"इससे गलत संदेश जाता है"- महाराष्ट्र में नेताओं को घर पर टीकाकरण की सुविधा पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सवाल किया कि महाराष्ट्र में राजनीतिक नेताओं का घर पर COVID 19 वायरस का टीकाकरण कैसे हो रहा है, यहां तक कि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री एक समान डोर-टू-डोर सुविधा की अनुपस्थिति में टीकाकरण के लिए नामित केंद्र में जा रहे हैं।
सीजे दत्ता ने कहा कि,
"जो कुछ भी हुआ, हुआ। लेकिन अगर हमें कोई रिपोर्ट मिलती है कि भविष्य में कोई भी राजनीतिक नेता घर पर टीकाकरण करवा रहा है तो हम इसे देखेंगे। जब प्रधानमंत्री सहित सभी लोग केंद्रों पर जा कर टीकाकरण करवा सकते हैं तो महाराष्ट्र के नेता क्यों नहीं?"
न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने कहा कि,
"यहां तक कि भारत के राष्ट्रपति भी अस्पताल गए थे। यदि वे जा सकते हैं तो हर कोई क्यों नहीं जा सकता? इससे गलत संदेश जाता है।"
कोर्ट अधिवक्ता धृती कपाड़िया और कुणाल तिवारी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से 75 साल से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष रूप से विकलांग और बिस्तर पर पड़े या व्हीलचेयर-बाउंड व्यक्तियों के लिए डोर-टू-डोर टीकाकरण सुविधा प्रदान करने की मांग की गई थी।
सीजे दत्ता ने बुधवार को कहा था कि एचएमसी की प्रशासनिक समिति के साथ बैठक में बीएमसी प्रमुख इकबाल चहल ने टीकाकरण के लिए संलग्न आईसीयू की आवश्यकता का हवाला दिया था। कोर्ट ने केंद्र से कहा कि अगर डोर-टू-डोर टीकाकरण पर कोई नीति है तो अदालत को सूचित करें।
अधिवक्ता धृती कपाड़िया ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कहा कि 45 साल से अधिक उम्र के नागरिकों के लिए डोर-टू-डोर टीकाकरण की सुविधा संभव है क्योंकि केंद्र ने हाल ही में 11 अप्रैल से शुरू होने वाले निजी और सार्वजनिक कार्यस्थलों पर टीकाकरण की घोषणा की है।
अधिवक्ता धृती कपाड़िया ने यह भी कहा कि समाचार रिपोर्टों के अनुसार मुंबई में लोगों को घर पर टीका लगाया गया है जिसका अर्थ है कि राज्य द्वारा दावा किया गया आईसीयू सुविधा की आवश्यकता नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश ने तब राज्य से पूछा कि महत्वपूर्ण राजनीतिक नेताओं को घर पर वैक्सीन कैसे मिल रही है जब कोई डोर-टू-डोर नीति नहीं है? आगे कहा कि एक समान नीति बनानी होगी।
सीजे दत्ता ने कहा कि यह प्रतिकूल याचिका नहीं है और याचिकाकर्ताओं को वैसे भी एक सप्ताह तक इंतजार करना ही होगा क्योंकि समाचार रिपोर्टों के अनुसार राज्य में वैक्सीन स्टॉक खत्म हो चुका है। यह एक और चिंता का विषय है।
कोर्ट ने तब केंद्र सरकार को जनहित याचिका (पीआईएल) का जवाब देते हुए एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया और इसके साथ ही कोर्ट ने मामले को स्थगित कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए कुछ तो सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए और एक सरल ऑनलाइन प्रक्रिया होनी चाहिए।