'अंबेडकर के लेखनों का प्रकाशन बहुत जरूरी', बॉम्बे हाईकोर्ट ने अंबेडकर साहित्य के प्रकाशन की रुकी हुई राज्य सरकार की परियोजना का स्वत: संज्ञान लिया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने डॉ बाबासाहेब अंबेडकर के लेखन और भाषणों को प्रकाशित करने की महाराष्ट्र सरकार की रुकी हुई परियोजना के बारे में समाचार पत्र लोकसत्ता में छपी एक रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लिया। अदालत ने कहा कि यह देखते हुए कि अंबेडकर के कार्यों का प्रकाशन मौजूदा और भविष्य की पीढ़ी के लिए आवश्यक और वांछनीय है, रिपोर्ट से "मामलों की स्थिति" का पता चलता है।
जस्टिस प्रसन्ना बी वरले और जस्टिस श्रीराम एम मोदक ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह स्वत: संज्ञान लेकर एक जनहित याचिका दायर करे और इसे चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच के समक्ष रखे। उन्होंने कहा, "यह (अंबेडकर का कार्य) कानूनी बिरादरी के सदस्यों के साथ-साथ सामान्य सदस्यों के लिए भी उपयोगी है।"
24 नवंबर की समाचार रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार ने अंबेडकर के साहित्य को "डॉ बाबासाहेब अंबेडकर के लेखन और भाषण" शीर्षक के तहत संस्करणों में प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया था।
नौ लाख प्रतियां छापने के निर्देश जारी किए गए थे और राज्य ने 5.45 करोड़ रुपये के प्रिटिंग पेपर खरीदे थे। लेकिन पिछले चार वर्षों में केवल 33,000 प्रतियां ही छपी और परियोजना के लिए खरीदा गया कागज गोदामों में पड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 33,000 प्रतियों में से केवल 3,675 को ही वितरण के लिए उपलब्ध कराया गया।
हाईकोर्ट ने कहा,
"इसमें कोई विवाद नहीं है कि इन वॉल्यूम की मांग न केवल शोधकर्ताओं के बीच है बल्कि आम जनता में इसकी मांग है।"
समाचार रिपोर्ट के आधार पर, अदालत ने कहा कि सरकारी प्रेस आधुनिक मशीनरी से लैस नहीं है और पुरानी मशीनरी और अपर्याप्त मानव संसाधनों से जूझ रहे हैं। इसके अलावा कर्मचारियों की भारी कमी है।
पीठ ने कहा,
"समाचार सामग्री एक खेदजनक स्थिति को दर्शाती है ... प्रकाशन वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए बिल्कुल आवश्यक और वांछनीय है। यह कानूनी बिरादरी के सदस्यों के साथ-साथ सामान्य सदस्यों के लिए भी उपयोगी है। इसलिए, हमें लगता है कि इस अदालत को परियोजना को रोकने के मुद्दे पर गौर करने की जरूरत है... समाचार में उठाई गई शिकायत की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, हम इसे जनहित याचिका के मामले के रूप में देख रहे हैं।"