आयकर रिटर्न में ऋण लेनदेन का खुलासा नहीं होने पर एनआई अधिनियम की धारा 139 के तहत परिकल्पना टिकने योग्य नहीं : तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स (एनआई) एक्ट की धारा 139 के तहत परिकल्पना कायम रखने योग्य नहीं होती है, यदि आयकर रिटर्न में ऋण लेनदेन को नहीं दिखाया जाता है।
न्यायमूर्ति जी. श्री देवी ने टिप्पणी की कि शिकायतकर्ता द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए सबूत आरोपी के खिलाफ मामले को साबित करने के लिए उचित संदेह से परे पर्याप्त नहीं थे, जिससे आरोपी को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया।
तथ्य:
अपीलकर्ता ने एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत आरोपी के खिलाफ निजी शिकायत दर्ज कराई थी।
इसके बाद शिकायतकर्ता और आरोपी (महिला) ने एक समझौता किया, जिसमें आरोपी ने शिकायतकर्ता को पूर्ण और अंतिम निपटान के लिए 70 लाख रुपये का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की।
आरोपी महिला ने शिकायतकर्ता को इसमें से अग्रिम के रूप में 50,000/- रुपये का भुगतान किया और 1 नवंबर 2016 को या उससे पहले शेष राशि का भुगतान करने के लिए सहमत हो गई।
तदनुसार, आरोपी ने वादे के अनुसार शिकायतकर्ता को कानूनी देनदारी के निर्वहन के लिए स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद पर आहरित किए गए दो चेक जारी किए। हालांकि, जब उक्त चेक शिकायतकर्ता द्वारा अपने बैंक में प्रस्तुत किए गए, तो चेक बाउंस हो गया और रिटर्न मेमो में यह अंकित किया गया था, "चेक जारी करने वाले व्यक्ति द्वारा भुगतान रोक दिया गया।"
नतीजतन, आरोपी को 15 नवंबर 2016 को नोटिस जारी किया गया था।
शिकायतकर्ता ने बकाया राशि का भुगतान करने या नोटिस का जवाब देने के लिए आरोपी की निष्क्रियता से व्यथित होकर विशेष मजिस्ट्रेट का रुख किया।
शिकायतकर्ता ने बकाया राशि का भुगतान करने या नोटिस का जवाब देने के लिए आरोपी की निष्क्रियता से व्यथित होकर विशेष मजिस्ट्रेट का रुख किया।
तथापि, ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि आरोपी ने कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण के हिस्से के बजाय केवल उक्त चेक को सुरक्षा के रूप में पेश किया था।
आरोपी को बरी किये जाने के मद्देनजर शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 378(4) के तहत स्पेशल मजिस्ट्रेट के फैसले पर सवाल उठाते हुए आपराधिक अपील दायर की।
उठाई गई आपत्तियां:
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि यह साबित हो गया है कि चेक पर हस्ताक्षर किए गए हैं और आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता को जारी किए गए हैं, ट्रायल कोर्ट को इस आशय का अनुमान लगाना चाहिए था कि उक्त चेक कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण की अदायगी के लिए जारी किए गए थे।
आगे यह तर्क दिया गया कि अभियुक्त को उक्त अनुमान का खंडन करना था और यह देखा जाना था कि क्या अभियुक्त उक्त बोझ का निर्वहन करने में सफल हो सकता है।
अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि आरोपी की ओर से कोई स्पष्ट स्पष्टीकरण नहीं था कि उसने चेक पर हस्ताक्षर क्यों किए और उन्हें शिकायतकर्ता को दिया। इस आधार पर, यह दावा किया गया कि अभियुक्त बिना किसी सबूत के परिकल्पना का खंडन करने में विफल रहा।
इसमें 'रंगप्पा बनाम श्री मोहन' मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा जताया गया, जिसने कहा था कि धारा 139 के तहत परिकल्पना कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण के अस्तित्व की ओर है, जिसका अर्थ है कि आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता के बकाया ऋणों की देनदारी के लिए चेक जारी किए गए थे और उक्त ऋण भी कानूनी रूप से प्रवर्तनीय था।
इन तर्कों पर आपत्ति जताते हुए, प्रतिवादी ने दलील दी कि निचली अदालत ने आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया था कि उसने इस अनुमान का उचित तरीके से खंडन किया था और अपने बचाव में यह स्थापित कर दिया था कि आक्षेपित चेक केवल सिक्यूरिटी के तौर पर जारी किए गए थे, जो निपटान समझौते में निर्धारित नियम और शर्तों के आधार पर स्पष्ट है।
