''पति से मिली धमकी का संरक्षण याचिका में उल्लेख नहीं'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवाहित महिला और उसके लिव-इन पार्टनर पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया

Update: 2022-07-22 03:30 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को एक विवाहित महिला और उसके लिव-इन पार्टनर की तरफ से दायर संरक्षण याचिका को खारिज करते हुए उन पर 5,000 रुपये जुर्माना लगाया। हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहे हैं कि वे महिला के पति से किसी भी खतरे का सामना कर रहे हैं।

जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ ने आगे कहा कि भारत का संविधान लिव-इन रिलेशन की अनुमति दे सकता है लेकिन याचिकाकर्ताओं (लिव-इन पार्टनर्स) द्वारा तत्काल रिट याचिका उनके अवैध संबंधों पर हाईकोर्ट की मुहर प्राप्त करने के उद्देश्य से दायर की गई थी।

इसके अलावा, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ताओं के बीच सहवास की अवधि बहुत कम है, अदालत ने कहा कि व्यक्तिगत स्वायत्तता (सामाजिक नैतिकता की धारणा के बजाय) को अन्यथा देखा जा सकता है, लेकिन निश्चित रूप से उस स्तर पर नहीं जब सहवास की अवधि कम हो।

संक्षेप में मामला

याचिकाकर्ताओं (एक विवाहित महिला और उसका लिव-इन पार्टनर) ने हाईकोर्ट का रुख किया और प्रतिवादियों (महिला के पति सहित) को उन्हें परेशान करने से रोकने का निर्देश देने वाले परमादेश की रिट जारी करने की मांग की।

उसने आरोप लगाया कि उसे उसके पति द्वारा परेशान किया जा रहा था क्योंकि वह बुरे लोगों के संपर्क में आ गया था और आधी रात को ही घर आता था। उसने सितंबर 2021 की शुरुआत में अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया और अपने लिव-इन पार्टनर के साथ रहने लगी।

इसके बाद, 22 अक्टूबर, 2021 को, उसने यह आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि उसका पति उसे धमकी दे रहा है। उसने अदालत से मांग की थी कि उसके पति को निर्देश दिया जाए कि वह पति और पत्नी के रूप में रहने वाले याचिकाकर्ताओं के शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप न करे।

न्यायालय की टिप्पणियां

शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि सितंबर 2021 तक, याचिकाकर्ता अपने पति और बेटियों के साथ रहती थी, और अचानक, अगले महीने उनके सहवास की अवधि और उसके पति की तरफ से मिल रही धमकियों का विवरण निर्दिष्ट किए बिना उसने यह दावा करते हुए तत्काल याचिका दायर कर दी कि वह और उसका लिव-इन पार्टनर पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं।

कोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा पिछले साल दिए गए एक फैसले का हवाला भी दिया, जिसमें यह कहा गया था कि केवल इसलिए कि दो वयस्क कुछ दिनों से एक साथ रह रहे हैं, उनकी इन मामूली दलीलों के आधार पर लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने का उनका दावा यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है कि वे वास्तव में लिव-इन-रिलेशनशिप में हैं।

कोर्ट ने कहा कि,

''याचिकाकर्ता नंबर 1 उचित तलाक लिए बिना याचिकाकर्ता नंबर 2 के साथ रहना चाहती है और/या वह प्रतिवादी नंबर 3 के साथ वैवाहिक संबंध भी नहीं रखना चाहती है और इस तरह का कठोर कदम उठाने के लिए कोई कारण नहीं बताया गया है ... इस प्रकार, यह कहना कि हमारा देश भारत के संविधान द्वारा शासित है और हम आदिम दिनों में नहीं रह रहे हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि वर्तमान मामले में यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं। चूंकि रिकॉर्ड और याचिकाकर्ता के एडवोकेट के प्रस्तुतीकरण से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता नंबर 1, सुनीता देवी का प्रतिवादी नंबर 3, रणवीर सिंह के साथ हुआ विवाह अभी तक भंग नहीं हुआ है। इसके अलावा, यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि कब प्रतिवादी नंबर 3 ने उसे लिव-इन-रिलेशन में रहते के दौरान धमकी दी थी क्योंकि उसने खुद बताया है कि सितंबर, 2021 तक वह अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी।''

इसके अलावा, कोर्ट ने पाया कि याचिका में उल्लिखित तारीखों और घटनाओं की सूची यह दिखाने के लिए पर्याप्त स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता नंबर 1 जानबूझकर गलत तथ्यों के साथ कोर्ट आई है क्योंकि उसकी शिकायत (उसके पति के खिलाफ) के आधार पर एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी।

नतीजतन, यह देखते हुए कि ऐसा कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है कि उसके पति ने उनको दूर से भी कोई धमकी दी थी, अदालत ने 5,000 रुपये जुर्माना लगाते हुए रिट याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रतिवादी नंबर 3 से दावा किए गए खतरे की कोई अनुभूति नहीं है।

अदालत ने कहा, ''जब कथित तौर पर या लोकविदित किसी खतरे की धारणा नहीं होती है तो भारत का संविधान हमें परमादेश जारी करने की अनुमति नहीं देता है''। अदालत ने महिला को पुलिस अधिकारियों के सामने यह दिखाने की स्वतंत्रता दी है कि उसकी कुछ वास्तविक शिकायतें हैं या उसके जीवन के लिए खतरा है।

केस टाइटल- सुनीता देवी व अन्य बनाम यू.पी. राज्य व दो अन्य, रिट-सी नंबर 29138/2021

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