धारा 202(1) सीआरपीसी- यदि अभियुक्त मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहता है तो प्रक्रिया जारी करने से पहले जांच/अन्वेषण अनिवार्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-02-21 11:11 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सीआरपीसी की धारा 202(1) के तहत, यदि कोई आरोपी मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहता है तो ऐसे मजिस्ट्रेट के लिए सीआरपीसी की धारा 204 के तहत प्रक्रिया जारी करने से पहले या तो खुद मामले की जांच करना या जांच करने का निर्देश देना अनिवार्य है।

जस्टिस मंजू रानी चौहान की खंडपीठ ने आगे कहा कि धारा 202 सीआरपीसी (23.06.2006 से संशोधित) के प्रावधान के अनुसार, आवश्यकता यह है कि उन मामलों में, जहां आरोपी अधिकार क्षेत्र से परे एक ऐसी जगह पर रह रहा हो, जिसमें संबंधित मजिस्ट्रेट अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है, प्रक्रिया जारी करने से पहले मजिस्ट्रेट की ओर से जांच या अन्वेषण करना अनिवार्य है।

मामला

एक महिला ने अपने ससुराल वालों (अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता) के खिलाफ शिकायत की थी कि वे उसे मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करते थे और शादी के लगभग 7 महीने बाद उसे उसके माता-पिता के घर वापस भेज दिया था।

शिकायत में आगे कहा गया कि जब उसे पता चला कि वे उसे वापस बुलाने में रुचि नहीं रखते हैं, तो उसने उनसे अपना स्त्री धन वापस करने का अनुरोध किया, हालांकि, उन्होंने उसे वापस नहीं किया, इसलिए, उसने मौजूदा शिकायत को आगे बढ़ाया था।

इस शिकायत पर ससुराल पक्ष/श्रीमती गीता और 4 अन्य (याचिकाकर्ता) को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट/अतिरिक्त सिविल जज (सीनियर डिवीजन), गाजियाबाद ने 15 सितंबर, 2021 के आदेश के तहत तलब किया था।

मजिस्ट्रेट के उक्त समन आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने धारा 406 आईपीसी के तहत पारित समन आदेश को रद्द करने के लिए न्यायालय में 482 सीआरपीसी याचिका दायर की।

उनका तर्क था कि यद्यपि शिकायत में उल्लिखित आवेदकों का पता बेंगलुरु है, इसलिए वे बेंगलुरु के निवासी हैं लेकिन गाजियाबाद में बैठे संबंधित मजिस्ट्रेट ने आवेदकों को समन भेजा था, उसने धारा 202 CrPC, 1973 के प्रावधान की अनदेखी और अनुपालन नहीं किया गया।

अंत में, यह प्रस्तुत किया गया कि उक्त प्रावधान में निर्धारित प्रक्रिया अनिवार्य थी जो मजिस्ट्रेट पर यह सुनिश्चित करने के लिए दायित्व लगाता है कि किसी आरोपी को, जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर रहता है, को बुलाने से पहले, मजिस्ट्रेट स्वयं मामले की आवश्यक जांच करेगा या किसी पुलिस अधिकारी या ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा जांच करने का निर्देश देगा जिसे वह ठीक समझे, यह पता लगाने के लिए कि आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं।

आदेश

शुरुआत में, कोर्ट ने विजय धानुका बनाम नजीमा ममताज (2014) 14 एससीसी , अभिजीर पवार बनाम हेमंत मधुकर निंबालकर और अन्य, (2017) 2 एससीसी 528 और सुनील टोडी बनाम गुजरात राज्य 2021 एससीसी ऑनलाइन एससी 1174 638 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को उल्‍लेख किया, जो इस प्रकार है,

"202(1) सीआरपीसी के तहत, जैसा भी मामला हो, संबंधित मजिस्ट्रेट के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर रहने वाले अभियुक्तों के खिलाफ समन जारी करने से पहले जांच या अन्वेषण, जैसा भी मामला हो, अनिवार्य है ... उपरोक्त के मद्देनजर, आक्षेपित आदेश कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है और रद्द किए जाने योग्य है। "

इसके साथ, धारा 482 सीआरपीसी के तहत आवेदन की अनुमति दी गई और आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया गया और मामले को आगे की कार्यवाही के लिए, कानून के अनुसार, विशेष रूप से धारा 202 (1) सीआरपीसी के प्रावधानों के मद्देनजर नीचे की अदालत में वापस भेज दिया गया।

केस शीर्षक - श्रीमती गीता और 4 अन्य बनाम यूपी राज्य और एक अन्य

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 57

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