वकील जजों के विरुद्ध अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं कर सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-09-25 06:37 GMT

वकील के विरुद्ध स्वतः संज्ञान से अवमानना ​​कार्यवाही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि न्यायालय के अधिकारी होने के नाते वकीलों को जजों के प्रति विनम्र होना चाहिए।

सिविल जज (जूनियर डिवीजन/फास्ट ट्रैक कोर्ट (सीएडब्ल्यू)) कानपुर नगर ने 03.02.2023 को न्यायालय के समक्ष कार्यवाही में अवमाननाकर्ता वकील के आचरण के संबंध में हाईकोर्ट को संदर्भ दिया। यह कहा गया कि अवमाननाकर्ता ने पीठासीन अधिकारी से सवाल किए थे। साथ ही न्यायालय के कर्मचारियों से फाइलें छीन ली थीं। यह कहा गया कि अवमाननाकर्ता ने सुनवाई की अन्य तिथियों पर भी दुर्व्यवहार किया था।

पीठासीन अधिकारी और हाईकोर्ट दोनों ही वकील द्वारा प्रस्तुत क्षमा याचना से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें पुनः बिना शर्त क्षमा याचना करने का निर्देश दिया गया। इसके बाद वकील ने बिना शर्त क्षमा याचना करते हुए नया हलफनामा प्रस्तुत किया। वकील की ओर से वकील ने दलील दी कि वकील युवा वकील है, जिसका कोई पिछला रिकॉर्ड नहीं है।

जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस डॉ. गौतम चौधरी की पीठ ने कहा,

"वकील द्वारा पीठासीन जज के प्रति अभद्र व्यवहार करने की घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं। जज केवल सौहार्दपूर्ण वातावरण में ही कार्य कर सकते हैं। न्यायालय का अधिकारी होने के नाते वकील से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह न्यायाधीश के प्रति अभद्र व्यवहार करे या पीठासीन अधिकारी के विरुद्ध असंयमित भाषा का प्रयोग करे।"

यद्यपि न्यायालय गंभीर दृष्टिकोण अपनाने के लिए इच्छुक था लेकिन यह ध्यान में रखते हुए कि अवमाननाकर्ता युवा वकील है, जिसका कोई पिछला रिकॉर्ड नहीं है, न्यायालय ने उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया।

न्यायालय ने जिला जज को अवमाननाकर्ता के आचरण के संबंध में 2 वर्ष बाद रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल- इन रे बनाम योगेंद्र त्रिवेदी

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