'योजना में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए पर्याप्त दिशानिर्देश शामिल हैं', इलाहाबाद हाईकोर्ट ने MPLAD योजना के तहत जारी निधि के उपयोग की जांच करने से किया इनकार

Update: 2020-09-04 03:00 GMT

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार (03 सितंबर) को फैसला सुनाया कि न्यायालय, संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीएलएडीएस) के तहत जारी किए गए धन के उपयोग के संबंध में जांच करने का निर्देश नहीं दे सकता है।

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि इस योजना को निष्पादित करने के लिए और कार्य में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए स्कीम में पर्याप्त दिशानिर्देश मौजूद हैं और किसी भी शिकायत को, उचित प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष उठाया जा सकता है।

उल्लेखनीय रूप से, याचिकाकर्ता द्वारा जनहित याचिका के माध्यम से प्रतिवादी संख्या 6 के खिलाफ, संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के तहत जारी किए गए सार्वजनिक धन के कथित गबन के संबंध में जांच करने के लिए आग्रह किया गया था।

और इस संबंध में संपूर्ण धन के आवंटन के संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने की मांग की गयी थी। याचिकाकर्ता एक 76 वर्षीय व्यक्ति था जो गांव का निवासी था।

हालाँकि, जैसा कि अदालत ने उल्लेख किया, याचिकाकर्ता के वकील किसी भी कारण से यह बताने में सक्षम नहीं थे कि याचिकाकर्ता विशेष रूप से संस्था/प्रतिवादी संख्या 6 के संबंध में धन के खर्च में विशेष रूप से रुचि क्यों रखते हैं।

न्यायालय का विचार था कि संसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) भारत सरकार द्वारा बनाई गई एक योजना है जो संसद सदस्यों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर महसूस की गई सामुदायिक संपत्ति बनाने पर जोर देने के साथ विकास कार्यों की अनुशंसा करने में सक्षम बनाती है।

अदालत ने आगे कहा कि योजना के संदर्भ में, संसद सदस्यों द्वारा की गई सिफारिशों पर, प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा विकासात्मक कार्य किया जाता है।

उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर, अदालत ने अपने विवेकाधीन अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया और रिट याचिका खारिज कर दी गई।

MPLAD के बारे में ख़ास बातें

यह ध्यान दिया जा सकता है कि MPLAD योजना 1993 में तैयार की गई थी (केंद्र में नरसिम्हा राव सरकार के दौरान) जिससे सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों की सिफारिश करने में सक्षम बनाया जा सके "स्थानीय स्तर पर महसूस की जाने वाली टिकाऊ सामुदायिक संपत्ति के निर्माण पर जोर देने के साथ।

इस योजना के तहत, सांसद अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में हर साल 5 करोड़ रुपये खर्च करने वाले विकास कार्यक्रमों की सिफारिश कर सकते हैं। लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सांसद, जिनमें नामित व्यक्ति भी शामिल हैं, ऐसा कर सकते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि इस विशेष योजना को उच्चतम न्यायालय में जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के प्रमुख भीम सिंह और एक गैर-सरकारी संगठन कॉमन कॉज ने चुनौती दी थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि किसी भी दिशा-निर्देश के अभाव में, इस योजना के तहत आवंटित धन का दुरुपयोग सांसदों द्वारा किया गया था।

हालाँकि, 6 मई 2010 को, 5-न्यायाधीशों वाली एक बेंच जिसमें तत्कालीन सीजे केजी बालकृष्णन, जस्टिस आरवी रवीन्द्रन, जस्टिस डीके जैन, जस्टिस पी. सथाशिवम और जस्टिस जेएम पंचाल शामिल थे, ने भीम सिंह बनाम भारत संघ (2010) 5 SCC 538 में स्कीम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया था। न्यायमूर्ति सथाशिवम ने पीठ की ओर से निर्णय लिखा था।

विशेष रूप से, वर्ष 2018 में, केंद्रीय सूचना ने लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को संसद के स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के सदस्य के तहत धन के उपयोग में अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता लाने के लिए उचित कानूनी ढांचा जारी करने की सिफारिश की थी।

उक्त आदेश तत्कालीन केंद्रीय सूचना आयुक्त प्रो. एम. श्रीधर आचार्यलु द्वारा पारित किया गया था, जिसमे उन व्यक्तियों द्वारा दायर दो अपील पर विचार किया गया था, जिन्होंने अपने संबंधित सांसदों द्वारा MPLADS फंड के उपयोग के बारे में जानकारी मांगी थी।

गौरतलब है कि COVID-19 संकट और भारत-व्यापी लॉकडाउन के मद्देनजर, भारत सरकार ने परिपत्र No.E-4/2020–MPLADS (Pt II) dated 08.04.2020 को जारी करते हुए यह घोषणा की कि चालू वित्त वर्ष 2020-2021 और आगे 2021-2022 सहित लगातार दो वर्षों के लिए MPLAD योजना संचालित नहीं करने का निर्णय लिया गया है।

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था, "दो साल के लिए MPLAD फंड्स की समेकित राशि - 7,900 करोड़ रुपए - भारत के कंसोलिडेटेड फंड में जाएगी।"

मामले का विवरण:

केस का शीर्षक: अमर नाथ मिश्रा बनाम भारत सरकार और 6 अन्य

केस नं .: जनहित याचिका (PIL) नंबर 812 ऑफ़ 2020

कोरम: जस्टिस पंकज मित्तल एवं जस्टिस योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव 

आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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