एक्ट की धारा 10 (i), 10 (ii), 22 और 23 के तहत केस क्राइम नंबर 74 ऑफ 2022 था। जमानत याचिका की सुनवाई के दरमियान, 'शिकायतकर्ता' के साथ-साथ मामले के 'पीड़ित' पेश हुए और जमानत अर्जी का विरोध करने की मांग की।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को ध्यान में रखते हुए, निष्कर्ष निकाला कि चूंकि शिकायतकर्ता विधेय अपराध का शिकार होने का दावा करता है, उसे वर्तमान अपराध का शिकार माना जाना चाहिए और उसे जमानत अर्जी के विरोध में प्रस्तुतियां करने का अधिकार है।
इसे देखते हुए, जमानत आवेदक की ओर से उठाई गई आपत्ति को खारिज कर दिया गया और अदालत ने जमानत आवेदन के विरोध में सूचनाकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों पर विचार करने के बाद उसके गुण-दोष के आधार पर आवेदन का फैसला किया।
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि आवेदक को केवल पुलिस के पास उपलब्ध रिकॉर्ड के अवलोकन के आधार पर गैंगस्टर मामले में फंसाया गया था, और वह भी एक जीप में गश्त के दरमियान, और इसलिए, न्यायालय प्रथम दृष्टया निष्कर्ष पर पहुंचा कि आवेदन का गैंगस्टर है, यह साबित करने के लिए आवश्यक सामग्री के बिना पुलिस ने उसे फंसाया था। अदालत ने उक्त टिप्पणी के साथ्घ जमानत याचिका को स्वीकार कर लिया।
केस टाइटल- रमेश राय @ मटरू राय बनाम यूपी राज्य
केस साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (एबी) 528