साक्ष्य अधिनियम की धारा 106- पति को उसके घर में हुई पत्नी की मौत का विवरण देने के लिए तब तक नहीं कहा जा सकता, जब तक कि अभियोजन प्रथम दृष्टया मामला स्थापित न करे : बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में पत्नी की हत्या के मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया। मृतका का शरीर उसके घर में मिला था और वह मृतका के पास पाया गया था।
जस्टिस साधना एस. जाधव और जस्टिस मिलिंद एन. जाधव की खंडपीठ ने तर्क दिया कि आरोपी को चुप्पी बनाए रखने का अधिकार है और यह अभियोजन पक्ष के लिए है कि वह पहले अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करे, इससे पहले कि आरोपी को अपने बचाव में परिस्थितियों की व्याख्या करने के लिए कहा जाए।
यह नोट किया गया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के अनुसार, अभियोजन पक्ष पर अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने का प्रारंभिक बोझ होता है। यदि अभियोजन निर्णायक रूप से यह साबित करने में असमर्थ है कि आरोपी ने उसकी पत्नी को नुकसान पहुंचाया है तो आरोपी पर यह स्पष्ट करने की जिम्मेदारी नहीं होगी कि उसकी पत्नी की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई और कैसे उसका शव आरोपी और मृतका के कब्जे वाले घर में पाया गया है?
''भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 उचित संदेह से परे अपने मामले को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष के प्रारंभिक बोझ से उसे मुक्त नहीं करती है। जब तक अभियोजन अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम नहीं होता है और इस तथ्य का निर्णायक सबूत नहीं देता है कि आरोपी ने ही अपनी पत्नी को चोट पहुंचाई थी,तब तक आरोपी पर यह स्पष्ट करने की जिम्मेदारी नहीं होगी कि उसकी पत्नी की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई है, और उसका शव आरोपी और मृतका के कब्जे वाले घर में कैसे पाया गया है?''
गवाह नंबर एक को आरोपी उसके घर में खून से लथपथ मृतका के शव के पास बैठा मिला था। उसने कथित तौर पर गवाह नंबर एक के समक्ष अपनी पत्नी की हत्या करने की बात कबूल की थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, जब वह सो रही थी, तब आरोपी ने उसके सिर और पीठ पर वार किया। इसके बाद उसने उस पर ध्यान नहीं दिया और अगली सुबह 6 बजे उसने देखा कि वह मर चुकी थी।
गवाह नंबर एक ने इसकी सूचना पुलिस को दी और चार्जशीट दाखिल की गई। हालांकि, अपने मूल साक्ष्य में गवाह नंबर एक ने आरोपी द्वारा उसके समक्ष किए गए खुलासे के बारे में कोई बयान नहीं दिया और उसने अदालत के समक्ष बताया कि उक्त घटना के बारे में पूछताछ करने पर आरोपी ने उसे बताया था कि उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई इसलिए इस गवाह को मुकरा हुआ गवाह घोषित कर दिया गया था।
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अपेक्षित स्पष्टीकरण देना अभियुक्त पर निर्भर है और तथ्य यह है कि शव आरोपी के घर में पाया गया था और उसने इसके संबंध में कोई प्रशंसनीय स्पष्टीकरण नहीं दिया है। इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए यह तथ्य पर्याप्त है। इतना ही नहीं, आरोपी के घर से 10 फीट की दूरी पर एक गत्ते के गत्ते के डिब्बे में अखबार रखे हुए थे, जिसमें एक बांस की छड़ी छुपाई गई थी। जिसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत आरोपी के कहने पर बरामद किया गया था।
अदालत ने कहा कि उसके सामने सवाल यह है कि आरोपी के खिलाफ ऐसे क्या सबूत हैं जिससे यह आवश्यक निष्कर्ष निकलेगा कि मृतका को लगी चोट आरोपी ने ही उसे पहुंचाई थी। ''किसी आरोपी को केवल तभी दोषी ठहराया जा सकता है जब जांच में ऐसी सामग्री को रिकॉर्ड में रखा जाता है जिसे स्वीकार्य साक्ष्य में परिवर्तित किया जा सकता है और साक्ष्य में पढ़ा जा सकता है। वर्तमान मामले में, अभियोजन द्वारा पेश किए गए साक्ष्य की प्रकृति को देखते हुए, इस अनुमान पर कार्रवाई करना मुश्किल होगा कि आरोपी के हाथों मानव हत्या का तथ्य साबित होता है।''
अदालत ने माना कि इस तथ्य को छोड़कर कि मृतका का शव उसके घर में पाया गया था, इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई अन्य सबूत नहीं है कि उसने अपनी पत्नी को चोट पहुंचाई।
''यह आपराधिक न्यायशास्त्र का एक स्थापित सिद्धांत है कि एक आरोपी को चुप्पी बनाए रखने का अधिकार है और अभियोजन पक्ष को अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करना होता है। वर्तमान मामले में, बचाव पक्ष ने दलील दी है कि मृतका शराब की आदी थी और घर आते हुए वह रास्ते में नाले में गिर गई थी और उसे उक्त चोटें लगी थी।''
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि गवाह मुकर गया है। इस तरह कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया।
केस टाइटल- सुरेश लडक़ भगत बनाम महाराष्ट्र राज्य
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (बीओएम) 205
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