धारा 125 सीआरपीसी | सौतेली मां मृतक पति के पास संपत्ति होने का सबूत दिखाकर सौतेले बच्चों से गुजारा भत्ता मांग सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक सौतेली मां अपने मृत पति के कानूनी उत्तराधिकारियों से भरण-पोषण प्राप्त करने लिए फैमिली कोर्ट के समक्ष यह साबित करना होगा कि उसके पति के पास काफी संपत्ति थी और उनसे आमदनी होती थी। इस प्रकार वह भरण-पोषण की हकदार होगी।
जस्टिस के नटराजन की सिंगल जज बेंच ने खलील उल-रहमान की ओर से दायर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया, जिसमें उन्होंने फैमिली कोर्ट की ओर से उनकी सौतेली मां को प्रति माह 25,000 रुपये का भरण-पोषण देने के आदेश को रद्द करने और संशोधित करने की मांग की थी।
अदालत ने कहा,
"फैमिली कोर्ट की ओर अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 25,000 रुपये का भरण-पोषण देने का आदेश टिकाऊ नहीं है और मामले में याचिकाकर्ता/सौतेली मां की ओर से सबूत और दस्तावेजों पेश करने की जरूरत है, जिनसे यह दिखाया जा सके कि पति के पास बहुत संपत्ति है और उनसे आय हो रही है।
अदालत ने अदालत के कथनों को इस प्रकार संशोधित किया कि "याचिकाकर्ता की सौतेली मां ट्रायल कोर्ट के मामले के निस्तारण तक प्रति माह 10,000 रुपये की हकदार हैं।
फैमिली कोर्ट को पक्षकारों के साक्ष्य रिकॉर्ड करने और कानून के अनुसार मामले का फैसला करने की आवश्यकता है। मामले का निस्तारण करते समय वरिष्ठ नागरिक अधिनियम और सीआरपीसी की धारा 125, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और इस न्यायालय की समन्वय पीठ के एक निर्णय को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
याचिकाकर्ताओं ने प्रतिवादी को 25,000 रुपये प्रति माह के भरण-पोषण के फैमिली कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
सौतेली मां ने फैमिली कोर्ट के समक्ष दलील दी थी कि उसने याचिकाकर्ता के पिता की पहली पत्नी की मौत के बाद उससे शादी की थी।
विवाह के समय उसके पति ने आश्वासन दिया था कि उसके पास चल संपत्ति के अलावा भू-संपत्ति भी है और वह प्रतिवादी की देखभाल करेगा। वह अपने पति के संयुक्त परिवार में रह रही थी।
पति की मृत्यु 30.08.1994 को हुई और उनके उत्तराधिकारी मामले के मौजूदा याचिकाकर्ता थे, जो मोहेद्दीन मुनिरी की संतान हैं।
यह भी कहा गया कि वह एक वरिष्ठ नागरिक है, अशिक्षित और बेरोजगार गृहिणी है, उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। भटकल में किराए के मकान से 4000 रुपये के अलावा आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है।
उनकी एक बेटी है जो तलाकशुदा भी है और उनकी एक पोती भी है जो 3 साल की है। यहां प्रतिवादी आरटी नगर, बेंगलुरु में 12000 रुपये का मासिक किराया दे रही है और उसे बुढ़ापे से संबंधित समस्याएं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं। इसके बाद आक्षेपित आदेश पारित किया गया।
याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि सीआरपीसी की धारा 125 प्रतिवादी पर लागू नहीं होती है क्योंकि वह याचिकाकर्ताओं की सौतेली मां है, और वह भरण-पोषण देने के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत नहीं आती है।
दूसरे, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का विशेष भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 और धारा 9(2) के अनुसार देय राशि अधिकतम 10,000 रुपये है, इसलिए कम भुगतान से बचने के लिए प्रतिवादी ने यह याचिका दायर की है।
यह भी तर्क दिया गया कि उक्त अधिनियम वर्ष 2007 में लागू हुआ था, इसलिए उसे राहत के लिए उपायुक्त के पास जाना पड़ा।
रिकॉर्ड को देखने के बाद और सीआरपीसी की धारा 125 का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा, "सीआरपीसी की धारा 125 (1) में सौतेली मां को परिभाषा के तहत कवर नहीं किया गया है, ताकि वह सौतेले बच्चों से कोई भरण-पोषण मांग सके।"
कोर्ट ने आगे कहा, “वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 9 (1) (2) के अनुसार, भरण-पोषण देने की अधिकतम सीमा 10,000 रुपये थी। उक्त अधिनियम में परिभाषा की धारा 2 (डी) के अनुसार, "माता-पिता का अर्थ है, पिता या माता, चाहे जैविक, दत्तक, या सौतेला पिता या सौतेली मां, जैसा कि मामला हो सकता है।"
इसके बाद कोर्ट ने कहा, "इसलिए, सौतेली मां को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत परिभाषित नहीं किया गया है और वह मां की परिभाषा में शामिल नहीं है, जबकि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 में सौतेली मां को शामिल किया गया है।
ऐसा मामला होने पर, याचिकाकर्ता को भरण-पोषण का दावा करने के लिए विशेष अधिनियम के तहत न्यायाधिकरण से संपर्क करने की आवश्यकता है।”
बेंच ने कहा, "मामले की परिस्थितियों को देखते हुए फैमिली कोर्ट द्वारा अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 25,000 रुपये देने का आदेश टिकाऊ नहीं है और मामले में सौतेली मां द्वारा साक्ष्य और दस्तावेज पेश करने की जरूरत है ताकि वह दिखा सके कि उनके पति के पास बहुत संपत्ति है और उनसे आय हो रही है।
कोर्ट ने कहा,
"हालांकि प्रतिवादी को 4,000 रुपये का किराया मिल रहा है, लेकिन उसकी तलाकशुदा बेटी और पोती है, इसलिए, याचिकाकर्ता को फैमिली कोर्ट के समक्ष यह बात उठाने की जरूरत है और साथ ही वह वरिष्ठ नागरिक अधिनियम में भरण-पोषण का दावा कर सकती है।"
यह कहते हुए कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि "इसलिए चुनौती के तहत आदेश रद्द और संशोधित किए जाने योग्य हैं।"
केस टाइटल: खलील उल रहमान और अन्य और शरफुन्निसा मुनिरी@ अशरफ उन्नीसा
केस नंबर: क्रिमिनल पेटिशन नंबर 8508 ऑफ 2022, रिट पेटिशन नंबर 14494 ऑफ 2022 से जुड़ा हुआ है
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (कर) 110