"परिस्थितियों की श्रृंखला को पूरा करने के लिए सबूत पेश करने में अभियोजन विफल रहा": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो हत्या आरोपियों को बरी किया

Update: 2022-06-02 14:00 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या के दो आरोपियों को बरी कर दिया।

अदालत ने माना कि मौजूदा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था और अभियोजन पक्ष संदेह से परे घटनाओं और परिस्थितियों की पूरी श्रृंखला को साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा है, जो दो अपीलकर्ताओं की भागीदारी और अपराध की ओर इशारा करता है।

जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने भी जोर देकर कहा कि संदेह को हालांकि सबूत की जगह लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और इसलिए, अदालत को सतर्क रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि अनुमान और संदेह कानूनी सबूत की जगह ना लें। 

मामला

मूलतः, न्यायालय सुरेन्द्र सिंह नाम के व्यक्ति की हत्या के मामले की सुनवाई कर रहा था। 13 अक्टूबर, 1994 को रोशन लाल (पीडब्ल्यू 1/शिकायतकर्ता), जो मृतक का भाई है, द्वारा एक लिखित रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी अपीलकर्ताओं ने उसके भाई की हत्या कर दी थी।

शिकायत में कहा गया था कि सुरेश (अपीलकर्ता संख्या 1) ने मृतक के खिलाफ शिकायत की थी क्योंकि उसने सुरेश के बड़े भाई सुमेर के खिलाफ गवाही दी थी, जिसके कारण उसे एक हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था।

यह आरोप लगाया गया कि सुरेश (अपीलार्थी संख्या 1) ने मृतक के साथ दोस्ती की और 12 अक्टूबर 1994 को वह और मुकेश (अपीलकर्ता संख्या 2) मृतक को अपने साथ ले गए। आगे यह भी आरोप लगाया गया कि पीडब्ल्यू 2 (राजू) ने उन्हें मृतक को अपने साथ ले जाते देखा था।

उस दिन शाम करीब 6 बजे तिलक राज (पीडब्ल्यू 6) ने आरोपी/अपीलकर्ता को मृतक के साथ होटल में देखा। अगले दिन यानी 13 अक्टूबर 1994 को तड़के करीब 4.00 बजे यद्रम (पीडब्ल्यू 5) ने देखा कि आरोपी एक बोरी में एक लाश रख रहे हैं] जिसके पैर बाहर निकले हैं। जब उसने उनसे पूछा कि बोरी में क्या है, तो सुरेश ने जवाब दिया कि उसने दुश्मनी का बदला लिया है।

उसी दिन, जब पीडब्ल्यू 1 और उसके परिवार के सदस्य मृतक की तलाश कर रहे थे, तब प्रेमचंद्र (परीक्षा नहीं की गई), यादराम (पी.डब्ल्यू.5) और राजू (पी.डब्ल्यू.2) (दोनों पक्षद्रोही घोष‌ित) ने उपरोक्त तथ्यों का खुलासा किया।

इसके बाद उनके भाई का शव भी एक धर्म कांटा के पास पड़ा मिला। अतः उनके द्वारा आरोपित/अपीलार्थी के विरूद्ध लिखित शिकायत दर्ज कराई गई।

ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष

अपीलकर्ताओं को केवल शिकायतकर्त पीडब्ल्यू 1-रोशन लाल और पीडब्ल्यू 5- यादराम की गवाही के साथ-साथ आरोपी-अपीलकर्ता सुरेश के घर से आरोपी/अपीलकर्ता महेश के कहने पर की गई बरामदगी के आधार पर दोषी ठहराया गया था।

न्यायालय की टिप्पणियां

शुरुआत में, कोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि निचली अदालत द्वारा भरोसा किए गए पीडब्ल्यू की गवाही में भौतिक विरोधाभास थे, जिसे कोर्ट को हल्के ढंग से खारिज नहीं कर सकती है।

कोर्ट ने कहा कि हालांकि एफआईआर में पीडब्ल्यू 2-राजू, पीडब्ल्यू 6-तिलक राज और प्रेम चंद्र द्वारा बताई गई कहानी के अनुसार घटना दर्ज की गई थी, हालांकि किसी ने वास्तव में मृतक को हत्या से पहले आरोपी-अपीलकर्ताओं के साथ जाते हुए नहीं देखा था।

अदालत ने आगे इस तथ्य को ध्यान में रखा कि पीडब्ल्यू 2-राजू और पीडब्ल्यू 6-तिलक राज को पक्षद्रोही घोषित किया गया था और इन गवाहों ने अपनी गवाही में पूरी तरह से इनकार किया था कि उन्होंने मृतक की हत्या से पहले आरोपी अपीलकर्ताओं के साथ मृतक को देखा था, इसलिए, अदालत ने कहा कि अभियुक्त/अपीलार्थी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने का आधार संदेहास्पद प्रतीत होता है और अभियोजन की कहानी पर संदेह उत्पन्न करता है।

जहां तक ​​पीडब्ल्यू 5-यादराम के साक्ष्य का संबंध है, अदालत ने कहा कि उसने अपनी जिरह में यह बयान दिया था कि उसने मृतक के शव की पहचान तब की थी जब आरोपी अपीलकर्ता इसे एक बोरी में ले जा रहे थे, लेकिन उसने निरीक्षक को ऐसा नहीं बताया था।

इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने कहा कि ​​पीडब्ल्यू 5 की यह गवाही सामान्य रूप से एक गंभीर संदेह पैदा करती है।

मामले के उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों में, न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त-अपीलकर्ताओं के खिलाफ परिस्थितिजन्य साक्ष्य स्थापित करने में अभियोजन पक्ष के मामले में कई खामियां हैं।

इसके अलावा, कोर्ट ने पाया कि रिकॉर्ड पर कोई ठोस सबूत नहीं था जो उचित संदेह से परे आरोपी-अपीलकर्ताओं के अपराध को साबित करता हो। इस प्रकार, दोषसिद्धि का आक्षेपित निर्णय टिकाऊ नहीं पाया गया और रद्द कर दिया गया और अपीलकर्ताओं को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया गया।

केस टाइटल- सुरेश उर्फ ​​चावेनी बनाम यूपी स्टेट और संबंधित अपील

केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 273

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