'यह अकल्पनीय है कि मानवीय संकट के समय में लोग इस तरह की धोखाधड़ी कर रहे हैं': बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई में फर्जी COVID-19 वैक्सीनेशन ड्राइव मामले में कहा

Update: 2021-06-22 10:54 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को मुंबई में हुए फर्जी COVID-19 वैक्सीनेशन ड्राइव के मामले को गंभीरता से लिया और पुलिस को गुरुवार तक इन घोटालों की जांच पर एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

पीठ ने महाराष्ट्र सरकार और बीएमसी को हाउसिंग सोसाइटियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस तरह के नकली टीकाकरण अभियान न चलाए जाएं।

चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि,

"यह अकल्पनीय है कि मानवीय संकट के समय में लोग इस तरह की धोखाधड़ी कर रहे हैं।"

पीठ ने आगे कहा कि,

"टीका धोखाधड़ी में शामिल लोगों के खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम और महामारी रोग अधिनियम के प्रावधानों को लागू करें। उस व्यक्ति की दुर्दशा की कल्पना करें जिसे पानी का टीका लगाया गया है। उसकी मनःस्थिति अकल्पनीय है।"

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ वरिष्ठ नागरिकों को टीकाकरण में आने वाली कठिनाइयों पर अधिवक्ता और कार्यकर्ता - सिद्धार्थ चंद्रशेखर द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ता ने कांदिवली (पश्चिम), मुंबई में हीरानंदानी हेरिटेज हाउसिंग सोसाइटी में आयोजित फर्जी टीकाकरण शिविर की ओर इशारा करते हुए अधिवक्ता अनीता कैस्टेलिनो के माध्यम से एक हलफनामा दायर किया, जहां 390 से अधिक सदस्यों को टीका लगाया गया था।

फर्जी टीकाकरण के संबंध में पिछले सप्ताह कांदिवली पुलिस स्टेशन द्वारा पांच लोगों के एक समूह को गिरफ्तार किया गया था।

याचिकाकर्ता ने टिप्स इंडस्ट्रीज में आयोजित एक और धोखाधड़ी टीकाकरण शिविर की ओर भी इशारा किया, जहां बॉलीवुड निर्माता रमेश तौरानी ने 1200 रूपये और जीएसटी प्रति डोज के हिसाब से टीका लगवाया और इसके साथ 365 से अधिक कर्मचारियों को टीका लगाया गया, लेकिन उनके टीकाकरण प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं हुए हैं और कुछ मामलों में फर्जी टीकाकरण प्रमाण पत्र दिए गए हैं।

पीठ ने कहा कि राज्य को टीकाकरण को लेकर हो रही धोखाधड़ी की जांच में देरी नहीं करनी चाहिए और ऐसे मामलों को पूरी गंभीरता से लेना चाहिए।

पीठ ने आगे राज्य और बीएमसी से यह जानना चाहा कि क्या वे स्वास्थ्य अधिकारियों या वार्ड स्वास्थ्य अधिकारियों की मदद से स्कूलों, कॉरपोरेट घरानों, आवासीय सोसायटियों में शिविरों में टीकाकरण का आयोजन करने वालों नज़र रखने के लिए एक सिस्टम बना सकते हैं।

पीठ ने कहा कि कुछ स्तर पर सरकारी नियंत्रण की आवश्यकता है और दिशानिर्देश देने की तत्काल आवश्यकता है। पीठ ने आगे कहा कि इस तरह के उदाहरण मुख्य रूप से पश्चिमी उपनगरों में प्रचलित हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि,

"बीएमसी और राज्य सरकार को एसओएस के आधार पर नीति बनाने दें ताकि कोई निर्दोष व्यक्ति पीड़ित न हो। यह केवल पश्चिमी उपनगरों में हो रहा है। हमें रैकेट का पता लगाना है। इस तरह के धोखाधड़ी में कौन शामिल है?"

बीएमसी के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल सखारे ने कहा कि पुलिस ने मामले की जांच पहले ही शुरू कर दी है और कहा कि बीएमसी भी इस मामले में आवश्यक कदम उठा रही है।

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