"बलात्कार से पीड़िता का पूरा व्यक्तित्व नष्ट हो जाता है": दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी बहू से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि बलात्कार से पीड़िता मानसिक रूप से डरा जाती है और उससे उसका पूरा व्यक्तित्व नष्ट हो जाता है, अपनी ही बहू से बलात्कार के आरोपी 65 वर्षीय व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने आरोपी को जमानत से इनकार करते हुए कहा:
"बलात्कार केवल एक शारीरिक हमला नहीं है; यह अक्सर पीड़िता के पूरे व्यक्तित्व के लिए विनाशकारी घटना होती है। बलात्कार के कार्य से पीड़िता मानसिक रूप से डर जाती है और यह आघात वर्षों तक बना रह सकता है।"
अदालत ने कहा कि उस व्यक्ति पर एक बहुत ही जघन्य अपराध का आरोप लगाया गया यानी अपनी ही बहू के साथ बलात्कार करने का आरोप किया गया। तथ्य यह है कि एफआईआर दो महीने के बाद दर्ज की गई। इसका मतलब यह नहीं है कि अभियोक्ता ने झूठा मामला दर्ज कराया।
कोर्ट ने कहा,
"एफआईआर में कहा गया कि पीड़िता डरी हुई थी और अपने माता-पिता को घटना के बारे में बताने की अनिच्छुक थी। लेकिन जब उसे आरोपी द्वारा बार-बार परेशान किया गया और उसका बलात्कार किया गया तो उसने हिम्मत जुटाई और अपने माता-पिता को घटना के बारे में बताया।"
अभियोक्ता के बयान के आधार पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323, 376, 506, 313, 377, 354 और 34 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। इसमें कहा गया कि उसका पति उसे मारता-पीटता था और कई बार अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता था।
आगे आरोप लगाया गया कि एक दिन जब वह याचिकाकर्ता के कमरे में चाय देने गई तो उसने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी ओर खींच लिया। इसके बाद उसने उसके साथ बलात्कार किया। उसने आरोप लगाया कि उसने दो-तीन मौकों पर उसके साथ बलात्कार किया।
पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया गया कि अगर उसने घटना के बारे में किसी को बताया तो आरोपी ने उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। इसके परिणामस्वरूप वह अपने माता-पिता को बताने की हिम्मत नहीं जुटा सकी।
मामले के तथ्यों को देखते हुए कोर्ट ने कहा:
"बलात्कार एक अत्यंत जघन्य अपराध है, जिसमें न्यूनतम सात साल की सजा का प्रावधान है। इसके साथ ही आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। याचिकाकर्ता पर अपनी ही बहू के साथ बलात्कार करने का एक बहुत ही जघन्य अपराध का आरोप है। इस तथ्य को देखते हुए कि याचिकाकर्ता अभियोक्ता के ससुर है अभियोक्ता को धमकी देने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।"
ऐसे में कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज कर दी।
हालांकि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आरोपी 01.08.2020 से हिरासत में है, अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह आरोप की दलीलें सुनें और जितनी जल्दी हो सके छह महीने के भीतर अभियोजन पक्ष की जांच करें।
केस शीर्षक: अहशन अली बनाम राज्य
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