बॉम्बे हाईकोर्ट में नॉन वेज फूड के विज्ञापन पर बैन लगाने की मांग वाली जनहित याचिका दायर

Update: 2022-09-26 06:27 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट

नॉन वेज फूड के विज्ञापन पर बैन लगाने की मांग करते हुए तीन जैन धार्मिक धर्मार्थ ट्रस्टों ने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) में जनहित याचिका दायर की।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह का प्रचार शांति से रहने के अधिकार का पूरी तरह से उल्लंघन है।

याचिका में कहा गया है,

"जो नॉन वेज फूड खाना चाहते हैं, तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन शाकाहारी लोगों के घरों में नॉन वेज फूड का विज्ञापन दिखाना उचित नहीं है और यह संवैधानिक और मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है।"

इस मामले में याचिकाकर्ता आत्मा कमल लब्धिसूरीश्वरजी जैन ज्ञानानंदिर ट्रस्ट, शेठ मोतीशा धार्मिक और धर्मार्थ ट्रस्ट, श्री वर्धमान परिवार और व्यवसायी ज्योतिंद्र रमणिकलाल शाह हैं।

इस मामले में केंद्र सरकार, महाराष्ट्र राज्य, भारतीय विज्ञापन मानक परिषद और 'लाइसिस' जैसे ब्रांडों के स्वामित्व वाली निजी मांस कंपनियों को प्रतिवादी बनाया गया है।

याचिका में मांग की गई है कि किसी भी मीडिया में मांसाहारी भोजन के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने के लिए अधिकारियों को नियम या दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया जाए।

याचिका में यह भी कहा गया है कि मांसाहारी भोजन का सेवन स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

याचिका में पैकेज्ड नॉन-वेज उत्पादों पर चेतावनी छापने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।

वकील गुंजन पी शाह के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है,

"मांसाहारी खाद्य पदार्थों का विज्ञापन गंभीर रूप से असंवैधानिक है क्योंकि यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है जो जीवन के अधिकार प्रदान करता है जिसमें किसी व्यक्ति की परंपरा, संस्कृति, विरासत और जो कुछ भी देता है उसकी रक्षा करने का अधिकार शामिल है।"

याचिका में कहा गया है कि शाकाहारियों को उनकी सहमति के बिना मीडिया के माध्यम से मांसाहारी खाद्य पदार्थों के विज्ञापन देखने के लिए मजबूर किया जाता है और यह उनके शांतिपूर्ण जीवन जीने के अधिकार और निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

याचिका के अनुसार, विज्ञापनदाता पक्षियों, जानवरों और समुद्री जीवन के प्रति क्रूरता व्यक्त करते हैं और बढ़ावा देते हैं और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 51 ए (जी) का उल्लंघन करते हैं।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह के विज्ञापन पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं जिससे प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास हो सकता है क्योंकि हजारों जानवरों, पक्षियों और समुद्री जीवन की हर रोज मौत और पर्यावरणीय असंतुलन होता है।

याचिका में गुजरात, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में नागरिक निकायों और सरकार की कार्रवाइयों का हवाला दिया गया है, जिसमें मथुरा, ऋषिकेश और पाटिलाना (गुजरात में एक जैन तीर्थ स्थल) जैसे धार्मिक स्थानों सहित कुछ स्थानों पर मांस और मांसाहारी खाद्य पदार्थों की बिक्री और प्रदर्शन / विज्ञापन को प्रतिबंधित किया गया है।

याचिका को चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस माधव जे जामदार की खंडपीठ के समक्ष सोमवार, 26 सितंबर, 2022 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

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