9.5 साल तक मुकदमे की पीड़ा" का सामना करना पड़ा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लापरवाही और तेज वाहन चलाने के मामले में दोषी की सजा कम की

Update: 2022-08-31 05:57 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने तेज और लापरवाही से वाहन चलाने के मामले (Rash and Negligent Driving Case) में दोषी ठहराए गए याचिकाकर्ता द्वारा सामना की गई "मुकदमे की पीड़ा" को ध्यान में रखते हुएएक साल की सजा को पहले से ही हिरासत की अवधि यानी 6 महीने तक कम कर दिया।

जस्टिस हरनरेश सिंह गिल की खंडपीठ ने सौरभ बख्शी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए दृष्टिकोण पर भरोसा किया और कहा कि यह न्यायसंगत होगा अगर उसकी मूल सजा को उसके द्वारा पहले से ही भुगतने की अवधि तक कम कर दिया जाता है।

कोर्ट ने कहा कि सौरभ बख्शी के मामले (सुप्रा) में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता द्वारा 9½ वर्ष की अवधि के लिए मुकदमे की पीड़ा को ध्यान में रखते हुए मेरी राय में न्याय का अंत उपयुक्त होगा यदि याचिकाकर्ता को दी गई मूल सजा को उसके द्वारा पहले से भुगती गई अवधि तक घटा दिया जाता है।

अदालत उस मामले से निपट रही थी जहां याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 279 और 304-ए के तहत मुकदमा चलाया गया और उसे दोषी ठहराया गया। उसे आईपीसी की धारा 279 के तहत अपराध के लिए तीन महीने के कठोर कारावास और आईपीसी की धारा 304 ए के तहत अपराध के लिए एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

उपरोक्त निर्णय से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने अपर सत्र न्यायाधीश, होशियारपुर के समक्ष अपील दायर की, जिसको खारिज कर दिया गया। इसलिए उसने वर्तमान पुनर्विचार याचिका दायर की।

रिकॉर्ड की स्पष्ट जांच के साथ-साथ पक्षकारों के प्रतिद्वंदी प्रस्तुतीकरण पर विचार करने के बाद अदालत ने दोनों निचली अदालतों द्वारा दिए गए दोषसिद्धि और सजा के फैसले से सहमत होने के बाद आईपीसी की धारा 279 और 304-ए के तहत याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखा।

पक्षकारों के वकील को सुनने के बाद और रिकॉर्ड की स्पष्ट जांच के बाद इस न्यायालय ने पाया कि दोनों निचली अदालतों ने याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 279 और 304-ए के तहत सही तरीके से दोषी ठहराया और सजा सुनाई। निचली अदालतों द्वारा दर्ज समवर्ती निष्कर्षों में कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं है। इस प्रकार, मेरी राय में रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य के मद्देनजर, निचली अदालतों के निष्कर्षों में किसी भी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है, जहां तक ​​आईपीसी की धारा 279 और 304-ए के तहत दोषसिद्धि का सवाल है। अतः उक्त धाराओं के तहत याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखा जाता है।

हालांकि, अदालत ने कहा कि एक साल की मूल सजा में से याचिकाकर्ता पहले ही 25 दिनों की अर्जित छूट के साथ 06 महीने की सजा भुगत चुका है।

हालांकि, तथ्य यह है कि वर्तमान एफआईआर 29.03.2013 को दर्ज की गई और एक वर्ष की मूल सजा में से याचिकाकर्ता ने 19.08.2022 को छह महीने और 12 दिनों की वास्तविक सजा काट ली। उसने 25 दिनों की छूट भी अर्जित की।

पंजाब राज्य बनाम सौरभ बख्शी, 2015(2) आरसीआर (आपराधिक) 495 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करने के बाद कोर्ट ने आईपीसी की धारा 279 और 304-ए के तहत याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन मूल सजा को घटाकर 50,000/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। यह राशि मृतक के कानूनी वारिसों को मुआवजा के रूप में दी जाएगी।

उपर्युक्त शर्तों के तहत वर्तमान पुनर्विचार याचिका का निपटारा किया गया।

केस टाइटल: राम बनाम पंजाब राज्य

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