धारा 256 सीआरपीसीः एडवोकेट की गलती से पार्टी के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट ने चेक अनादरण मामले में बरी आदेश को रद्द किया

Update: 2023-02-06 16:12 GMT

Calcutta High Court

कलकत्ता हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि पार्टी की ओर से पेश वकील से अनजाने में हुई गलती के कारण किसी पक्ष के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए, शुक्रवार को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक के अनादरण के अपराध के लिए बरी करने के आदेश को रद्द कर दिया।

जस्टिस अनन्या बंद्योपाध्याय की बेंच नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक के अनादर के अपराध में ट्रायल कोर्ट की ओर से दिए गए बरी के आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता बैंक की अपील पर निर्णय दे रही थी।

ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 256 के तहत प्रतिवादी को बरी कर दिया था। धारा 256 के तहत शिकायतकर्ता की गलती पर डिसमिसल पर विचार किया गया है। उक्त प्रावधान के तहत समन जारी करने के बाद, यदि शिकायतकर्ता उपस्थित नहीं होता है तो न्यायालय आरोपी को बरी कर सकता है, जब तक कि वह किसी कारण से मामले की सुनवाई को किसी अन्य दिन के लिए स्थगित करना उचित न समझे।

एमिकस क्यूरी ने हाईकोर्ट को अवगत कराया गया कि शिकायतकर्ता बैंक की ओर से पेश वकील बीमारी के कारण ट्रायल कोर्ट में पेश नहीं हो सका और उसके जूनियर ने अनजाने में ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया था कि पक्षों के बीच समझौता हो गया था और यह कि शिकायतकर्ता बैंक मामले को और आगे बढ़ाने के लिए तैयार नहीं था।

तदनुसार, ट्रायल कोर्ट ने धारा 256 सीआरपीसी के तहत प्रतिवादी को बरी करने का आदेश पारित किया। जिसके बाद शिकायतकर्ता बैंक की ओर से आपत्तिजनक आदेश को वापस लेने के लिए आवेदन दायर किया गया था।

प्रतिद्वंदी की दलीलों पर विचार करने के बाद जस्टिस बंद्योपाध्याय ने कहा कि संबंधित ट्रायल कोर्ट सीआरपीसी की धारा 362 के मद्देनजर बरी के आदेश पर हस्ताक्षर करने के बाद उसे वापस नहीं ले सकता है।

विवादित आदेश को रद्द करते हुए अदालत ने कहा,

"इस न्यायालय की राय में शिकायतकर्ता बैंक को वकील की ओर से हुई गलती के कारण नुकसान नहीं होना चाहिए और तदनुसार 30.05.2007 को पारित आदेश दिया गया रद्द किया जाता है और अपील स्वीकार की जाती है।"

ट्रायल कोर्ट को यह भी निर्देश दिया गया था कि किसी भी अप्रत्याशित परिस्थितियों को छोड़कर किसी भी पक्ष को कोई स्थगन दिए बिना मामले को जल्द से जल्द निपटाया जाए।

केस टाइटल: प्रशांत भट्ट बनाम अब्दुल एसके

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