एफआईआर में आरोपी, पीड़ित के धर्म का उल्लेख न हो, यह तय करने के लिए क्या कदम उठाए गए; पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब डीजीपी से हलफनामा दायर करने को कहा

Update: 2022-09-19 09:19 GMT

Punjab & Haryana High court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब के डीजीपी को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है, जिसमें यह निर्दिष्ट करना होगा कि एफआईआर में अभियुक्त, पीड़ित और गवाहों के धर्म का उल्लेख ना किया जाए, यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी की पीठ दरअसल एनडीपीएस एक्ट के तहत एक आरोपी द्वारा पेश की गई जमानत याचिका पर विचार कर रही थी, जब उन्होंने नोट किया कि स्‍थानीय भाषा में लिखी एफआईआर में 'सरदार' शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

इसके अलावा, कोर्ट ने मार्च 2022 में पुलिस महानिदेशक, पंजाब द्वारा पारित आदेशों पर ध्यान दिया, जिसमें पुलिस विभाग को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि एफआईआर में व्यक्ति के धर्म का उपयोग/उल्लेख न किया जाए।

इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने कहा कि राज्य के डीजीपी द्वारा जारी निर्देश के बावजूद, एफआईआर में धर्म का उल्लेख किया गया है, और इसलिए, कोर्ट ने राज्य के डीजीपी का हलफनामा मांगा और संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को 20 सितंबर, 2022 को कोर्ट में भी उपस्थित रहने के लिए कहा।

7 मार्च, 2022 को राज्य के डीजीपी ने निम्नलिखित परिपत्र जारी किया था,

"उपरोक्त परिपत्र को आगे बढ़ाते हुए, यह निर्देश दिया जाता है कि अब से, आरोपी, पीड़ित या गवाहों के धर्म या जाति का उल्लेख एफआईआर या जांच के दौरान तैयार किए गए अन्य आधिकारिक दस्तावेजों में नहीं किया जाएगा, सिवाय उन मामलों कें, जहां यह नितांत आवश्यक हो्र उदाहरण के लिए आईपीसी की धारा 153-ए, धारा 295-ए आदि से संबंधित मामलों में।"

उल्लेखनीय है कि मार्च 2019 में, आपराधिक कार्यवाही में जाति का उल्लेख करने की 'औपनिवेशिक' प्रथा को समाप्त करते हुए, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि जाति व्यवस्था पूरी तरह से अतार्किक है और संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ भी है।

जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस कुलदीप सिंह की खंडपीठ ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के गृ‌ह सचिवों को निर्देश जारी करते हुए कहा था, हमें एक सार्वजनिक नीति के रूप में जाति व्यवस्था को समाप्त करना चाहिए।

कोर्ट ने सभी जांच अधिकारियों को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और पंजाब पुलिस नियमों के तहत निर्धारित रिकवरी मेमो, एफआईआर, जब्ती मेमो, जांच पत्र और अन्य प्रपत्रों में अभियुक्तों, पीड़ितों या गवाहों की जाति का उल्लेख नहीं करने का निर्देश देने को कहा था।

अदालत ने हत्या के एक मामले में एक आपराधिक अपील पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की थी जब उसने देखा कि पुलिस ने आरोपी / गवाहों के साथ-साथ पीड़ित की जाति का भी इस्तेमाल किया है।

केस का शीर्षक - अमनदीप सिंह @ दीपा बनाम पंजाब राज्य


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