पुनरीक्षण न्यायालय निचली अदालत की ओर से दर्ज तथ्यों के नतीजों को रद्द कर, उसे अपने नतीजों से प्रतिस्थापित नहीं कर सकता: तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि पुनरीक्षण न्यायालय के पास अधीनस्थ न्यायालय की ओर से दर्ज किए गए तथ्यों के नतीजों को रद्द करने और अपने नतीजों को प्रतिस्थापित करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
जस्टिस जुव्वादी श्रीदेवी की एकल पीठ ने कहा कि पुनरीक्षण न्यायालय को खुद को अधीनस्थ न्यायालय के निष्कर्षों की वैधता और औचित्य तक सीमित रखना होगा कि अधीनस्थ न्यायालय ने अपने अधिकार क्षेत्र के तहत काम किया है या नहीं।
कोर्ट ने कहा,
“सीआरपीसी की धारा 397 और 401 निचली अदालत की कार्यवाही या आदेशों की वैधता, औचित्य या नियमितता के बारे में संतुष्ट होने की सीमा तक पुनरीक्षण न्यायालय को केवल सीमित शक्ति प्रदान करती हैं और उन्हें साक्ष्यों के नए मूल्यांकन पर तथ्य के नए नतीजों की रिकॉर्डिंग सहित अन्य उद्देश्यों के लिए अपीलीय अदालत की तरह कार्य नहीं करना है।”
पीठ याचिकाकर्ता-पति की ओर से दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसकी पत्नी और नाबालिग बच्चों की ओर से 2018 में सीआरपीसी की धारा 127 के तहत दायर याचिका पर भरण-पोषण की राशि में वृद्धि की गई थी।
फैमिली कोर्ट ने 2010 में दिए गए भरण-पोषण के आदेश में वृद्धि की थी। प्रतिवादी पत्नी की भरण-पोषण की राशि 5,000/- रुपये से बढ़ाकर 10,000/- रुपये प्रति माह कर दी गई थी। दो नाबालिग बच्चों को 5,000/- रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया था।
याचिकाकर्ता पति के वकील ने तर्क दिया कि उसने लोक अदालत के समक्ष एक समझौता किया है और प्रतिवादी पत्नी ने सहमति व्यक्त की थी कि याचिकाकर्ता प्रतिवादी पत्नी और प्रत्येक नाबालिग बच्चों को 5000/- रुपये का भुगतान करेगा और राशि को बढ़ाने के लिए परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं है। इसलिए फैमिली कोर्ट ने भरण-पोषण में परिवर्तन करके त्रुटि की है।
प्रतिवादी पत्नी और नाबालिग बच्चों की ओर से पेश वकील ने कहा कि जीवन स्तर में वृद्धि हुई है इसलिए अदालत की ओर से भरण-पोषण राशि में वृद्धि करना सही है। पति के पास अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी है और प्रतिवादी के पास अपना और बच्चों के भरण-पोषण के लिए आजीविका का कोई साधन नहीं है। इसलिए आदेश अवैधता से ग्रस्त नहीं है।
उपरोक्त तर्कों के आलोक में, न्यायालय के समक्ष विचार करने के लिए जो प्रश्न आया वह यह था कि क्या फैमिली कोर्ट का आदेश अवैधता, अनुचितता या अनियमितता से ग्रस्त है, ताकि धारा 397 और 401 सीआरपीसी के तहत शक्तियों के प्रयोग में हस्तक्षेप किया जा सके।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि यह भरण-पोषण बढ़ाने के लिए एक उपयुक्त मामला है क्योंकि 2010 से 2018 तक जीन के लिए आवश्यक संसाधनों की लागत में बढ़ोतरी हुई है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह अच्छी तरह से स्थापित कानून है कि पुनरीक्षण न्यायालय तथ्यों के निष्कर्षों को खारिज नहीं कर सकता है।
अदालत ने पाया कि वर्तमान मामले में धारा 397 और 401 सीआरपीसी के तहत पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके इसमें हस्तक्षेप करने के लिए कोई अवैधता या अनुचितता नहीं है।
केस टाइटल: अजमीरा जगन बनाम तेलंगाना राज्य
बेंच: जस्टिस जुव्वादी श्रीदेवी