धारा 202 सीआरपीसी | मजिस्ट्रेट जब प्रक्रिया जारी करना टाल देता है तो उसके पास संदिग्ध चोरी की संपत्ति को जब्त करने का निर्देश देने का विकल्प नहीं रह जाताः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा, जब एक मजिस्ट्रेट आरोपी के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 202 के तहत प्रक्रिया जारी करना टाल देता है तो उसके पास संदिग्ध चोरी की संपत्ति को जब्त करने का निर्देश पारित करने का विकल्प नहीं होगा।
जस्टिस संजय धर की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी द्वारा उसके खिलाफ दायर शिकायत को चुनौती दी थी। शिकायत में धारा 149 सहपठित धारा 382 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था, जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अनंतनाग के समक्ष लंबित बताया गया था।
शिकायत में आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी के दो वाहन छीन लिए। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में सीजेएम के उस आदेश को भी चुनौती दी थी, जिसके तहत डिविजन ऑफिसर पुलिस पोस्ट संगम को उन वाहनों को बरामद करने का निर्देश दिया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि मजिस्ट्रेट के पास यह विकल्प नहीं है कि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे बिना कि क्या याचिकाकर्ता ने अपराध किया है, वह वाहनों को जब्त करने का निर्देश दें।
प्रतिवादी की ओर से दायर शिकायत में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई प्रक्रिया जारी नहीं होने के कारण यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि विद्वान मजिस्ट्रेट ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की जाए या नहीं।
शुरुआत में, जस्टिस धर ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने अपराध का संज्ञान लेने के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रक्रिया जारी करना टाल दिया और प्रभारी पीपी संगम को धारा 202 सीआरपीसी के संदर्भ में शिकायत की सच्चाई या झूठ के संबंध में जांच करने का निर्देश दिया।
अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस द्वारा जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, लेकिन मजिस्ट्रेट इससे संतुष्ट नहीं थे और निर्देश दिया कि वाहनों और उनके स्वामित्व के बारे में विस्तृत जांच की जाए और साथ ही यह भी निर्देश दिया कि संबंधित वाहनों को तुरंत जब्त कर लिया जाए।
इस पृष्ठभूमि में पीठ ने कहा कि धारा 202 सीआरपीसी पूरी तरह से स्पष्ट है कि एक मजिस्ट्रेट, जो किसी अपराध का संज्ञान लेने के लिए अधिकृत है, यदि वह उचित समझे, तो आरोपी के खिलाफ प्रक्रिया के मुद्दे को स्थगित कर सकता है और या तो खुद मामले की जांच कर सकता है या किसी पुलिस अधिकारी या ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा, जिसे वह ठीक समझे, जांच करने का निर्देश दे सकता है, ताकि यह तय किया जा सके कि कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं।
मजिस्ट्रेट द्वारा प्रक्रिया जारी करना तब स्थगित किया जाता है, जब वह रिकॉर्ड पर सामग्री के आधार पर यह तय करने की स्थिति में नहीं होता है कि आरोपी के खिलाफ कोई अपराध किया गया है या नहीं, या शिकायत में लगाया गया आरोप सही है या नहीं?
मामले पर आगे विचार करते हुए बेंच ने कहा कि मौजूदा मामले में मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 202 के संदर्भ में एक निर्देश जारी करके मामले की जांच प्रभारी पी/पी संगम द्वारा करने का फैसला किया था, जो दर्शाता है कि वह रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर सुनिश्चित नहीं था कि शिकायत में लगाए गए आरोप सही हैं या नहीं या याचिकाकर्ता-आरोपी के खिलाफ कोई अपराध बनता है या नहीं। ऐसी स्थिति में विद्वान मजिस्ट्रेट के पास प्रभारी पी/पी को उन वाहनों को जब्त करने का निर्देश देने का विकल्प नहीं था, जो शिकायत का विषय हैं।
तदनुसार, पीठ ने अधिकार क्षेत्र के बिना और स्पष्ट रूप से अवैध होने के कारण आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: रियाज अहमद वागे बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 150