लिव-इन-रिलेशनशिप के लिए सामाजिक स्वीकृति बढ़ रही है, विवाहित और लिव-इन कपल के बीच सुरक्षा की मांग को लेकर कोई अंतर नहींः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
एक महत्वपूर्ण फैसले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार (18 मई) को कहा है कि एक व्यक्ति को शादी या लिव-इन रिलेशनशिप के गैर-औपचारिक दृष्टिकोण के जरिए अपने साथी के साथ रिश्ते बनाने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक लिव-इन-रिलेशनशिप कपल से संबंधित एक मामले में की है। कोर्ट ने माना कि वह दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह का रिश्ता बनाने का फैसला किया है क्योंकि वे एक-दूसरे के लिए अपनी भावनाओं के बारे में आश्वस्त हैं।
महत्वपूर्ण रूप से कोर्ट ने यह भी कहा कि,
''संवैधानिक न्यायालय उन जोड़ों को सुरक्षा प्रदान करते हैं, जिन्होंने अपने संबंधित माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया है। वे अपने माता-पिता और परिवार के उन सदस्यों से जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा चाहते हैं, जो उनके संबंध को स्वीकार नहीं करते हैं। एक ऐसी ही समान स्थिति वहां भी मौजूद होती है,जहां कपल लिव-इन-रिलेशनशिप में रहना शुरू करते हैं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि इस रिश्ते को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार नहीं किया जाता है। क्या इससे कोई फर्क पड़ेगा?''
कोर्ट ने आगे कहा कि इस बात में कोई अंतर नहीं है कि ऐसे कपल को दोनों ही स्थितियों में अपने रिश्तेदारों से सुरक्षा का डर होता है और न कि समाज से। इस प्रकार, वे एक जैसी राहत के हकदार हैं।
न्यायालय ने यह भी कहा कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार भारत के संविधान में निहित है और उक्त अधिकार में किसी व्यक्ति को उसकी पसंद और इच्छा के अनुसार अपनी क्षमता के पूर्ण विकास का अधिकार शामिल है और इस तरह के उद्देश्य के लिए उसे अपनी पसंद का साथी चुनने का भी हक है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि लिव-इन-रिलेशनशिप की अवधारणा पश्चिमी देशों से समाज में आई है और शुरू में, महानगरीय शहरों में इसको स्वीकृति मिली, शायद इसलिए कि व्यक्तियों ने महसूस किया है कि निर्वाह करने के लिए शादी के माध्यम से एक रिश्ते को बनाना आवश्यक नहीं है।
यह देखते हुए कि इस अवधारणा के विकास में शिक्षा ने एक बड़ी भूमिका निभाई है, कोर्ट ने कहा कि धीरे-धीरे यह अवधारणा छोटे शहरों और गांवों में भी फैल गई है जैसा कि इस याचिका से स्पष्ट है। इससे पता चलता है कि लिव-इन-रिलेशनशिप के लिए सामाजिक स्वीकृति बढ़ रही है।
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने यह भी कहा कि,
''कानून में, इस तरह के संबंध निषिद्ध नहीं हैं और न ही यह किसी भी अपराध का गठन करने के समान है। इस प्रकार, मेरे विचार में ऐसे व्यक्ति देश के किसी भी अन्य नागरिक के समान कानून के संरक्षण के हकदार हैं। कानून यह मानता है कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन और उसकी स्वतंत्रता अनमोल है और व्यक्तिगत विचारों की परवाह किए बिना इसे संरक्षित किया जाना चाहिए।''
अंत में, यह देखते हुए कि कानून के शासन द्वारा शासित देश में किसी भी नागरिक को कानून अपने हाथों में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, अदालत ने प्रतिवादी नंबर 2 को निर्देश दिया है कि वह उनके प्रतिनिधित्व पर विचार करे और यदि उन्हें आवश्यक लगता है तो उन्हें उचित सुरक्षा प्रदान करे। इसी निर्देश के साथ याचिका का निपटारा कर दिया गया।
महत्वपूर्ण है कि कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने एक लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था और उसके बाद पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का यह महत्वपूर्ण अवलोकन आया है। हाईकोर्ट ने उस लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था,जिन्होंने दलील दी थी कि उनको लड़की के परिजनों से खतरा है। हाईकोर्ट ने कहा था कि ''यदि इस तरह के संरक्षण का दावा करने वालों को इसकी अनुमति दे दी जाएगी, तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।''
कोर्ट ने कहा था,
''याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) मुश्किल से 18 साल की है जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (लड़का) 21 साल का है। वे लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने का दावा कर रहे हैं और अपने जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) के रिश्तेदारों से संरक्षण दिलाए जाने की मांग कर रहे हैं।''
इसी तरह एक अन्य लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह उस लिव-इन कपल की याचिका खारिज कर दी थी,जिन्होंने सुरक्षा दिए जाने की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि उनके रिश्ते का विरोध किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति एचएस मदान ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा था कि इस कपल ने सिर्फ इसलिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है ताकि उनके उस संबंध पर स्वीकृति की मुहर लग सके जो''नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं'' है।
''वास्तव में, याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन-रिलेशनशिप पर स्वीकृति की मुहर लगाने की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। इसलिए इस याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।''
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