'सेफ सेक्स एजुकेशन समय की मांग’: केरल हाईकोर्ट ने सरकार को इस मुद्दे के समाधान के लिए समिति गठित करने का सुझाव दिया
युवाओं के बीच उचित 'सुरक्षित यौन शिक्षा' की आवश्यकता पर जोर देते हुए केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सरकार को एक समिति गठित करने और स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रमों में 'सुरक्षित यौन शिक्षा' शुरू करने पर विचार करने का सुझाव दिया। कोर्ट ने मुख्य सचिव को इस संबंध में उचित कार्रवाई करने को कहा।
अदालत ने ये टिप्पणी एक पिता की याचिका पर विचार करते हुए की। जिसमें याचिकाकर्ता के बेटे द्वारा गर्भवती की शिकायतकर्ता (नाबालिग लड़की) के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग की थी। जस्टिस पी वी कुन्हिकृष्णन की एकल पीठ ने कहा कि सुरक्षित यौन संबंध के बारे में जानकारी की कमी के कारण ऐसी घटनाएं होती हैं।
बेंच ने कहा,
“यह हमारे समाज का कर्तव्य है कि इन माता-पिता को इस आघात से उबरने के लिए पास रखा जाए। माता-पिता को कोई दोष नहीं दे सकता. लेकिन, इसके लिए हम समाज ही जिम्मेदार है। याचिकाकर्ता के बेटे और शिकायतकर्ता के बीच अनाचार उस पारिवारिक व्यवस्था के संदर्भ में हो सकता है जो अपने सदस्यों को सुरक्षित वातावरण प्रदान नहीं करती है। लेकिन ऐसा सुरक्षित सेक्स के बारे में जानकारी की कमी के कारण भी हो सकता है। मेरी सुविचारित राय है कि सरकार को स्कूलों और कॉलेजों में उचित 'यौन शिक्षा' की आवश्यकता के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।“
जब मामला पहली बार विचार के लिए आया, तो न्यायालय ने यह कहते हुए गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी थी कि 'सामाजिक और चिकित्सीय जटिलताएँ संभावित हैं'। हालांकि, मेडिकल बोर्ड ने कहा था कि चूंकि नाबालिग 32 सप्ताह की गर्भावस्था में थी, इसलिए समय से पहले जीवित बच्चे को जन्म देने की संभावना थी, जिसे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता था।
बाद में अदालत को सूचित किया गया कि नाबालिग लड़की ने शिशु को जन्म दिया है। अदालत ने तब नाबालिग बेटी के पिता को सूचित किया कि वह किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 40 के अनुसार उसकी बहाली के लिए बाल कल्याण समिति को आवेदन प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र है।
शुक्रवार को जब मामला विचार के लिए आया, तो अदालत को सूचित किया गया कि बाल कल्याण समिति, मलप्पुरम ने नाबालिग मां को उसके चाचा को सौंप दिया था और नवजात बच्चे को समिति को सौंप दिया गया है। यह कहते हुए कि 'नवजात शिशु की सुरक्षा राज्य का कर्तव्य है', कोर्ट ने बाल कल्याण समिति को कानून के अनुसार आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
“भविष्य में हमारे समाज में इस प्रकार की दुर्घटनाएं नहीं होंगी। इससे माता-पिता और पीड़ित लड़की की शर्मिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती. जैसा कि मैंने पहले कहा, सुरक्षित सेक्स के बारे में जानकारी की कमी के कारण ऐसा हुआ। नाबालिग बच्चे 'इंटरनेट' और 'गूगल सर्च' में सबसे आगे हैं। बच्चों को कोई मार्गदर्शन नहीं है।”
युवा मन को 'सुरक्षित यौन संबंध' के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए न्यायालय ने कहा,
“माता-पिता को इस प्रकार की शर्मिंदगी से बचने के लिए सुरक्षित यौन शिक्षा समय की मांग है। समाज में अच्छा पारिवारिक वातावरण आवश्यक है। इसे हासिल करने के लिए इस देश के हर नागरिक को ऐसे दुर्भाग्यशाली लोगों पर पथराव किए बिना एकजुट होना चाहिए।'
गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने वाले न्यायालय के आदेश के अनुसार, वकील कुलाथूर जयसिंह ने इस मामले में पक्षकार बनने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
खंडपीठ में चीफ जस्टिस एस.वी. भट्टी और जस्टिस बसंत बालाजी ने आवेदक को मामले में खुद को प्रतिवादियों में से एक के रूप में शामिल करने के साथ-साथ मामले में उचित आदेश जारी करने के लिए एकल न्यायाधीश के पास जाने की स्वतंत्रता दी थी।
जयसिंह ने एकल पीठ के फैसले के खिलाफ अपील करते हुए कहा था कि बिना किसी सबूत के पीड़ित लड़की के परिवार के सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के "झूठे गौरव" को बचाने के लिए न्यायिक आदेश से गर्भ में पल रहे बच्चे को खत्म नहीं किया जा सकता है। एकल पीठ ने बाद में रिट याचिका बंद करने से पहले वकील जयसिंह की पक्षकार याचिका को स्वीकार कर लिया।
केस टाइटल: XXX बनाम भारत संघ
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (केरल) 289
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