पति, उसके परिवार के खिलाफ पत्नी द्वारा बार-बार अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करना क्रूरता: दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला की याचिका खारिज की

Update: 2023-02-16 08:07 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने क्रूरता के आधार पर एक जोड़े के विवाह के विघटन को सही ठहराते हुए कहा कि पति और उसके परिवार के खिलाफ पत्नी द्वारा बार-बार अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल क्रूरता के समान है।

अदालत ने कहा कि हर व्यक्ति को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है और किसी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह लगातार गाली-गलौज के साथ जिए।

जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विकास महाजन की एक खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। फैमिली कोर्ट ने कहा था कि पत्नी अपने पति के साथ क्रूरता का व्यवहार कर रही है क्योंकि वह उसे (पति) और उसके माता-पिता को गाली देती है।

पीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की अपील को खारिज कर दिया, जिसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 की धारा 13(1) (i-a) के तहत पति की याचिका को अनुमति देकर तलाक की डिक्री पारित की थी, जिसमें क्रूरता के आधार पर विवाह को भंग करने की मांग की गई थी।

बेंच ने कहा,

"वर्तमान मामले में, अपीलकर्ता-पत्नी का आचरण जो रिकॉर्ड पर साबित हुआ है, वो ये है कि पत्नी के व्यवहार की वजह से नियमित और निरंतर आधार पर प्रतिवादी-पति को मानसिक पीड़ा, दर्द, क्रोध और पीड़ा का सामना करना पड़ रहा है। ये क्रूरता है।“

कोर्ट इस बात से संतुष्ट था कि पत्नी का व्यवहार हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) के तहत क्रूरता के समान है।

कोर्ट ने कहा,

"नतीजतन, हम याचिका की अनुमति देने और क्रूरता के आधार पर तलाक देने के फैसले में कोई कमी नहीं पाते हैं। इसलिए हम अपील में कोई योग्यता नहीं पाते हैं और अपील खारिज की जाती है।“

अदालत ने पत्नी के शब्दों को फिर से दोहराया,

- मैं शिक्षा विभाग में अधीक्षक हूं, आपका परिवार हमारे स्तर का नहीं है।

- दो कोड़ी का पुलिसवाला है तेरा बाप, मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, मिनिस्ट्री तक पहुच है मेरे पापा की।

- मैं इतना खर्च नहीं करती जितना तेरी दवाओं पर खर्च होता है।

- दिखायी नहीं देता बात कर रही हूं, सांस की बीमारी है लकवा नहीं है जो खुद दवाई नहीं ले सकते।'

केस टाइटल: डीबी बनाम आरबी



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