सीआरपीसी की धारा 125-'अंतरिम भरण-पोषण देना प्राथमिक चिकित्सा देने के समान,यह पत्नी और बच्चों को दर-दर भटकने से बचाता है': हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी के अध्याय IX के तहत अंतरिम भरण-पोषण देना प्राथमिक उपचार देने जैसा है, जो पत्नी और बच्चों को दर-दर भटकने/खानाबदोशी और उसके परिणामों से बचाता है।
न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने कहा कि,
''अंतरिम भरण पोषण देना प्राथमिक उपचार देने के समान है। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 का अध्याय IX, आवेदक को भुखमरी से बचाने के लिए संक्षिप्त प्रक्रिया के तहत एक त्वरित उपाय प्रदान करता है और एक परित्यक्त पत्नी या बच्चों को तत्काल कठिनाइयों का सामना करने के लिए भरण-पोषण के माध्यम से उचित राशि प्रदान करता है।''
कोर्ट ने कहा कि, ''विधायिका द्वारा अधिनियमित सामाजिक न्याय के उपायों की नींव भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 (3) के तहत है। यह पत्नियों और बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने, उन्हें दर-दर भटकने/खानाबदोशी और उसके परिणामों से बचाने के लिए एक जीवंत लोकतंत्र में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को पूरा करता है।''
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक पति की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की है। जिसने एक फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करने की मांग की थी,चूंकि इस आदेश को सत्र न्यायालय ने भी बरकरार रखा था। फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता/पति को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी और बच्चों को दो हजार रुपये मासिक अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर प्रदान करे।
पत्नी का मामला यह है कि शादी के समय वह विधवा थी और याचिकाकर्ता के समझाने पर वह उससे शादी करने के लिए तैयार हो गई। दूसरी ओर, याचिकाकर्ता पति ने तर्क दिया कि महिला वह लाभ प्राप्त कर रही है, जो विधवाओं को दिया जाता है और उन दोनों के बीच विवाह कभी नहीं हुआ।
भरण-पोषण का आदेश तब दिया गया, जब तीन बच्चों की मां/ पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया और आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने अब उसको वित्तीय सहायता प्रदान करना बंद कर दिया है और सारा पैसा शराब पर खर्च कर देता है।
इस विषय पर प्रावधान और प्रासंगिक निर्णयों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के प्रावधान मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देते हैं कि वह अंतरिम भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता देने और लंबित रहने के दौरान ऐसी कार्यवाही के खर्चों का भुगतान करने का आदेश दे सके।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि,
'' उपरोक्त के अनुसार, न्यायालयों के लिए यह उचित होगा कि जिस व्यक्ति के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन किया जाता है, उसे यह निर्देश दिया जाए कि वह आवेदन के अंतिम निपटान तक आवेदक को भरण-पोषण के माध्यम से कुछ उचित राशि का भुगतान करे।''
यह भी कहा गया कि हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा शादी को चुनौती दी गई है और कहा गया है कि शादी कभी हुई ही नहीं थी,फिर भी, यह सबूत के अधीन है और तत्काल याचिका में, कोर्ट का संबंध अंतरिम भरण-पोषण से है और इससे ज्यादा कुछ नहीं।
इसलिए अदालत का विचार है कि प्रथम दृष्टया यह मामला बनता है कि पत्नी अलग रह रही है और वह आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदेश किसी भी पक्ष को कानून के अनुसार सीआरपीसी की धारा 127 के तहत कानूनी उपायों की तलाश करने के लिए प्रतिबंधित नहीं करेगा।
इसी के तहत याचिका खारिज कर दी गई।
केस का शीर्षक- सुभाष चंद बनाम कृष्णा देवी
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