[तब्‍ल‌ीगी जमात] आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं; मुंबई कोर्ट ने 20 विदेशी नागरिकों को बरी किया

Update: 2020-10-20 13:08 GMT

मुंबई स्थित अंधेरी की एक मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने सोमवार को कोरोनावायरस फैलाने और लॉकडाउन का उल्लंघन करने के आरोपी 20 विदेशी नागरिकों को बरी कर दिया। बरी किए गए विदेशी नागर‌िकों में से दस इंडोनेशिया के और अन्य दस किर्गिज गणराज्य के नागरिक हैं। मजिस्ट्रेट अदालत ने दो अलग-अलग आदेश पारित किए।

मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट आरआर खान ने पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों ने खुद स्वीकार किया कि उन्होंने आरोपियों को प्राधिकरण द्वारा जारी किसी भी निर्देश या आदेश का उल्लंघन करते नहीं देखा। अदालत ने कहा कि अभियुक्तों द्वारा आदेशों के किसी भी उल्लंघन को प्रमाणित करने लिए अभियोजन पक्ष पास कोई सबूत नहीं है।

आरोपियों को बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 37 (3), बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 135 के तहत दंडनीय, के तहत अपराधों के लिए मुकदमे का सामना करना पड़ रहा था। 5 अप्रैल, 2020 को, मुखबिर पीएसआई दुर्गेश हरिश्चंद्र सालुंके ने धारा 188, (सार्वजनिक कर्मचारी द्वारा जारी विधिवत आदेश की अवज्ञा), धारा 269 (लापरवाही का कृत्य, जिससे खतरनाक बीमारी का संक्रमण फैलने की आशंका हो), धारा 270 (घातक कृत्य, जिससे जीवन के लिए खतरनाक बीमारी का संक्रमण फैलने की आशंका हो) और फॉरेनर्स एक्ट की धारा 14, महामारी अधिनियम की धारा 3 और आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 के तहत आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, 29 मार्च, 2020 को सुबह करीब 10 बजे मुखबिर अपने साथियों के साथ मुंबई के नूर मस्जिद, जमात खाना, गांओदेवी डोंगर, अंधेरी (पश्च‌िम) का दौरा किया और पता चला कि उक्त मस्जिद में इंडोनेशिया के 10 विदेशी नागरिक पहुंचे हैं। मुखबिर ने उनसे पूछताछ की और आवश्यक जानकारी हासिल की। पूछताछ के दौरान, उन्होंने पाया कि उनके पासपोर्ट और वीजा वैध हैं और वे 22 फरवरी, 2020 को दिल्ली मरकज से आए हैं। मुखबिर ने कहा कि उक्त व्यक्तियों ने विभिन्न स्थानों का दौरा किया, व्यक्तियों से मुलाकात की और संक्रमण फैलाया। उन्होंने आगे कहा है कि उन्होंने लॉकडाउन मानदंडों का उल्लंघन किया है और पुलिस आयुक्त के आदेशों का उल्लंघन किया है।

अजीब बात यह थी कि , मुखबिर ने अन्य दस विदेशी नागरिकों के बारे में भी समान विवरण दिया, जो इस मामले में आरोपी थे। उन्होंने कहा कि उसी दिन सुबह 10 बजे, वह अपने सहयोगियों के साथ अंधेरी सबवे के सामने तैय्यबा मस्जिद गए, और उन्हें पता चला कि मस्जिद में किर्गिज़ गणराज्य के 10 नागरिक पहुंचे हैं। जब मुखबिर ने उनसे पूछताछ की और आवश्यक जानकारी प्राप्त की, तो उन्होंने पाया कि उनके पासपोर्ट और वीजा वैध हैं और वे 22 फरवरी, 2020 को दिल्ली मार्कज से आए हैं।

सभी आरोपियों के खिलाफ शिकायत मिलने पर, डीएन नगर पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी ने संज्ञान लिया और आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ उपरोक्त अपराध दर्ज किए। जांच अधिकारी पीआई राजेंद्र विश्वनाथ राणे ने जांच शुरू की और 17 जून, 2020 को अदालत में आरोप पत्र दायर किया, जिसमें उपरोक्‍‌त अपराधों के साथ आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 304 (2) (सदोष हत्या का दोषी, जिसमें हत्या न हुई हो) भी जोड़ी गई।

तत्पश्चात, अभियुक्तों को सत्र न्यायालय द्वारा 25,000 रुपए के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया गया।

सत्र न्यायालय ने आईपीसी की धारा 307 और 304 (2) के अभियुक्तों को रिहा कर दिया और 21 सितंबर, 2020 के आदेश द्वारा कानून के अनुसार ट्रायल के लिए मजिस्ट्रेट कोर्ट में मामला वापस कर दिया। फिर, सीआरपीसी की धारा 239 के तहत 25 सितंबर, 2020 को मजिस्ट्रेट कोर्ट के सामने एक डिस्चार्ज आवेदन दायर किया गया। अभियोजन पक्ष ने उसी दिन आवेदन का जवाब दिया। एक अक्टूबर, 2020 को, र‌िहाई का आवेदन को ठुकरा दिया गया।

