अदालत को गुमराह करने की कोशिश करने के कारण भी अग्रिम जमानत खारिज की जा सकती है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में अभियुक्त को अग्रिम जमानत देने से इनकार करने वाले निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने उक्त आदेश को केवल इस आधार पर बरकरार रखा कि उसने अपनी पिछली याचिका को खारिज करने के संबंध में तथ्यों को छुपाकर अदालत को गुमराह करने की कोशिश की थी।
जस्टिस पंकज जैन की पीठ ने कहा,
"अच्छी तरह से कानून में तय है कि जहां "एक्स डेबिटो जस्टिटिया" (न्याय के लिए आवश्यक प्रक्रिया) है, अदालत आवेदक के पक्ष में अपने विवेक का प्रयोग करने से इनकार कर देगी, जहां आवेदन वास्तविक रूप से वांछित पाया जाता है ... इस न्यायालय की सुविचारित राय में याचिकाकर्ता ने साफ नीयत से अग्रिम जमानत के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया है, इसलिए याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन को खारिज करने का निचली अदालत का फैसला न्यायोचित था।"
पीठ ऐसे मामले से निपट रही थी जहां याचिकाकर्ता हरियाणा गौवंश संरक्षण और गौसंवर्धन अधिनियम, 2015, क्रूरता अधिनियम, 1959, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120-बी और मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 181/192 के तहत दर्ज एफआईआर में अपनी गिरफ्तारी को लेकर अग्रिम जमानत की मांग कर रहा था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने उनके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता यह खुलासा करने में विफल रहा कि उनकी पहली अग्रिम जमानत याचिका को वापस ले लिया गया है।
याचिकाकर्ता ने तब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कहा गया कि केवल सत्र न्यायालय द्वारा दर्ज किया गया कारण जमानत खारिज करने का कारण नहीं हो सकता।
अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता ने गिरफ्तारी से पहले जमानत की मांग करने वाला पहला आवेदन दाखिल करने और सत्र न्यायालय से इसे खारिज करने के तथ्य को छुपाया। ऐसी स्थिति में कानून अच्छी तरह से तय है कि जहां एक प्रक्रिया "एक्स डेबिटो जस्टिटिया" (न्याय के लिए आवश्यक प्रक्रिया) है, अदालत आवेदक के पक्ष में अपने विवेक का प्रयोग करने से इनकार कर देगी।
कोर्ट ने हरि नारायण बनाम बद्री दास, एआईआर 1963 एससी 1558 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा रखा, जिसमें अदालत ने उपर्युक्त सिद्धांत को मंजूरी दे दी, जिसे बाद में वेलकम होटल बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1983) 4 एससीसी 575 के मामले में पालन किया गया, जिसमें यह माना गया कि अदालत को गुमराह करने वाला पक्ष न्यायालय से किसी भी राहत का हकदार नहीं है।
इन टिप्पणियों के आलोक में अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता ने निष्पक्ष रूप से अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया है। कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन को खारिज करने में निचली अदालत का न्यायोचित है।
तदनुसार, अदालत ने यह कहते हुए मामले को खारिज कर दिया कि इसमें कोई योग्यता नहीं है।
केस टाइटल: दीन मो. बनाम हरियाणा राज्य
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