समान-लिंगी युगल की संरक्षण याचिकाः मद्रास हाईकोर्ट ने कहा, समान-लिंगी अभिविन्यास के साथ समाज अब भी समायोजित नहीं कर पा रहा, बंद कमरे में सुनवाई के निर्देश
मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार (22 मार्च) को समान-लिंगी युगल की ओर से दायर संरक्षण याचिका को मामले की संवेदनशीलता के मद्देनजर बंद कमरे में ( In-camera) सुनने की इच्छा व्यक्त की और सुनवाई के लिए 29 मार्च की तारीख तय की।
जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की पीठ ने कहा, " मौजूदा मामले को अधिक संवेदनशीलता और सहानुभूति के साथ निस्तारित किए जाने की आवश्यकता है और यह एक प्रतिदर्श है कि कैसे समाज अब भी समान-लिंगी अभिविन्यास के साथ समायोजित नहीं कर पा रही है। इस मुद्दे की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए, यह न्यायालय मामले को बंद कमरे में सुनना चाहता है।"
मामला
याचिकाकर्ताओं का मामला यह है कि वे समान-लिंगी युगल हैं, जबकि चौथे और पांचवें प्रतिवादियों ने संबंध का विरोध किया है। उक्त प्रतिवादी संबंधित याचिकाकर्ताओं के पिता हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि उनके माता-पिता समान लिंगी संबंध से सहमत नहीं हो पा रहे हैं और उन्होंने छठें और सातवें प्रतिवादियों के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी। मामले में दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं, जिसमें एक लड़की के लापता होने का मामला है।
याचिका में आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं के जीवन और अंगों को संभावित खतरा है और उन्हें अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भाग-दौड़ करनी पड़ रही है।
याचिका में प्रार्थना की गई है कि प्रतिवादी पुलिस को निर्देश दिया जाए कि वह याचिकाकर्ताओं का उत्पीड़न न करें और यह भी सुनिश्चित करे कि चौथे और पांचवें प्रतिवादियों से उनके जीवन और अंग को कोई खतरा न हो।
दूसरी ओर, सरकारी अधिवक्ता, जिन्होंने प्रतिवादी पुलिस की ओर से नोटिस लिया, ने जवाब दिया कि प्रतिवादी पुलिस को इस संबंध में निर्देश दिया जाएगा और याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।
इसके साथ, अदालत ने निर्देश दिया कि मामले को 29 मार्च को बंद कमरे में सुना जाएगा।
संबंधित समाचार में, दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष विभिन्न पर्सनल लॉ के तहत समान-लिंगी विवाहों को मान्यता देने की याचिका का विरोध करते हुए, केंद्र ने पिछले महीने एक हलफनामे के माध्यम से अदालत को सूचित किया था कि, "विपरीत लिंग के व्यक्तियों के विवाह तक मान्यता को सीमित करने में एक वैध राज्य हित है" और "विवाह संस्था ऐसी अवधारणा नहीं है, जिसे किसी व्यक्ति की गोपनीयता तक अवनत कर दिया जाए।"
हलफनामे के मुख्य बिंदु
-अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन है और देश के कानूनों के तहत मान्यता प्राप्त करने के लिए समान लिंग विवाह के मौलिक अधिकार को शामिल करने के लिए इसका विस्तार नहीं किया जा सकता है, जो वास्तव में इसके विपरीत है।
-सामाजिक नैतिकता के विचार कानून की वैधता पर विचार करने में प्रासंगिक हैं और यह भारतीय मूल्यों के आधार पर ऐसी सामाजिक नैतिकता और सार्वजनिक स्वीकृति को निर्धारित करने और लागू करने के लिए विधायिका पर निर्भर है।
-हमारे देश में, एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला के बीच विवाह के संबंध की वैधानिक मान्यता के बावजूद, विवाह आवश्यक रूप से पुराने रीति-रिवाजों, परंपराओं, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है।
-एक 'पुरुष' और 'महिला' के बीच संबंध के रूप में विवाह की वैधानिक मान्यता आंतरिक रूप से विवाह की संस्था की मान्यता और इसके सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों के आधार पर भारतीय समाज की स्वीकृति से जुड़ी हुई है।
इसके अलावा, एक समलैंगिक महिला को, परिवार की पसंद के एक पुरुष से, अपनी इच्छा के विरुद्ध शादी करने के मामले में 10 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस मुक्ता गुप्ता की पीठ ने महिला की याचिका पर नोटिस जारी किया और दिल्ली पुलिस को महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
विशेष रूप से, मामले पर प्रगतिशील रुख अपनाते हुए, अदालत ने महिला और उसके पति के साथ बातचीत की और निर्देश दिया कि विवाह के विघटन के लिए जल्द से जल्द कदम उठाए जा सकते हैं।
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