निर्णय देनदार के पते के बारे में जानकारी जुटाने के लिए कोर्ट की प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि न्यायालय की प्रक्रिया का उपयोग निर्णय देनदार (Judgment debtor) के संबंध में उसके ठिकाने या अन्य जानकारी एकत्र करने के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि यह डिक्री धारक का स्वयं का प्राथमिक दायित्व है कि वह जहां से भी संभव हो ऐसी जानकारी प्राप्त करे।
जस्टिस तुषार राव गेदेला की पीठ ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उस याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें डिक्री धारक, एसपीपी फूड प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया, जो निर्णय देनदार, इंडिया ओवरसीज कंपनी के खिलाफ शुरू की गई निष्पादन कार्यवाही में था।
डिक्री धारक ने अपने आवेदन में जजमेंट देनदार के बैंक को केवाईसी और अन्य प्रासंगिक दस्तावेज पेश करने के लिए निर्देश मांगा, जिससे जजमेंट कर्जदार के ठिकाने के संबंध में पता या कोई अतिरिक्त जानकारी का पता लगाने में सक्षम हो सके।
डिक्री धारक का यह मामला था कि वह निर्णय देनदार के ठिकाने का का पता लगाने में असमर्थ रहा है और यह कि वह पिछले सात वर्षों से उस डिक्री को निष्पादित करने का प्रयास कर रहा है, जिसे ट्रायल कोर्ट ने 2015 में पारित किया था।
इसने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा आवेदन खारिज करना सामान्य कानून के विपरीत है कि डिक्री को निष्पादित किया जाना चाहिए और इसके तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।
हालांकि, अदालत ने कहा कि आदेश पारित करने में ट्रायल कोर्ट द्वारा प्रदर्शित कोई विकृति, अवैधता या न्यायिक अनुपयुक्तता नहीं है।
"न्यायालय की प्रक्रिया का उपयोग प्रतिवादी/निर्णय देनदार के संबंध में ठिकाने या अन्य जानकारी के रूप में जानकारी एकत्र करने के उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता। यह याचिकाकर्ता/डिक्री धारक का स्वयं का प्राथमिक दायित्व है कि वह जहां भी संभव हो, इस तरह की जानकारी प्राप्त करे।”
अदालत ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि इसके द्वारा की गई टिप्पणियों से डिक्री धारक डिक्री को निष्पादित करने के लिए कोई अन्य उचित कदम उठाने से बाध्य नहीं होगा।
केस टाइटल: एसपीपी फूड प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंडिया ओवरसीज कंपनी
याचिकाकर्ता के वकील: भरत अरोड़ा।
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