''एक महिला जो पक्षकार नहीं है, उसके खिलाफ निराधार आरोप लगाए गए'' : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित सेक्स रैकेट के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

Update: 2020-12-05 05:30 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक रिट याचिकाकर्ता को इसलिए फटकार लगाई क्योंकि उसने पुलिस और न्यायिक कार्यवाही, दोनों के समक्ष कथित तौर पर एक सेक्स रैकेट के मामले में शामिल एक महिला की पहचान को उजागर कर दिया था।

मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि,

''जिस महिला के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं, वह इस कार्यवाही में एक पक्षकार भी नहीं है। फिर भी हमारा मानना है कि शालीनता का न्यूनतम मानक मांग करता है कि एक महिला की पहचान का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है, खासतौर से जिस तरीके से इस मामले में किया गया है।''

याचिकाकर्ता शिव राम ने एक सेक्स रैकेट के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए कानपुर नगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देश देने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस मामले में आरोप लगाया गया था कि यह रैकेट कई महिलाएं चला रही हैं।

याचिकाकर्ता ने कहा था कि उसके पास इस मुद्दे से संबंधित कई वीडियो कैसेट और ऑडियो रिकॉर्डिंग भी हैं।

बेंच ने कहा कि प्रार्थना खंड में 'कई महिलाओं' शब्द का इस्तेमाल याचिकाकर्ता द्वारा किया गया था, लेकिन दलीलों के दौरान एक महिला के खिलाफ ''अंधाधुंध और निराधार आरोप'' लगाए गए थे।

इतना ही नहीं, न्यायालय ने कहा कि उक्त महिला का संदर्भ क्षेत्र के पुलिस अधिकारियों को सौंपे गए प्रतिनिधित्व में भी दिया गया था।

बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए इस तरह की दलीलों की निंदा की और एक महिला के खिलाफ ''लापरवाह तरीके'' से आरोप लगाने के लिए याचिकाकर्ता को फटकार लगाई।

पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर नोटिस जारी किया था,जिसमें आरोपों की ''सत्यता'' की जांच पूरी होने तक, ''यौन अपराधों'' के आरोपियों की पहचान, प्रतिष्ठा और अखंडता की सुरक्षा करने की मांग की गई थी।

शीर्ष कोर्ट के समक्ष दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि,

''झूठे आरोप कभी-कभी एक निर्दोष व्यक्ति के पूरे जीवन को नष्ट कर देते हैं और ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं, जहां जिस व्यक्ति को गलत तरीके से फंसाया गया है, उसने आत्महत्या भी कर ली है। इससे न केवल किसी व्यक्ति का जीवन नष्ट होता है, बल्कि उसके परिवार के सदस्यों के लिए भी यह एक सामाजिक कलंक बन जाता है। समय की मांग है कि कुछ निवारक उपाय किए जाने चाहिए ताकि न्याय के हित में ऐसी स्थितियों से बचा जा सके।''

केस का शीर्षक- शिव राम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य।

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