टूलकिट केस- युवा देशभक्त भारतीयों को डराने के लिए देशद्रोह कानून का दुरुपयोग किया जाता है;आईपीसी की धारा 124ए पर पुनर्विचार करने की जरूरतः दिल्ली हाईकोर्ट वूमन एडवोकेट फोरम ने सुप्रीम कोर्ट को लिखा पत्र
दिल्ली हाईकोर्ट वूमन एडवोकेट फोरम ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक प्रतिनिधित्व सौंपा है, जिसमें कथित तौर पर ग्रेटा थुनबर्ग 'टूलकिट' मामले में जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करने के मद्देनजर आईपीसी की धारा 124 ए (सेडिशन) की संवैधानिक वैधता पर फिर से विचार करने का आग्रह किया गया है।
फोरम ने कहा कि,''हाल की घटनाओं में जहां बैंगलोर की एक युवा पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि (21 वर्ष) को दिल्ली पुलिस ने बैंगलोर में गिरफ्तार किया है और किसी भी निर्धारित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना और गिरफ्तारी का कोई स्पष्ट कारण बताए बिना ही उसे 14 फरवरी 2021 को दिल्ली ले आया गया।''
यह भी उल्लेख किया गया है कि रवि का कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है, वह जांच में सहयोग करने के लिए तैयार थी, उसका देश से भागने का भी कोई जोखिम नहीं है, और यह सुझाव देने के लिए भी कोई सबूत नहीं है कि वह किसी भी प्रतिबंधित संगठनों के साथ काम कर रही थी या राज्य के खिलाफ की जाने वाली किसी हिंसा के मामले से उसका कोई संबंध था। फिर भी उसे दिल्ली पुलिस ने आपराधिक कानून प्रक्रिया को पूरी तरह से नकारते हुए हिरासत में ले लिया है।
उनका दावा है कि आईपीसी की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह के कानून का दुरुपयोग युवा और देशभक्त भारतीयों को आतंकित करने के लिए किया जा रहा है, और सर्वोच्च न्यायालय के पास भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए की संवैधानिकता के मुद्दे पर फिर से विचार करने और लोकतंत्र में नागरिकों को मौन करने वाले इस निरर्थक औपनिवेशिक टूल को हटा देने का समय आ गया है।
फोरम ने कहा कि युवतियों को अक्सर देशद्रोह के गंभीर आरोपों के तहत गिरफ्तार किया जाता है और हाल ही में, एक ऐसा पैटर्न सामने आया है, कि जब चार्जशीट दाखिल करने का समय समाप्त होने वाला होता है, तो गैरकानूनी गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम लगा दिया जाता है ताकि इनमें शामिल कड़े जमानत प्रावधानों का लाभ उठाया जा सके।
फोरम ने युवा महिलाओं की बड़े पैमाने पर की जाने वाली गिरफ्तारियों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है,वो भी सिर्फ इसलिए कि वह लोकतांत्रिक विरोधोें के दौरान अपने विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उपयोग करती हैं।
फोरम ने कहा कि,''हमें लगता है कि बार और बेंच चुपचाप यह नहीं देख सकते हैं कि युवा लोगों को लंबे समय तक कैद में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यहां तक कि जब न्याय के धीमे पहिए उनकी सहायता के लिए आते हैं और उनको निर्दोष करार देते हैं, तो वे अपने युवाओं के सर्वोत्तम वर्षों और देश की सेवा करने का अवसर खो चुके होते हैं। इतिहास आश्चर्यचकित होगा, कि भारतीय न्यायिक प्रणाली तब कहां थी, जब भारत की ऐनी फ्रैंक्स को कानून की प्रक्रिया के बिना या हमारी संवैधानिक योजना के तहत किए गए किसी अपराध के बिना घसीटा जा रहा था।''
फोरम ने बलवंत सिंह व अन्य बनाम पंजाब राज्य,1995 (1) एससीआर 411 के मामले को संदर्भित किया, जहां याचिकाकर्ताओं पर तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के दिन खालिस्तानी नारे लगाने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि कुछ व्यक्तियों द्वारा एकाकी नारे लगाने से भारत सरकार को कोई खतरा नहीं है और आईपीसी की धारा 124ए के तहत अपराध नहीं बनता है; भले ही सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए नारेबाजी की गई थी।
