यह छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन : यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं की अनुमति देने के गृह मंत्रालय के आदेश के खिलाफ मध्य प्रदेश के क़ानून के छात्रों ने सीजेआई को पत्र लिखा

Update: 2020-07-14 04:15 GMT

विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षा लेने के केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक आदेश के ख़िलाफ़ क़ानून के छात्रों ने देश के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा है कि ऐसा करना छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

भोपाल विश्वविद्यालय में क़ानून के अंतिम वर्ष के छात्र और यूथ बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (स्टूडेंट विंग) के सर्कल हेड यश दुबे ने यह पत्र लिखा है। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश को इस मामले का स्वतः संज्ञान लेने और विश्वविद्यालय के अकादमिक कैलेंडर को कोरोना महामारी के शांत होने तक स्थगित रखने का आग्रह किया है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विश्वविद्यालयों और संस्थाओं को आवश्यक रूप से अंतिम वर्ष की परीक्षा लेने का आदेश 6 जुलाई 2020 को जारी किया था।

इस अधिसूचना के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किया जिसमें ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों ही तरह की परीक्षा लेने की बात कही गई थी।

पत्र में कहा गया है कि परीक्षा में शामिल होने पर छात्रों की सेहत को जो ख़तरा होगा उसके अलावा बड़ी संख्या में छात्रों के लिए परीक्षा की फ़ीस देना, और परीक्षा स्थल पर जाकर रहना और परीक्षा देना उससे भी ज़्यादा मुश्किल बात होगी।

पत्र में कहा गया है कि

"…देश में इस समय मुश्किल समय है उसे देखते हुए परीक्षा लेने को उचित ठहराना तर्कहीन है।"

दुबे ने अपने पत्र में परीक्षा रद्द करने के निम्न आधार बताए हैं -

· इस समय जब परीक्षा कराना छात्रों के स्वास्थ्य, उनकी सुरक्षा और समान अवसरों के ख़िलाफ़ है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन होता है।

· कोरोना महामारी के समय में परीक्षा आयोजित करने से परीक्षा देने वाले और लेने वाले दोनों के ही स्वास्थ्य को ख़तरा है।

· अगर परीक्षा होती है तो अपने-अपने घरों को लौट चुके छात्रों को दुबारा वापस आना होगा, परीक्षा देने के लिए किसी के साथ रहना होगा क्योंकि अधिकांश हॉस्टल और कॉलेजों को क्वारंटीन सेंटर में बदल दिया गया है।

· अगर ऑनलाइन परीक्षा होती है तो उन छात्रों को क्या होगा जिनको इंटरनेट की उपलब्धता नहीं है, कंप्यूटर, लैप्टॉप नहीं हैं जबकि इनके बिना ऑनलाइन परीक्षा नहीं हो सकती।

दुबे ने कहा है कि अगर परीक्षा ली जाती है तो यह छात्रों को आगे ले जाने के बजाय पीछे धकेलेगा, छात्रों के भविष्य अनिश्चित हो जाएंगे क्योंकि इसका अर्थ होगा परीक्षा को स्थगित करने के दूसरे चरण की शुरुआत क्योंकि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और पश्चिम बंगाल ने पहले ही परीक्षाएं रद्द कर दी हैं।

इस पत्र पर राज्य के 34 छात्रों ने हस्ताक्षर किए हैं।

इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के एक छात्र ने भी दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को सरकार के इस आदेश को लेकर ऐसा ही एक पत्र लिखा था और इसमें छात्रों की मुश्किलों के बारे में बताया था और कहा था कि अकादमिक मूल्यांकन और परीक्षा व्यवस्था छात्रों की ज़िंदगी से बड़ी नहीं है।

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