आवारा कुत्तों का मामला: सुप्रीम कोर्ट सरकारी दफ्तरों में कुत्तों को खाना खिलाने पर जल्द जारी करेगा दिशा-निर्देश

Update: 2025-11-03 06:39 GMT

आवारा कुत्तों से संबंधित महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि वह जल्द ही सरकारी कार्यालयों और परिसरों के भीतर कुत्तों को खाना खिलाने को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगा।

जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने कहा कि इस संबंध में आदेश कुछ ही दिनों में अपलोड कर दिया जाएगा।

जस्टिस विक्रम नाथ ने मौखिक रूप से कहा,

"हम कुछ ही दिनों में सरकारी संस्थानों को लेकर आदेश जारी करेंगे जहां कर्मचारी उस क्षेत्र में कुत्तों को समर्थन और प्रोत्साहित कर रहे हैं।"

हालांकि अदालत ने एक हस्तक्षेपकर्ता (इंटरवीनर) की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट करुणा नंदी को इस विशिष्ट आदेश पर सुनवाई करने से मना कर दिया।

अदालत ने कहा,

"सरकारी संस्थानों के संबंध में हम सुनवाई नहीं करेंगे।"

सुनवाई के दौरान अदालत ने उन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों की उपस्थिति पर भी ध्यान दिया, जिन्हें पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियमों के अनुपालन पर हलफनामा दाखिल न करने के कारण बुलाया गया था।

अदालत ने अब राज्यों द्वारा अनुपालन हलफनामे दाखिल करने की जानकारी नोट की। इसके बाद पीठ ने अगली तारीखों पर मुख्य सचिवों की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी। हालांकि, साथ ही चेतावनी दी कि भविष्य में किसी भी चूक पर फिर से हाजिर होने का आदेश दिया जाएगा।

कोर्ट ने इस मामले में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) को भी प्रतिवादी के रूप में शामिल किया। इसके अलावा कुत्ते के काटने के पीड़ितों द्वारा दायर हस्तक्षेप आवेदनों को स्वीकार कर लिया गया और उन्हें न्यायालय की रजिस्ट्री में राशि जमा करने की शर्त से छूट दे दी गई।

इससे पहले, कुत्ते प्रेमियों की ओर से हस्तक्षेप करने वाले व्यक्तियों और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को क्रमशः 25,000 रुपये और 2 लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया गया था।

सीनियर एडवोकेट गौरव अग्रवाल मामले में न्याय मित्र के रूप में बने रहेंगे। एडवोकेट नंदी द्वारा दिल्ली की स्थानीय संस्थाओं द्वारा नामित किए गए फीडिंग क्षेत्रों में खामियों के संबंध में प्रस्तुत किए गए मामले पर पीठ ने कहा कि इस मुद्दे की जांच अगली सुनवाई पर की जाएगी।

गौरतलब है कि इससे पहले अदालत ने एबीसी नियमों के अनुपालन में विफल रहने पर पश्चिम बंगाल और तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया था।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन अधिकारियों को वर्चुअल उपस्थिति की अनुमति देने का अनुरोध किया था, जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया था। साथ ही इस बात पर नाराज़गी व्यक्त की थी कि जिन मुद्दों को नगर निगमों और राज्य सरकारों को हल करना चाहिए था, उन पर मुख्य सचिवों ने अदालत के आदेश का सम्मान नहीं किया।

यह मामला तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने एक समाचार रिपोर्ट के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया था। इस मामले में पहले दिए गए कठोर निर्देशों को बाद में एबीसी नियमों के आधार पर संशोधित किया गया था, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उसी क्षेत्र में वापस छोड़ा जाना चाहिए केवल हिंसक या रैबीज से संक्रमित कुत्तों को छोड़कर।

कोर्ट ने सार्वजनिक रूप से कुत्तों को खाना खिलाने पर प्रतिबंध लगाते हुए समर्पित फीडिंग स्पेस बनाने का निर्देश भी दिया था और मामले का दायरा पूरे देश में बढ़ा दिया था।

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