पृष्ठभूमि
दिशा रवि को बेंगलुरू से भारत के खिलाफ असहमति पैदा करने, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने, आपराधिक षड्यंत्र आदि के साथ साथ देशद्रोह से संबंधित अपराधों के लिए सोशल मीडिया पर किसानों के विरोध से संबंधित 'टूलकिट' पर दर्ज एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। यह मामला दिल्ली पुलिस ने 4 फरवरी को दर्ज किया था।
उसे शनिवार को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बेंगलुरू के सोलादेवनहल्ली पुलिस थाने की सीमा के भीतर स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया था।
दिल्ली पुलिस ने कहा था कि दिशा रवि टूलकित गूगल दस्तावेज की संपादक और इन दस्तावेज को बनाने व प्रसार करने की और मुख्य साजिशकर्ता है। 14 फरवरी को, रवि को दिल्ली के एक मजिस्ट्रेट ने 5 दिन की हिरासत में भेज दिया था।
बयान
फोरम ने कहा कि संबंधित पुलिस अधिकारी दिल्ली के एक मामले से संबंधित जांच के लिए उनके स्थानीय अधिकार क्षेत्र से दिशा को लाने के अपने उद्देश्य के बारे में बैंगलोर पुलिस को सूचित करने में विफल रहे हैं।
इसके अलावा, वे रविवार को दिशा को दिल्ली लाने से पहले बैंगलोर के एक मजिस्ट्रेट से उसका ट्रांजिट रिमांड हासिल करने में भी विफल रहे।
इसके अलावा, पटियाला हाउस कोर्ट में ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने यांत्रिक रूप से 5 दिनों की पुलिस हिरासत दे दी, जब एकत्रित किए जाने वाली सभी साक्ष्य फारेंसिक प्रकृति के और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से प्राप्त किए जाने हैं और हिरासत में लेकर पूछताछ का कोई कारण नहीं बताया गया।
फोरम ने कहा कि,''रिमांड आदेश में सिर्फ अभियोजन पक्ष की ओर से दी गई दलीलों को लिखा गया है,परंतु आरोपी की तरफ से दी गई दलीलों को नहीं। संबंधित मजिस्ट्रेट ने उसकी हिरासत की अवैधता और देशद्रोह के अपराध से संबंधित किसी भी सबूत की अनुपस्थिति पर भी ध्यान नहीं दिया। वहीं पांच दिनों तक चलने वाली रिमांड एक लिंक-मजिस्ट्रेट द्वारा देना प्रथम दृष्टया यह दर्शा रहा है कि ज्यूडिशियल माइंड का उपयोग नहीं किया गया है और पावर का मैकेनिकल उपयोग किया गया है। वहीं ऐसा करते समय कानून और प्रक्रिया के तय सिद्धांतों को नजरअंदाज किया गया है।''
यह भी कहा गया कि,
''दुर्लभ मामलों में भी महिलाओं की गिरफ्तारी किए जाने पर भी उनसे उनके घरों में पूछताछ करने को तरजीह दी जानी चाहिए। दिशा को वकील न देकर (भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत मूल अधिकार) से वंचित किया गया है और जबकि यह व्यापक रूप से प्रसारित किया गया है कि उसने अपना मामला स्वयं कोर्ट में रखा था। जबकि उसको पांच दिन के रिमांड में भेजने वाले आदेश में (जो कि एक ड्यूटी मजिस्ट्रेट द्वारा दी जाने वाली एक लंबी अवधि है) एक लीगल एड काउंसिल का नाम दिया गया है।''
संबंधित खबर
दिशा रवि को रिमांड में लेने के फैसले की आलोचना करते हुए आपराधिक कानून की जानकार वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका माममेन जॉन ने कहा कि यह ''न्यायिक कर्तव्यों के त्यागने का चैंकाने वाला संकेत''है।
उन्होंने पूछा कि क्या मजिस्ट्रेट ने यह जानना चाहा कि रवि को बेंगलुरू की अदालत से लिए गए ट्रांजिट रिमांड के बिना सीधा यहां क्यों लाया गया?
स्टेटमेंट डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें