'आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी साझा नहीं करने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए': दिल्ली हाईकोर्ट ने पुनर्विकास परियोजना के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2021-12-15 06:54 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट बुधवार को मौखिक रूप से कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना नहीं देने की बढ़ती प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए। साथ ही संबंधित अधिकारियों को इससे बचना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ को सूचित किए जाने पर कि दक्षिण दिल्ली में एनबीसीसी इंडिया लिमिटेड के माध्यम से एम्स द्वारा किए जा रहे पुनर्विकास परियोजना और आसपास के क्षेत्रों पर इसके प्रभाव के संबंध में जानकारी मांगने वाले कुछ नागरिकों द्वारा दायर आरटीआई आवेदन कोई परिणाम नहीं मिला।

इस पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी की,

"इस प्रवृत्ति से बचना चाहिए कि आप जानकारी साझा नहीं कर रहे हैं। यदि यह आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत है या यदि इसे आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के तहत छूट दी गई है तो यह ठीक है। अन्यथा आपको साझा करना होगा ..."

सुप्रीम कोर्ट बार कोऑपरेटिव हाउस बिल्डिंग सोसाइटी और अन्य आवासीय कल्याण संघों द्वारा दायर एक रिट याचिका में घटनाक्रम सामने आया।

उन्होंने दक्षिणी दिल्ली के अयूर विज्ञान नगर में एम्स की एक कथित आवासीय कॉलोनी के प्रस्तावित पुनर्विकास को चुनौती दी है। कहा जाता है कि डीडीए द्वारा 1976 में एम्स को जमीन आवंटित की गई थी।

यह कहा गया कि बड़े पैमाने पर पुनर्विकास परियोजना पर्यावरण के साथ-साथ आसपास के बुनियादी ढांचे पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव की अनदेखी करती है।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता आयुष अग्रवाल ने कहा कि 3,000 से अधिक आवासीय इकाइयों और लगभग 20,000 लोगों की अनुमानित आबादी वाले सुपरस्ट्रक्चर को यातायात की स्थिति, प्रदूषण के स्तर और पर्यावरणीय प्रभाव आदि पर विचार किए बिना बनाया जा रहा है।

उन्होंने तर्क दिया,

"आसपास का पारिस्थितिकी तंत्र पहले से ही गड़बड़ाया हुआ है और इस तरह के बड़े पैमाने पर पुनर्विकास के लिए बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है।"

यह निवेदन किया गया कि जल स्तर पहले से ही घट रहा है। आने वक्त में बढ़ती आबादी के कारण वह पूरी तरह खत्म हो जाएगा।

अग्रवाल ने पूछा,

"पानी कहां से लाया जाएगा?"

उन्होंने आगे कहा कि 6,000 से अधिक चौपहिया वाहनों के आने की उम्मीद है।

उन्होंने कहा,

"इससे यातायात और पार्किंग की समस्या बढ़ने की पूरी संभावना है।"

उन्होंने अपशिष्ट निपटान प्रबंधन, बिजली की मांग और आपूर्ति आदि के संबंध में उत्पन्न होने वाले मुद्दों पर भी प्रकाश डाला।

याचिकाकर्ता का मामला यह है कि पुनर्विकास परियोजना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत गारंटीकृत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।

गौरतलब है कि यह याचिका 14 सितंबर, 2006 की ईआईए अधिसूचना के खंड सात (III) (i) (डी) की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती देती है, क्योंकि यह संबंधित नागरिकों और हितधारकों को इस तरह की एक परियोजना से पहले परामर्श और सुनवाई से रोकती है।

भारत संघ को शहरी विकास मंत्रालय और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, एम्स, एनबीसीसी (इंडिया) लिमिटेड, दिल्ली सरकार, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम, दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली यातायात पुलिस, दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के माध्यम से नोटिस जारी किए गए हैं।

मामले की सुनवाई 21 मार्च को तय की गई है।

केस शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट बार कोऑपरेटिव हाउस बिल्डिंग सोसाइटी बनाम भारत संघ

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