विवाह की वैधता किसी कपल के जीवन और स्वतंत्रता के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहींः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2021-05-24 07:30 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने फिर से पुष्टि की है कि संरक्षण याचिकाओं में, विवाह की वैधता से जुड़े सवाल कपल के जीवन और स्वतंत्रता के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकते हैं।

जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी की सिंगल बेंच ने कहा,

''वर्तमान याचिका का दायरा केवल याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के संबंध में है, इसलिए विवाह की वैधता इस तरह के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है।''

राजविंदर कौर व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य के मामले में वर्ष 2014 में हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच द्वारा इस पोजिशन का निपटारा किया गया था,जहां माना गया था कि एक भागे हुए जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने के लिए शादी जरूरी नहीं है; पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था कि कोई भी इस कपल के जीवन और स्वतंत्रता को कोई नुकसान न पहुंचा पाए।

इस मामले में याचिकाकर्ता, 21 वर्ष की आयु की एक महिला और 22 वर्ष के एक पुरुष ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने अपनी स्वतंत्र सहमति से एक-दूसरे से शादी की थी। उन्होंने बताया कि महिला मुस्लिम धर्म से संबंध रखती थी,परंतु बाद में उसने हिंदू धर्म अपना लिया और उसके बाद याचिकाकर्ता नंबर दो से शादी कर ली थी।

यह कहा गया था कि निजी प्रतिवादियों ने उनकी शादी का विरोध किया था और इसलिए निजी प्रतिवादियों से उनको गंभीर खतरा है।

उन्होंने तर्क दिया कि भले ही उनकी शादी वैध नहीं है,परंतु भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के अधिकार की गारंटी सभी को दी गई है।

उपरोक्त प्रस्तुतियों को देखते हुए, एकल पीठ ने आदेश दिया किः

''यह निर्देश दिया जाता है कि प्रतिवादी नंबर 3 प्रतिनिधित्व (अनुलग्रक पी-4) पर विचार करे और यदि आवश्यक हो तो याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करे। यह स्पष्ट किया जाता है कि वर्तमान निर्देश केवल याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के उद्देश्य से जारी किया जा रहा है और इसका विवाह की वैधता पर कोई भी प्रभाव नहीं होगा।''

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष प्रतिदिन बड़ी संख्या में संरक्षण याचिकाएं दायर की जाती हैं। इस प्रकार एकल पीठ ने सुझाव दिया है कि इन मामलों की सुनवाई अधीनस्थ अदालतों द्वारा की जाए, ताकि हाईकोर्ट पर बोझ कम हो।

हाल ही में, हाईकोर्ट की एक और एकल पीठ ने कार्यकारी अधिकारियों से ऐसे जोड़ों के जीवन को सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी लेने का आह्वान किया था ताकि न्यायालयों पर बोझ कम हो।

वहीं इस मामले में पंजाब सरकार ने अदालत को सूचित किया कि एक ऐसी व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है जिसके तहत भागे हुए जोड़ों द्वारा अपने जीवन के लिए खतरे की आशंका की शिकायत करने के 24 घंटे के भीतर इन शिकायतों को उपायुक्त को भेज दिया जाए। जिसके बाद उपायुक्त समिति या संबंधित एसएसपी की मदद से 48 घंटों के भीतर खतरे की आशंका का आकलन कर ले और उसके तुरंत बाद आवश्यक कार्रवाई की जा सके।

सरकार ने यह भी उल्लेख किया कि एक राज्य स्तरीय शिकायत निवारण पोर्टल पहले से मौजूद है। उसी में सुरक्षा चाहने वाले जोड़ों की सहायता के लिए विशेष रूप से एक नया टैब बनाया जाएगा।

केस का शीर्षकः फरजाना बेगम उर्फ अमन व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य

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