धारा 53A संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम - अपंजीकृत दस्तावेज पर कब्जे की रक्षा के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-02-19 10:55 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 53 ए का लाभ देने के लिए, जिस दस्तावेज पर भरोसा किया गया है, वह एक पंजीकृत दस्तावेज होना चाहिए।

जस्टिस सुब्रमनियम प्रसाद ने कहा,

"किसी भी अपंजीकृत दस्तावेज की जांच अदालत नहीं कर सकता है और पंजीकरण अधिनियम की धारा 49 सहपठित धारा 17(1ए) के मद्देनजर उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है या साक्ष्य के रूप में नहीं लिया जा सकता।"

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता का मामले यह था कि उसने एक भवन के भूतल पर एक दुकान 7,20,000 रुपये में खरीदने के लिए रविंदर कुमार चुग के साथ बिक्री समझौता किया।

यह कहा गया कि उक्त संपत्ति का कब्जा उन्हें नहीं सौंपा गया था क्योंकि रविंदर कुमार चुग के परिवार ने एक बिल्डर के साथ सहयोग समझौता किया था, जिसने परिसर का निर्माण नहीं किया था।

याचिकाकर्ता और रविंदर कुमार चुग के बीच एक समझौता ज्ञापन में यह नोट किया गया कि संपत्ति का खाली कब्जा याचिकाकर्ता को सौंप दिया गया है। याचिकाकर्ता ने एसएचओ को एक शिकायत सौंपी, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता के सहयोगी ने संपत्ति का दौरा किया और परिसर में अरविंदर सिंह को देखा। कहा-सुनी के बाद पुलिस मौके पर पहुंची और याचिकाकर्ता से संपत्ति के मालिकाना हक के दस्तावेज दिखाने को कहा।

याचिकाकर्ता मालिकाना दस्तावेजों के साथ पुलिस स्टेशन गया, जहां उसने आरोप लगाया कि उसे धमकी दी गई और अपमानजनक तरीके से बात की गई।

याचिकाकर्ता ने अदालत से संपर्क किया और पुलिस आयुक्त को यह निर्देश देने का निवेदन किया कि उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ, जिन्होंने कई बार शिकायत दिए जाने के बाद भी निष्पक्ष जांच नहीं की, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसकी रैंक एसीपी से कम ना हो, की देखरेख में सतर्कता जांच कराए। याचिकाकर्ता का आधार पुलिस अधिका‌रियों की आरोपी व्यक्तियों के साथ मिलीभगत थी।

निष्कर्ष

कोर्ट ने कहा कि हालांकि एमओयू में रिकॉर्ड किया गया है कि याचिकाकर्ता को दिए गए एरिया को शेड्यूल में वर्णित किया गया है, हालांकि एमओयू के साथ कोई शेड्यूल नहीं दिया गया है।

एमओयू में भुगतान की गई राशि को भी रिकॉर्ड नहीं किया गया है। एमओयू जितना हो सकता है, उतना अस्पष्ट है। इस तथ्य के अलावा कि यह भुगतान की गई राशि का खुलासा नहीं करता है, जिस एरिया का कब्जा सौंपा गया था उसका विवरण समझौता ज्ञापन में नहीं ‌दिया गया है, और समझौता ज्ञापन के सा‌थ कोई अनुसूची नहीं दी गई है।

अरुण कुमार टंडन बनाम आकाश टेलीकॉम प्रा लिमिटेड और अन्य का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने नोट किया कि धारा 53A का लाभ प्रतिवादी को दिया जा सकता था, यदि और केवल तभी जब सेल कम रिसीट का कथित समझौता पंजीकरण अधिनियम की धारा 17(1) A के प्रावधानों को संतुष्ट करता हो।

कोर्ट ने कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि एमओयू को बेचने के लिए किए गए एक समझौते के रूप में पढ़ा जाना चाहिए और याचिकाकर्ता के कब्जे में है, जिसके लिए कोई सबूत नहीं है, अर्थटेक एंटरप्राइजेज लिमिटेड बनाम कुलजीत सिंह बौतालिया को संदर्भ दिया जा सकता है। उक्त मामले में यह निर्धारित किया गया था कि,

"उपरोक्त प्रावधान के सामान्य अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक व्यक्ति संपत्ति के हस्तांतरण अधिनियम की धारा 53-ए के तहत अपने कब्जे की रक्षा कर सकता है, यदि उसके पास पंजीकृत दस्तावेज मौजूद है। यहां तक ​​कि लिखित समझौते के आधार पर भी वह अपने कब्जे की रक्षा नहीं कर सकता।"

अदालत ने राज्य के दृष्टिकोण में कोई भी गलती खोजने से इनकार कर दिया कि याचिकाकर्ता कोई भी दस्तावेज पेश करने में विफल रहा है, जो कब्जा स्थापित कर सकता है। अगर याचिकाकर्ता के पास वैध अधिकार होता तो वह बेदखल होने के छह महीने के भीतर विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 6 के तहत मुकदमा दायर कर देता। हालांकि, ऐसा ही नहीं किया गया।

याचिका को खारिज करते हुए, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा बाद में रिट याचिका के साथ जांच करने के लिए पुलिस को दी गई शिकायतें पूरी तरह से निराधार हैं।

केस शीर्षक: जोगिंदर तुली बनाम दिल्ली एनसीटी राज्य और अन्य।

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 129

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