राजस्थान हाईकोर्ट ने एक सेक्स-वर्कर को बलात्कार पीड़िता की तरह ही गर्भपात की अनुमति दी

Update: 2020-04-14 02:45 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट 

एक सेक्स-वर्कर की मानसिक पीड़ा को बलात्कार की शिकार महिला के बराबर मानते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने उसे गर्भपात की इजाज़त दे दी।

यह आदेश देने वाली एकल न्यायाधीश की बेंच ने कहा,

"अगर गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म लेने की इजाज़त दी जाए तो इससे उसकी मानसिक पीड़ा कम नहीं होगी। उसे (बच्चे को) हमेशा ही उसके अतीत की याद दिलाई जाएगी और चूंकी इस तरह के बच्चे के पिता का कोई पता नहीं होगा, उसके दिल और दिमाग़ पर हमेशा ही यह चोट करता रहेगा।"

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता जिसे ज़बरदस्ती वेश्यावृत्ति में धकेला गया, किसी अज्ञात व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने के कारण गर्भवती हुई है। इन तथ्यों को देखते हुए अदालत ने कहा कि यह गर्भ बलात्कार के कारण ठहरने वाले गर्भ की ही तरह है और मेडिकल गर्भपात अधिनयम 1971 की धारा 3 की उपधारा (2) के तहत आता है। इसकी व्याख्या का विस्तार करते हुए जज ने कहा याचिकाकर्ता की मानसिक पीड़ा बलात्कार की शिकार किसी महिला की तरह ही है।

फ़ैसले में कहा गया कि गर्भ 17 सप्ताह 3 दिन का है और याचिकाकर्ता ने इसे हटाने की अटल इच्छा जतायी है। इस तरह, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, इसमें कोई क़ानूनी अड़चन नहीं है।

अदालत ने कहा कि गर्भ को 3 दिनों के भीतर समाप्त कर दिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि यह एक बेसहारा लड़की है और उसे उसकी इच्छा के ख़िलाफ़ इसमें धकेला गया है।

अदालत ने कहा,

"तथ्यों को देखते हुए गर्भपात ज़रूरी है ताकि याचिकाकर्ता जीवन में स्थायित्व पा सके और यह बच्चा उसके शांतिपूर्ण जीवन में ख़लल न हो…।"

अदालत ने कहा,

"अगर गर्भ में पल रहे बच्चे को दुनिया में आने का मौक़ा दिया जाए तो उस (बच्चे) की जिंदगी में जो मुश्किलें पैदा होंगी वह इस लड़की को गर्भपात के कारण एक बार होने वाली तकलीफ़ की तुलना में कहीं अधिक होगा। इस तरह का बच्चा लोगों की दया (जैसे उस चकला-घर के मालिक की दया पर जिसने इस लड़की को ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से बंद कर रखा था और उसे वेश्यावृत्ति के लिए बाध्य किया) पर ज़िंदा रहेगा।"

अदालत ने स्पष्ट किया कि इस याचिका को स्वीकार किया जाता है और इस मामले को नज़ीर नहीं बनाया जाए और क़ानून नहीं माना जाए कि वेश्यावृत्ति में शामिल हर महिला को गर्भ से छुटकारा पाने का अधिकार है।

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