जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, सुनवाई से अलग हुआ तो भावी पीढ़ियां माफ नहीं करेंगी, सुनवाई से न हटने का फैसला न्याय के हित में

Update: 2019-10-24 09:42 GMT

भूमि अधि‍ग्रहण में उचि‍त मुआवजा एवं पारदर्शि‍ता का अधि‍कार, सुधार तथा पुनर्वास अधिनि‍यम, 2013 की धारा 24(2) की व्याख्या संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा सुनवाई से खुद को अलग न करने पर आदेश जारी किया गया है।

अपने आदेश में जस्टिस मिश्रा बता रहे हैं कि उन्होंने सुनवाई से खुद को अलग नहीं करने का फैसला क्यों किया है। उन्होंने कहा कि सुनवाई से खुद को अलग न करना न्याय के हित में है और यदि वह मामले से हटते हैं तो यह एक अपराध होगा।

न्यायाधीश ने यह भी कहा कि किसी भी मुकदमेबाज द्वारा जज को सुनवाई से हटने के लिए या बेंच चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और यह संबंधित न्यायाधीश को फैसला करना है कि वह केस को सुने या नहीं।

जस्टिस मिश्रा ने कहा,

" किसी को भी जज को सुनवाई से हटने लिए मजबूर करने और बेंच चुनने के लिए नहीं कहा जा सकता। सुनवाई से हटने का फैसला जज को करना है। जज के सुनवाई से अलग करने के लिए लंबी शर्मिंदगी वाली दलीलों को कारण नहीं होना चाहिए।

विभिन्न निर्णयों में निर्धारित कानून ने मुझे मामले से न हटने और परिणामों की परवाह किए बिना कर्तव्य का पालन करने के लिए मजबूर किया है, क्योंकि न्याय और न्यायिक निर्णय के रूप में न्याय के निर्वहन या कर्तव्य निर्वहन के रास्ते में कुछ भी नहीं आना चाहिए।

पूर्वाग्रह के लिए कोई जगह नहीं है। न्याय को किसी भी कारक द्वारा शुद्ध, निष्कलंक, निर्लिप्त होना पड़ता है और यहां तक ​​कि सुनवाई से हटने के निर्णय को बाहरी ताकतों द्वारा प्रभावित नहीं किया जा सकता है। हालांकि अगर मैं सुनवाई से अलग होता हूं तो यह कर्तव्य का अपमान होगा, सिस्टम और अन्य जज या भविष्य में जो बेंच में आएंगे, उनके साथ अन्याय होगा।

मैंने इस मुद्दे पर बिंदुओं की बारीकियों पर विचार करने के बाद निर्णय लिया है और बहुत महत्वपूर्ण बात है, मेरी अंतरात्मा की आवाज। मेरी राय में, मैं अगर इन परिस्थितियों में सुनवाई से खुद को अलग करता हूं तो ये गंभीर गड़बड़ी होगी और एक बुरी मिसाल कायम करने के लिए भावी पीढ़ियां मुझे कभी माफ नहीं करेंगी। यह केवल न्यायपालिका के हित के लिए है (जो सर्वोच्च है) और प्रणाली है जिसने मुझे सुनवाई से ना हटने के लिए मजबूर किया है। "

जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस एस रवींद्र भट ने जस्टिस मिश्रा के साथ सहमति व्यक्त की और कहा,

"हम उनके तर्क और निष्कर्ष के साथ सहमत होकर यह कहते हैं कि कोई भी कानूनी सिद्धांत या आदर्श वर्तमान बेंच में उनकी भागीदारी को नहीं रोकता जो संदर्भ को सुनने के लिए बनी है। हालांकि पिछले उदाहरण और अदालत का अभ्यास, इसके विपरीत को इंगित करते हैं, अर्थात जिस जज ने अंतिम निर्णय लिया है; वो बड़ी बेंच में शामिल हो सकते हैं जिसमें जिसमें इस तरह के पिछले निर्णय पर पुनर्विचार के लिए संदर्भित किया जाता है। " 

Tags:    

Similar News