मुक्त भाषण और व्यापार के अधिकार का उल्लंघन नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर लिस्टेड स्टॉक की जानकारी देने वाले एनालिस्टों के लिए SEBI की लाइसेंस की शर्त को बरकरार रखा

Update: 2022-09-29 09:41 GMT

Punjab & Haryana High court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की ओर से अपने रिसर्च एनालिस्टों के लिए, सोशल मीडिया पर स्टॉक से संबंधित सुझाव साझा करने के लिए लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता, रिसर्च एनालिस्टों के स्वतंत्र भाषण और व्यापार के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है।

जस्टिस रामचंद्र राव और जस्टिस हरमिंदर सिंह मदान की डिवीजन बेंच ने कहा कि उक्त आवश्यकता इंटरनेशल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ सिक्योरिटी कमीशंस (IOSCO) के उद्देश्यों और सिक्योरिटीज रेगुलेशन के सिद्धांतों के अनुरूप है- कि जो संस्थाएं निवेशकों को विश्लेषणात्मक या मूल्यांकन सेवाएं प्रदान करती हैं, उन्हें निरीक्षण और विनियमन के अधीन होना चाहिए..।

याचिकाकर्ता इक्विटी रिसर्च और मार्केट असेसमेंट में एक्सपर्ट हैं और उन्हें सिक्योरिटीज मार्केट में 14 साल से ज्यादा का अनुभव है। उन्होंने खुद को सेबी में रिसर्च एनालिस्ट के तौर पर रजिस्टर कराया था।

याचिकाकर्ता की शिकायत है कि सेबी (रिसर्च एनालिस्ट) रेगुलेशन, 2014 याचिकाकर्ता के लिए‌ लिस्टेड स्टॉक्स के बारे में बोलने या लिखने के लिए और स्टॉक संबंधित सुझावों को सोशल मीडिया पर साझा करने के लिए उत्तरदाताओं द्वारा लाइसेंस/पंजीकरण प्राप्त करने की आवश्यकता को अनिवार्य बनाकर अनुचित प्रतिबंध लगाता है।

उन्होंने तर्क दिया कि नियम उन्हें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार [अनुच्छेद 19(1)(ए)], पसंद के पेशे/व्यवसाय की प्रे‌क्टिस करने का अधिकार [अनुच्छेद 19(1)(जी) और 19 (6)], और स्वतंत्रता का अधिकार [अनुच्छेद 21] से वंचित करते हैं।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि विनियम समानता के अधिकार [अनुच्छेद 14] का भी उल्लंघन करते हैं, क्योंकि भारत में ऐसे कई बिजनेस हैं, जहां नागरिक बिना नियमन के परामर्श कर रहे हैं। इसके अलावा, आक्षेपित विनियम भी संविधान के भाग IV द्वारा गारंटीकृत राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के अनुसरण में नहीं हैं।

फैसला

न्यायालय ने नियमों का अवलोकन किया और माना कि मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति दरअसल इन अधिकारों के प्रयोग को 'विनियमित' करने की शक्ति है। कोर्ट ने बेनेट कोलमैन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जहां यह माना गया कि सच्ची परीक्षा यह है कि क्या आक्षेपित कार्रवाई का प्रभाव मौलिक अधिकारों को छीनना या कम करना है।

यह माना गया कि जहां संविधान के भाग II में गारंटीकृत एक से अधिक मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, वहां प्रतिबंध की वैधता निर्धारित करने के लिए सच्ची परीक्षा यह देखना होगा कि किस स्वतंत्रता के खिलाफ प्रतिबंध लगाया गया है।

न्यायालय ने विनियमों की धारा 2(यू) के तहत रिसर्च एनालिस्ट की परिभाषा का अध्ययन किया। यह माना गया कि विनियमन की वास्तविक प्रकृति और चरित्र से पता चलता है कि फ्री स्पीच के अधिकार का कोई सीधा उल्लंघन नहीं है। यह माना गया कि परिभाषा यह सुनिश्चित करती है कि केवल विनियमों के तहत पंजीकृत पेशेवर रूप से योग्य लोग ही शोध रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक शोध विश्लेषक के साथ जुड़े हुए हैं।

कोर्ट ने कहा कि इसका उद्देश्य रिपोर्ट की उच्च गुणवत्ता और तटस्थता बनाए रखना है और ऐसे लोगों को रिसर्च एनालिस्ट के साथ जुड़ने से हतोत्साहित करना है, जिन्हें विषय का अधूरा या बिल्कुल ज्ञान नहीं है।

जहां तक अन्य परामर्श व्यवसाय के साथ समानता का संबंध है, हाईकोर्ट ने कहा, "तथ्य यह है कि ज्योतिषियों या प्रबंधन सलाहकारों को परामर्श देने की अनुमति है, और उन्हें विनियमित नहीं किया जाता है, इसका मतलब यह नहीं है कि रिसर्च एनालिस्टों को, जो निवेशकों को जानकारी प्रदान करते हैं और जिसके आधार पर निवेश निर्णय किए जाते हैं, उन्हें भी विनियमन से बाहर रखा जाना चाहिए। इसलिए इस संबंध में भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 पर आधारित याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है।"

केस टाइटल: मनीष गोयल बनाम सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया, चेयरमैने के माध्यम से और अन्य।

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