धारा 166, एमवीए 1988: कुंवारे हिंदू पुरुष की मोटर दुर्घटना में मृत्यु के कारण दिए गए मुआवजे पर उसकी मां का पहला दावाः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक कुंवारे हिंदू पुरुष की मोटर दुर्घटना में मृत्यु के कारण मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत दिए गए मुआवजे पर उसकी मां पहला दावा रखती है।
जस्टिस जीएस अहलूवालिया की पीठ ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के आधार पर, मृत अविवाहित हिंदू की मां क्लास-1 की एक मात्र वारिस है। अधिनियम के तहत दिए गए मुआवजे पर उसका पहला दावा है।
कोर्ट ने कहा,
चूंकि मृतक अविवाहित था, इसलिए उसकी माता के अलावा प्रथम श्रेणी का कोई वारिस उपलब्ध नहीं है। यह कानून का एक सुस्थापित सिद्धांत है कि एक हिंदू पुरुष की संपत्ति अनुसूची के वर्ग 1 में उत्तराधिकारी के रूप में विशिष्ट रूप से शामिल संबंधियों के पास जाती है, और यदि वर्ग एक का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता तो अनुसूची के वर्ग दो में उत्ताराधिकारी के रूप में शामिल संबंधियों के पास जाती है। ... अपीलकर्ताओं के वकील यह नहीं बता सके कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अनुसार भी मृतक के पिता, भाई और दादी को मृतक का कानूनी प्रतिनिधि कैसे माना जा सकता है। हालांकि यह स्पष्ट किया गया है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के कारण दिए गए मुआवजे को एक मृत हिंदू पुरुष की निर्वसीयत संपत्ति के समान नहीं माना जा सकता है, हालांकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के प्रावधानों को अपीलकर्ता की ओर से दिए गए इस तर्क को पूरा करने के लिए उद्धृत किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अविवाहित के मामले में केवल उसकी मां को आश्रित माना जाएगा, यह कहकर गंभीर अवैधता की है।"
मामले के तथ्य यह थे कि अपीलकर्ता दावा न्यायाधिकरण के निर्णय से व्यथित थे, जिसमें यह माना गया था कि चूंकि दुर्घटना में मरा व्यक्ति अविवाहित हिंदू था। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत मुआवजे की मांग के लिए केवल उसकी मां को ही आश्रित कहा जा सकता है।
क्लेम ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 कानूनी प्रतिनिधियों की बात करती है न कि आश्रितों की। इसलिए, उन्होंने दावा किया कि चूंकि मृतक की दादी और पिता उसके कानूनी प्रतिनिधि थे, इसलिए वे भी मुआवजे की मांग के हकदार थे।
पक्षकारों के प्रस्तुतीकरण और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों की जांच करते हुए, न्यायालय ने अपीलकर्ताओं के तर्कों में दम नहीं पाया।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 का उल्लेख करते हुए, न्यायालय ने कहा कि मृतक हिंदू पुरुष की निर्वसीयत की संपत्ति सबसे पहले उन उत्तराधिकारियों को दी जाती है, जो कि अनुसूची के वर्ग I में निर्दिष्ट रिश्तेदार हैं।
वर्ग I में एक पुत्र, पुत्री, विधवा, माता, पूर्व में मृत पुत्र का पुत्र, पूर्व में मृत पुत्र की पुत्री, पूर्व में मृत पुत्री का पुत्र, पूर्व में मृत पुत्री की पुत्री, पूर्व में मृत पुत्र की विधवा, पूर्व में मृत पुत्र के पूर्व में मृत पुत्र का पुत्र, पूर्व में मृत पुत्र के पूर्व में मृत पुत्र का पुत्री, पूर्व में मृत पुत्र के पूर्व में मृत पुत्र की विधवा, र्व में मृत पुत्री की पूर्व में मृत पुत्री का पुत्र, पूर्व में मृत पुत्री की पूर्व में मृत पुत्री की पुत्री, पूर्व में मृत पुत्री के पूर्व में मृत पुत्र की पुत्री, पूर्व में मृत पुत्र की मृत पुत्री की पुत्री शामिल हैं।
अदालत ने कहा कि एक अविवाहित हिंदू की मृत्यु के मामले में, उसके बाद एकमात्र वर्ग I वारिस उसकी मां होगी। न्यायालय ने हालांकि स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के कारण दिए गए मुआवजे को निर्वसीयत मरे हिंदू पुरुष की संपत्ति नहीं माना जा सकता है।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने अपीलकर्ताओं की दलीलों को खारिज कर दिया और तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटलः मनोज कुमार व अन्य बनाम HDFC Insurance और अन्य। (MA-155/2019)