तीन वरिष्ठ अफ़सरों ने मांगी माफ़ी, मुंबई हाईकोर्ट ने कहा ये लोग ग़लत बयान देने के दोषी जो झूठी गवाही के बराबर
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के अलग-अलग विभाग के तीन वरिष्ठ अधिकारियों की काफ़ी खिंचाई की। इन लोगों ने कोर्ट के 25 नवंबर 2019 के आदेश के जवाब में झूठा बयान पर आधारित हलफ़नामा दायर किया था।
न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी ने मनज टोलवे प्राइवेट लिमिटेड की अवमानना याचिका पर मनोज सौनिक (प्रतिवादी नंबर 3), अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक निर्माण विभाग, सीपी जोशी (प्रतिवादी नंबर 4), सचिव लोक निर्माण विभाग और अजित सगने (प्रतिवादी नम्बर 5) जो कि लोक निर्माण विभाग के सचिव हैं, को हलफ़नामा दायर कर माफ़ी मांगने को कहा था। लेकिन अदालत ने कहा कि इस तरह की माफ़ी को स्वीकार किया जाएगा या नहीं, इस पर ग़ौर करना होगा।
अदालत ने कहा कि अजित संगने ने हलफ़नामे में ख़ुद को 'महाराष्ट्र सरकार'बताया था। न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अजित संगने ने ख़ुद अपना ही हलफ़नामा पढ़ने की ज़हमत नहीं उठाई जब उन्होंने ख़ुद को 'महाराष्ट्र सरकार'बताया, अनादर लापरवाही के इस स्तर तक नहीं जा सकता।"
अदालत ने कहा, "…यह बात कि उनको किसने कहा कि वे इस तरह का बयान दें जो अदालत के किसी रिकॉर्ड पर आधारित नहीं है, ऐसा मामला है जिसका जवाब उन लोगों को देना है।"
हालांकि, अदालत ने नोट किया कि प्रतिवादी नम्बर 2 धनंजय देशपांडे ने अदालत के इसी 25 नवंबर के आदेश पर जो हलफ़नामा दायर किया है उससे पता चलता है कि वास्तव में क्या हुआ।
देशपांडे ने लिखा है कि पीडब्ल्यूडी, महाराष्ट्र सरकार और याचिकाकर्ता के बीच 25 नवंबर को सुलह हो गई। सचिव ने देशपांडे को फ़ाइल पर हस्ताक्षर करने और हाईकोर्ट में सहमति की शर्तों के बारे में आवेदन दायर करे।
राजेंद्र रहाने जो प्रतिवादी नंबर 2 है, ने अपने हलफ़नामे में कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में पहले ही आदेश दे दिया है।
दिलचस्प बात यह है कि 25 नवंबर 2019 को किसी ने अदालत को यह नहीं बताया कि राज्यपाल ने इस बारे में कोई आदेश पास कर दिया है।
वक़ील नवरोज़ सीरवाई और केवीक सीतलवाड एवं एजीपी ज्योति चव्हाण ने कहा कि उनके मुवक्किल हलफ़नामा दायर कर अपने बयानों में आपत्तिजनक पैरग्रैफ़ को वापस ले लेंगे और अदालत के रेकर्ड को सही कर देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि उनके मुवक्किल इस तरह का बयान देने के लिए बिना शर्त माफ़ी मांगेंगे।
अदालत ने कहा कि न्याय के हित में उसने इन लोगों को अपने बयान के बारे में हलफ़नामा दायर करने को कहा और यह भी कि यह स्वीकार्य होगा कि नहीं इस बारे में ग़ौर किया जाएगा।
अगर इन बयानों पर ध्यान नहीं जाता तो यह न केवल झूठी रेकर्ड की अनुमति देने और उसे मेंटेन करने के बराबर होता बल्कि इस स्थिति में इसका यह अर्थ होता कि इन प्रतिवादियों की बेईमानी को ज़्यादा महत्व दिया गया है।
अदालत ने कहा कि सिर्फ़ धनंजय देशपांडे ने ही इस बारे में अदालत को सही बात बताई अदालत ने नहीं, महाराष्ट्र सरकार ने 25 नवंबर 2019 को सुलह के बारे में निर्देश जारी किया था ।
यह आश्चर्य की बात है कि किसी भी अन्य प्रतिवादी ने, जो कि महाराष्ट्र सरकारकार के ज़िम्मेदार अधिकारी हैं, यह बताने की ज़हमत नहीं उठाई कि महाराष्ट्र सरकार ने 25 नवंबर 2019 को इस तरह का आदेश जारी किया था और उन्होंने अदालत में इस तरह के बयान देकर इसकी ज़िम्मेदारी अदालत पर डाल दी जबकि अदालत ने तो पक्षों के आग्रह पर मामले को स्थगित कर दिया था"।
अदालत ने सभी तीनों प्रतिवादियों से अपना हलफ़नामा मंगलवार को दायर करने को कहा और मामले को 9 अगस्त तक के लिए मुल्तवी कर दिया।