प्रतिवादी ने यह भी तर्क दिया कि आरोपी ने 1 दिसंबर 2016 को अपने जवाबी नोटिस के माध्यम से परिकल्पना का खंडन किया था, जिसमें यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित था कि उसने शिकायतकर्ता को उक्त चेक पेश करने के लिए न तो निर्देश दिया था और न ही आश्वासन दिया था।
इसके अतिरिक्त, यह इंगित किया गया था कि यह दिखाने के लिए कोई दस्तावेज दायर नहीं किया गया था कि अपीलकर्ता ने निपटान समझौते में सहमति के अनुसार पेट्रोल पंप के लिए साइट की पहचान करने और उसे खरीदने के लिए 3,00,00,000/- रुपये का खर्च किया था।
इसी तरह, यह प्रस्तुत किया गया था कि एक आयकर दाता होने के बावजूद, अपीलकर्ता यह दिखाने के लिए कोई आयकर रिटर्न दाखिल करने में विफल रहा था कि उसने वास्तव में उक्त राशि खर्च की थी।
न्यायालय के प्रमुख निष्कर्ष
न्यायालय के समक्ष प्राथमिक प्रश्न यह था कि क्या उसकी आयकर विवरणी में राशि का न दिखाना इस धारणा का खंडन करने के लिए पर्याप्त है कि चेक किसी ऋण या दायित्व के निर्वहन में जारी नहीं किया गया था।
जैसा कि निचली अदालत ने बताया था कि यह अपीलकर्ता की वित्तीय स्थिति के बारे में संदेह पैदा करता है और यदि उसने वास्तव में इतनी राशि खर्च की है, तो उसके पास अपने बैंक खाते से राशि निकालने और उसे खर्च करने का रिकॉर्ड होना चाहिए।
रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और पक्षों द्वारा दी गई दलीलों पर गौर करने पर, कोर्ट ने 'संजय मिश्रा बनाम सुश्री कनिष्क कपूर और अन्य [CR APP. No. 4694/2008]' मामले को संदर्भित किया, जिसमें इस प्रकार कहा गया था:
"यदि किसी मामले में शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी को दी गई अग्रिम राशि एक बड़ी राशि है और कुछ महीनों के भीतर चुकाने योग्य नहीं है, तो शिकायतकर्ता की आयकर रिटर्न में खाते का खुलासा करने में विफलता अधिनियम की धारा 139 के तहत परिकल्पना का खंडन करने के लिए पर्याप्त हो सकती है।"
पूर्वोक्त फैसले पर विचार करते हुए, बेंच ने टिप्पणी की कि जैसा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा सही बताया गया है, कि आयकर रिटर्न में ऋण लेनदेन के संबंध में किसी भी पुष्टिकारक साक्ष्य के अभाव में, शिकायतकर्ता के बयान को उसके फेस वैल्यू के आधार पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है ।
अदालत ने आगे कहा कि आरोपी ने अपीलकर्ता के पिता के खिलाफ एक निजी शिकायत दर्ज की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसने उसे अपने बेटे के पक्ष में एक अंडरटेकिंग देने की धमकी दी थी, और ऐसा करने में विफल रहने पर उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी।
इसी तरह, बेंच ने पाया कि 27 अक्टूबर 2016 को आरोपी ने शिकायतकर्ता को एक नोटिस जारी कर आरोप लगाया था कि उसने पेट्रोल बंक से संबंधित सभी महत्वपूर्ण फाइलों को हटाकर समझौते के नियमों और शर्तों का उल्लंघन किया है। उक्त नोटिस में शिकायतकर्ता पर अवैध रूप से अधिक राशि की मांग करने का भी आरोप लगाया गया था।
कोर्ट ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में, आरोपी के पास उक्त दो खाली चेकों के भुगतान को रोकने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, जो केवल सुरक्षा उद्देश्य के लिए जारी किए गए थे।
उक्त आधारों पर, यह पाया गया कि नोटिस प्राप्त करने के बाद, शिकायतकर्ता ने चेक भरकर 1 नवंबर 2016 को प्रस्तुत किया था।
इसलिए, अदालत ने अपील को खारिज कर दिया और टिप्पणी की,
"... ट्रायल कोर्ट ने सही माना है कि आरोपी नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 139 के तहत उसके लिए उपलब्ध परिकल्पना का खंडन करने में सफल रहा और निष्कर्ष निकाला कि शिकायतकर्ता द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए सबूत सभी उचित संदेह से परे महिला आरोपी के खिलाफ मामले को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं और तदनुसार उसे बरी कर दिया।"
केस शीर्षक: आर नरेंद्र बनाम यकम्मा केलोथ या कल्याण
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