मद्रास हाईकोर्ट ने कहा, इस मामले ने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया, पति के खिलाफ बेटी पर यौन हमले के पत्नी के झूठे आरोप ख़ारिज, पढ़िए फैसला
मद्रास हाईकोर्ट ने पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 6 के अधीन अपने पति के ख़िलाफ़ पत्नी की शिकायत पर कड़ा रुख़ अपनाया है। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा
"ऐसे कई मौक़े आए जब अदालत का ध्यान इसी तरह की घटनाओं की ओर आकृष्ट किया गया, जिसमें पति पर अपनी बेटी के ख़िलाफ़ पोक्सो अधिनियम के तहत इस तरह की शिकायतें दर्ज कराई गई थीं और इस अदालत को बताया गया कि इस तरह की ओछी हड़कतें फ़ैमिली कोर्ट में भी अपनाई गई हैं ताकि पति से इच्छित बातें मनवाई जा सकें।
यह अदालत इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि इस तरह की घटनाएं हो सकती हैं और यह मामला आंखेंख खोल देने वाला है। अदालत को इस बात के प्रति सतर्क किया गया कि पोक्सो अधिनियम का किस हद तक दुरुपयोग हो सकता है।"
शिकायतकर्ता सी शकुंतला ने पोक्सो अधिनियम की उक्त धारा के तहत अपने पति एन चंद्रमोहन पर अपनी बेटी पर यौन हमले का आरोप लगाया था। उसने यह आरोप भी लगाया था कि पति के यौन हमले के कारण पीड़िता गर्भवती हो गई और उसे गर्भपात कराना पड़ा। हाईकोर्ट ने आरोपी को अग्रिम ज़मानत दे दी और कहा कि शिकायतकर्ता की यह शिकायत बेहद ओछी है।
इसके बाद आरोपी ने हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आपराधिक मूल याचिका (एन चंद्रमोहन बनाम राज्य और अन्य) दायर की और अदालत से अपने ख़िलाफ़ दायर एफआईआर को निरस्त करने का आग्रह किया।
आरोपी ने अपनी याचिका में कहा कि शिकायतकर्ता और उसके बीच झगड़ा हुआ और उसके ख़िलाफ़ वर्तमान एफआईआर बदले की भावना से दायर की गई है और इसका उद्देश्य बेटी को अपने संरक्षण में लेने का आदेश प्राप्त करना था, क्योंकि वे दोनों अलग रह रहे थे।
इस परिस्थिति में अदालत ने पीड़िता लड़की से बात की, जिसने अपने आरोपी पिता के ख़िलाफ़ लगाए गए इन सभी आरोपों को नकार दिया। उसने आगे कहा कि उसका किसी भी अस्पताल में गर्भपात के लिए कोई इलाज नहीं हुआ है जैसा कि उसकी शिकायतकर्ता मां ने आरोप लगाया है। वह लगातार यही बयान देती रही।
इस आधार पर न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने कहा कि शिकायतकर्ता ने फ़र्ज़ी शिकायत दर्ज कराई थी और उसका उद्देश्य आरोपी को धमकाना था। शिकायतकर्ता के व्यवहार से जज नाराज़ थे कि उसने अपने पति और बेटी के ख़िलाफ़ इस तरह के आरोप लगाए।
अदालत ने कहा "इस मामले ने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है और यह अविश्वसनीय लगता है कि कोई मां सिर्फ़ अपनी बेटी का संरक्षण प्राप्त करने के लिए अपने पति के ख़िलाफ़ इस तरह का गंभीर आरोप लगा सकती है कि उसका अपनी बेटी के साथ शारीरिक संबंध था।"
उनकी राय में यह एक ऐसा मामला था जिस पर कड़ा रुख़ अपनाना ज़रूरी है, ताकि यह उन सभी लोगों के लिए एक सबक़ हो जो अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए क़ानून का दुरुपयोग करने की कोशिश करते हैं। अदालत ने आरोपी पति के खिलाफ एफआईआर को निरस्त करते हुए आदेश दिया।
"दूसरे प्रतिवादी को छोड़ा नहीं जा सकता है और अपने पति के ख़िलाफ़ अपनी बेटी की क़ीमत पर फ़र्ज़ी शिकायत दर्ज कराने के लिए परिणाम अवश्य ही भुगतना चाहिए। पुलिस को निर्देश दिया जाता है कि वह फ़र्ज़ी शिकायत दर्ज कराने के लिए पोक्सो अधिनियम की धारा 22 के तहत प्रतिवादी नम्बर 2 के ख़िलाफ़ क़ानून के अनुसार शीघ्र कार्रवाई करे।"
याचिकाकर्ता की पैरवी वकीलल वी रमना रेड्डी ने की और प्रतिवादी की पैरवी एपीपी एम मोहम्मद रियाज़ ने की।