7 अक्टूबर, 2020 को आरोपी व्यक्तियों ने मजिस्ट्रेट कोर्ट से आरोप तय करने का अनुरोध किया। र‌िहाई आवेदन पर आदेश की अगली कड़ी के रूप में और बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा HLA SHWE और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य में निर्धारित न्यायिक अनुपात के अनुसार, बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 135 के लिए आरोप तय किए गए, क्योंकि आईपीसी की धारा 188, 269, 270, और फॉरेनर्स एक्ट की धारा 14 और आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 और महामारी अधिनियम धारा 3 के तहत अपराध का कोई मामला नहीं बनाया गया। तदनुसार, आरोप लगाया गया और अभियुक्तों ने अपने अपराध से इनकार किया और ट्रायल का दावा किया।

वरिष्ठ वकील अमीन सोलकर, एडवोकेट एएन शेख के साथ आरोपियों की ओर से पेश हुए, जबकि अतिरिक्त लोक अभियोजक पीएस सपकाले राज्य की ओर से पेश हुए।

दोनों पक्षों की प्रस्तुतियों की जांच के बाद, मजिस्ट्रेट खान ने कहा-

"मुख्य रूप से, अभियोजन के मामले में चार्जशीट के अनुसार केवल दो गवाह शामिल हैं। तदनुसार, अभियुक्त के अपराध को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष ने दोनों गवाहों की जांच की है। पीएसआई दुर्गेश सालुंखे और पीआई राजेंद्र राणे के सबूत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दर्ज किए गए। मैंने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपी व्यक्तियों का बयान दर्ज किया है। उन्होंने अभियोजन पक्ष द्वारा लगाए गए सबूतों का खंडन किया है।"

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाह (आईओ और मुखबिर) दोनों ने ही आरोपी के मामले को मजबूत किया क्योंकि मुखबिर ने कहा कि उसने आरोपित व्यक्तियों को लॉक-डाउन या कर्फ्यू का उल्लंघन करते हुए नहीं देखा था और आईओ ने स्वीकार किया कि किसी को अभ‌ियुक्तों के कारण किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ है या मरा नहीं।

"अभियोजन पक्ष के पुलिस अधिकारियों के साक्ष्य के संयुक्त अवलोकन से, यह स्पष्ट है कि दोनों ने यह दर्शाया है कि आरोपियों ने लॉक-डाउन या कर्फ्यू का उल्लंघन नहीं किया है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी दर्शाया है कि उन्होंने मस्जिद में प्रवेश नहीं किया है। और न ही आरोपियों को लॉक-डाउन मानदंडों का उल्लंघन करते हुए देखा गया। अंततः अभियोजन पक्ष के गवाहों ने खुद आरोपी व्यक्तियों की स्थिति स्पष्ट कर दी है। "

इसके अलावा, मजिस्ट्रेट खान ने देखा कि आरोपी व्यक्तियों पर बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 37 (3) आर / डब्ल्यू 135 के तहत अपराध के आरोप लगाए गए हैं। बेशक, आरोपी व्यक्ति विदेशी हैं, इसलिए, वे स्थानीय भाषा के साथ-साथ राज्य के कानून से भी परिचित नहीं हैं। बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 37 के उल्लंघन का मूल सिद्धांत आदेशों की सार्वजनिक घोषणा पर आधारित है।

अंत में आरोपी को बरी करते हुए मजिस्ट्रेट कोर्ट ने दर्ज किया-

"अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों के संक्षिप्त सर्वेक्षण से पता चलता है कि किसी भी गवाह ने अभियुक्तों को भीड़ के रूप में इकट्ठा होते नहीं देखा है। अभियोजन पक्ष के गवाहों ने स्वीकार किया कि उन्होंने आरोपी व्यक्तियों को किसी भी दिशा-निर्देश या आदेश का उल्लंघन करते नहीं देखा है। उक्त गवाह यह बताने की स्थिति में भी नहीं पाए गए कि कथित अपराध के समय आरोपी व्यक्ति कहां और कैसे रह रहा था।

इस प्रकार अभियोजन पक्ष के पास अभियुक्तों द्वारा आदेश का उल्लंघन किए जाने का कोई भी साक्ष्य उपलब्‍ध नहीं है। लॉकडाउन और मस्जिद या आस-पास के इलाके में उनके अंतिम आश्रय के दौरान उन्हें इस तरह के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। अभियोजन पक्ष द्वारा यह दिखाने के लिए कोई कानूनी सबूत नहीं है कि आरोपी व्यक्तियों ने बंबई पुलिस अधिनियम की धारा 37 के तहत कानूनन अधिसूचना का उल्लंघन किया है।

इसलिए बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा कोनान कोडियो गोनस्टोन और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और HLA SHWE और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य, में निर्धारित न्यायिक अनुपातों का पालन करते हुए और आरोप के समर्थन में सबूतों की कमी के कारण मैं...आरोपी व्यक्तियों को बरी करने के लिए संतुष्ट हूं। "

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