हिजाब पहने तस्वीरों के कारण मुस्लिम महिलाओं की उम्मीदवारी खारिज, कलकत्ता हाईकोर्ट कहा- पुलिस भर्ती प्रक्रिया का परिणाम याचिका पर आदेश के अधीन होगा

Update: 2021-11-26 11:00 GMT

एप्ल‌िकेशन फॉर्म पर हिजाब पहने तस्वीरें लगाने के बाद पश्चिम बंगाल पुलिस भर्ती प्रक्रिया से बाहर कर दी मु‌स्लिम महिलाओं की याचिका पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि भर्ती प्रक्रिया याचिका पर उसके आदेशों के अधीन होगी।

जस्टिस अर‌िंदम मुखर्जी ने कहा,

"याचिकाकर्ताओं ने धार्मिक र‌िवाज के अनुसार पहने गए हिजाब के साथ ली गई तस्वीरों के कारण उनकी उम्मीदवारी रद्द करने पर सवाल उठाया है, जब‌कि तस्वीर में चेहरा आवश्यक पहचान के लिए स्पष्ट था।"

याचिका में आरोप लगाया गया है कि भर्ती बोर्ड ने आवेदन को इसलिए अस्वीकार किया क्योंकि कई मुस्लिम महिलाएं तस्वीर में 'हिजाब ' पहने हुई थीं।

यह देखते हुए कि 'इस रिट याचिका में ‌‌विचार के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु मौजूद हैं', कोर्ट ने कहा, "यह स्पष्ट किया जाता है कि जहां तक ​​याचिकाकर्ता का संबंध है, भर्ती प्रक्रिया का परिणाम इस रिट याचिका के परिणाम के अधीन होगा।"

यह नोट किया गया कि मौजूदा मामले को हलफनामे दाखिल किए बिना योग्यता के आधार पर तय किया जा सकता है क्योंकि कोई विवादित दावा नहीं है। मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी , 2022 को होनी है ।

पृष्ठभूमि

पश्चिम बंगाल पुलिस भर्ती बोर्ड (डब्ल्यूबीपीआरबी) ने 26 सितंबर, 2021 को राज्य पुलिस बल में कांस्टेबलों की भर्ती के लिए प्रारंभिक परीक्षा आयोजित की थी। इसके बाद बोर्ड ने 6 सितंबर, 2021 को परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड जारी किए थे। 1000 मुस्लिम लड़कियों को भर्ती प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने अपने आवेदन पत्र के साथ जो तस्वीरें लगाई थीं, उनमें उन्हें हिजाब या हेडस्कार्फ़ पहने दिखाया गया था।

बोर्ड के 2020 दिशानिर्देश यह निर्धारित करते हैं कि तस्वीरों में आवेदकों का चेहरा किसी भी तरह से ढंका नहीं होने चाहिए।

2020 के दिशा निर्देशों के अनुसार, "आवेदकों को सलाह दी जाती है कि वे फोटोग्राफ और हस्ताक्षर के स्थान पर अन्य वस्तुओं की छवियों को अपलोड न करें। चेहरे/सिर को ढंकने वाले, आंखों को ढंकने वाले धूप के चश्मे/टिंटेड ग्लास वाले फोटोग्राफ को स्वीकार नहीं किया जाएगा। 'ग्रुपीज' या 'सेल्फी' से क्रॉप किए गए फोटोग्राफ को भी जांच के दौरान अनुमति नहीं दी जाएगी।"

हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि डब्ल्यूबीपीआरबी 2019 के दिशानिर्देश ऐसी कोई शर्त नहीं है और यह एक नया नियम है जो संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

केस शीर्षक: हापीजा खातून और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य


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